बतौर राजधानी अगर हम दिल्ली की बात करें तो इसके इतिहास के सिरे द्वापरयुग तक जाते हैं। भारत के इतिहास में दिल्ली को पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। चूँकि पांडवों ने ही दिल्ली को इंद्रप्रस्थ नाम के साथ सबसे पहले बसाया था।
आजादी के बाद सन् 1955 में पुराने किले के दक्षिण पूर्वी भाग में हुई पुरातात्विक खुदाई से कुछ ऐसे पात्र प्राप्त किए गए थे जो महाभारतकालीन की वस्तुओं से मेल खाते थे। जिनके आधार पर माना गया कि यही वे स्थल है जिसे इतिहास में पांडवों की राजधानी कहा जाता था। इसके बाद कई बार खुदाई हुई और हर बार यह बात पुख्ता होती गई कि जिस दिल्ली में हम रह रहे हैं, जिसका इतिहास में मौर्य काल से लेकर मुगल काल तक की बसावट है, वह किसी और की नहीं बल्कि पांडवों की ही देन है।
आज हम दिल्ली घूमते हुए हर नामी शख्स के नाम से दिल्ली की सड़को को पहचानते हैं। फिर चाहे वो अकबर रोड हो, डॉ. अब्दुल कलाम रोड हो, कस्तूरबा गाँधी रोड हो, महात्मा गाँधी रोड हो। लेकिन क्या कारण है कि हम पूरी दिल्ली को घूमते हुए कहीं पर भी पांडव रोड नहीं देखते…जोकि सबसे महत्तवपूर्ण है। क्या दिल्ली की इन नामवर शख्सियतों के बीच पांडवों के इंद्रप्रस्थ के साथ इंसाफी हुई या कहानी कुछ और है?
Pandava to Pandara: How a clerical error pushed Pandavas off New Delhi map#Delhi #ModernHistory
— Nivedita Khandekar (@nivedita_Him) April 19, 2019
https://t.co/oJt92NbotS
दरअसल दिल्ली में जिस तरह से हर नामी शख्सियत को सम्मान देने के लिए राजधानी की सड़को के नाम रखे गए, उसकी तरह पांडवों के नाम पर भी एक सड़क का नामकरण हुआ था। 10 फरवरी 1931 को नई दिल्ली विधिवत उद्घाटन से पहले यहाँ कि सभी सड़कों के नाम तय किए गए।
So someone mentioned that Delhi’s Pandara Road was actually Pandava road and only became Pandara because of a spelling mistake. This took me back to when I was studying at S P Jain. One of our teachers was the wise and delightfully witty D Sundaram (who later became CEO of HUL)
— Narendra Shenoy (@shenoyn) April 5, 2019
इसके लिए बकायदा एक कमेटी गठित की गई जो इस पर काम कर रही थी, लेकिन एक सरकारी बाबू की ज़रा सी गड़बड़ी के कारण उसे सरकारी रिकॉर्ड में अंग्रेजी में पांडव लिखते हुए अंग्रेजी के अक्षर ‘वी’ की जगह ‘आर’ लिख दिया गया। मात्र इसी लेखन त्रुटि के कारण आज दिल्ली उस सड़क को पंडारा रोड के नाम से जानती है। मात्र एक ‘व’ और ‘र’ के फ़र्क़ ने पांडवों के नामोंनिशान को दिल्ली के नक्शे विलुप्त कर दिया। हैरानी की बात तो ये है कि इस गलती को सुधारने का दोबारा कभी प्रयास भी नहीं किया गया।
The #History of #Delhi‘s #PandaraRoad: A mistake that continues…
— Prriya Raj (@PrriyaRaj) April 19, 2019
“The handwritten lower case ‘v’ in ‘Pandava’ had been erroneously typed up by some clerk as ‘r’, and the mistake was never corrected!” https://t.co/F9SPwzBu22
आज पंडारा रोड को दिल्ली की उन टॉप 10 जगहों में गिना जाता है, जहाँ का ज़ायकेदार खाना खाने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इंडिया गेट से क़रीब इस मार्ग के बारे में अगर आप इंटरनेट पर भी सर्च करने का प्रयास करेंगे तो इसके नाम के इतिहास से ज्यादा वहाँ मौजूद रेस्टरां के नाम आपको देखने को मिलेंगे। बता दें कि आधुनिक दिल्ली में यहाँ की नाइट लाइफ भी बहुत मशहूर है।
Pandara Road…….all set for new year!!!! pic.twitter.com/UhtjanmS7E
— Seema Choudhary (@Seems3r) December 23, 2018
Oh yes……actually Pandara Road is teerth sthal for anyone eating out in Delhi
— Sumeet Gill (@TheSumeetGill) April 9, 2019
But then people think that is Khan market!!!
भारत के गौरवशाली इतिहास का एक हिस्सा कई सालों से वर्तनी की त्रुटि के कारण दबा हुआ है। जिन पांडवों ने भारतवर्ष को इंद्रप्रस्थ दिया, उसी इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) में उनका नाम कहीं भी नहीं है। आज सोशल मीडिया पर कई लोगों द्वारा इस विषय पर सवाल उठाए जा रहे हैं। लेकिन जवाब में वहीं एक किस्सा सुनाया जा रहा है, जिसका उपरोक्त जिक्र हुआ है। बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस में आज इस विषय पर एक खास रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई है।
Wonderful story on how Pandava Road became Pandara Road in the @IndianExpress by @BaruahSukrita pic.twitter.com/ms5hTlup7v
— Siddharth Zarabi (@szarabi) April 19, 2019