20 नवम्बर, 1979 की सुबह थी और शेख मुहम्मद अल सुबायिल करीब 50,000 लोगों की नमाज़ की तैयारी में थे। अचानक करीब पाँच बजे सुबह कुछ हथियारबंद लोगों ने उन्हें घेर लिया। मस्जिद के दरवाजे बंद कर दिए और वहाँ मौजूद जो दो पुलिसकर्मी सिर्फ लाठी से लैस थे, उन्हें मार डाला।
करीब 400 से 500 हथियारबंद लोगों ने सभी नमाज अता करने आए लोगों को अपने काबू में कर लिया। इन हथियारबंद लोगों में कई औरतें और बच्चे भी थे। सभी अल कुओंताय्बी नाम के आन्दोलन से जुड़े हुए इन हमलावरों ने मक्का शहर के बड़े मस्जिद पर कब्ज़ा कर लिया।
सऊदी बिन लादेन ग्रुप इस समय मस्जिद में कुछ मरम्मत का काम कर रही थी। इस से पहले की हमलावर टेलिफोन के तार काट पाते उनके एक कर्मचारी ने बाहर इस बात की सूचना पहुँचा दी। थोड़ी देर में हमलावरों ने कई बंधकों को बाहर निकाल दिया और बाकि के बंधकों को अपने कब्ज़े में लेकर अन्दर बंद रहे। अब बाहर कोई नहीं समझ पा रहा था की अन्दर कितने बंधक और कितने हमलावर मौजूद हैं।
इस समय अरब के क्राउन प्रिंस फहद ट्यूनेशिया में थे, नेशनल गार्ड के मुखिया प्रिंस अब्दुल्ला मोरक्को गए थे। किंग खालिद ने मस्जिद को छुड़ाने की जिम्मेदारी प्रिंस सुलतान को सौंपी, प्रिंस नाएफ भी उनके साथ गए।
हमले के खबर सुनते ही आंतरिक मंत्रालय के कुछ सौ सिपाहियों ने मस्जिद को छुड़ाने का प्रयास किया लेकिन कई लोग मारे गए और उन्हें हमलावरों के हाथ मस्जिद छोड़ कर पीछे हटना पड़ा। शाम ढलते-ढलते पूरा मक्का खाली करवा लिया गया। सऊदी अरब की आर्मी और सऊदी अरब नेशनल गार्ड ने भी मोर्चा संभाला। सऊदी इंटेलिजेंस अल मखाबरात अल आम्माह के मुखिया तुर्की बिन फैज़ल अल सउद ने आगे की कमान संभाली। अगले कई दिन तक वो वहीं रहने वाले थे। ऐसे माहौल में मदद के लिए पाकिस्तानियों से भी मदद माँगी गई। मगर कई दिन तक पाकिस्तानी कमांडो भी कुछ नहीं कर पाए।
आखिर में आई Groupe d’Intervention de la Gendarmerie Nationale (GIGN)! जी हाँ, फ़्रांसिसी कमांडो का एक दस्ता मक्का आया। अब मक्का में गैर मुस्लिमों को घुसने की इज़ाजत तो होती नहीं सो एक छोटे से आयोजन में तीन कमांडो ने धर्म परिवर्तन किया। फिर गैस के गोले अन्दर फेंके गए, अन्दर के चैम्बर में से हमलावरों को खुली जगह में आना पड़ा। दीवारों में ड्रिल कर के अन्दर अब बम फेंक दिए गए। फिर आगे की कार्रवाई में मस्जिद आजाद करवाया जा सका।
इस मामले में ख़ास था कि जैसे ही मस्जिद पर हमलावरों के कब्जे की खबर जारी हुई ईरान के इस्लामिक क्रन्तिकारी अयातोल्ला खोमेनी ने रेडियो पर कहा, इसमें कोई शक नहीं की इस हमले के पीछे अमरीकी और यहूदियों का हाथ है। इन अफवाहों के कारण दुनिया भर में अमेरिका विरोधी प्रदर्शन हुए। इस्लामाबाद में 21 नवम्बर को अमेरिकी एम्बेसी जला के राख कर दी गई। एक हफ्ते बाद लीबिया में भी अमेरिकी एम्बेसी जला दी गई।
अल कहताबी मस्जिद पर हमले में ही मारा गया था लेकिन जुहाय्मन और उसके 67 साथी पकड़े गए थे। सभी पुरुषों की गुप्त पेशी हुई। 9 जनवरी, 1980 को 63 को सऊदी के आठ अलग-अलग शहरों में बीच चौराहे पर सर काट कर मौत की सजा दी गई।
लड़ाई दो हफ्ते से थोड़ी ज्यादा चली। सरकारी तौर पर 255 हाजी, सिपाही और हमलावर मारे गए थे। करीब 560 जख्मी हुए।
4 साल पहले नवम्बर के महीने में इस्लामिक आतंकी हमला झेलकर फ्रांस ने 40 साल पहले मक्का की मस्जिद बचाने, और इसके अलावा अयातोल्ला खोमैनी को शरण देने की कीमत भर चुकाई थी।