सेकुलर-लिबरल जमात अक्सर उन पिचों की तलाश में रहता है, जहाँ से वे हिंदू घृणा फैला सके। क्रिकेट इनकी नई पिच है। उन्हें भारत में क्रिकेट की दीवानगी का भरपूर एहसास है। इसलिए क्रिकेट के कई कथित अंतरराष्ट्रीय जानकार और पत्रकार खेल के नाम पर जमकर हिंदूफोबिया की कमेंट्री कर रहे हैं।
ऐसा भी नहीं कि क्रिकेट के बहाने प्रोपेगेंडा का ये खेल अचानक शुरू हुआ है। कई लोग अरसे से इससे जुड़े हैं। मसलन, सीएनबीसी ने नवंबर 2021 में एक लेख प्रकाशित किया था। टी20 वर्ल्ड कप में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए मुकाबले को लेकर लिखी गई अनंत अग्रवाल की इस लेख के जरिए यह प्रोपेगेंडा फैलाया गया है कि भारत में असहिष्णुता बढ़ रही है। उल्लेखनीय है कि अक्टूबर 2021 के इस मुकाबले में पाकिस्तान को जीत मिली थी। लेख में उन कश्मीरी छात्रों पर कार्रवाई का हवाला दिया गया है, जो सोशल मीडिया पर पाकिस्तान की जीत का जश्न मना रहे थे। इसके आधार पर दावा किया गया है कि देश में धार्मिक तनाव चरम पर है। इस लेख को पढ़ने पर आप पाएँगे कि क्रिकेट की आड़ लेकर वे तमाम बातें की गई है जिनसे भारतीय संस्कृति, हिंदू धर्म, राष्ट्रवाद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को नुकसान पहुँचाया जा सके।
उससे भी पहले 2014 में ईएसपीएन की एक रिपोर्ट में राजद्रोह कानून को राष्ट्रीयता के खिलाफ बताया गया था। राष्ट्रीयता के भाव को लेकर प्रतिकूल टिप्पणियाँ की गईं थी। इसी तरह क्रिकेट की दुनिया का एक जाना-माना नाम ‘विजडन’ है। विजडन इंडिया में कई ऐसे पत्रकार हैं जो हिंदू विरोधी विचारों को अभिव्यक्त करने से संकोच नहीं करते हैं। सोशल मीडिया पर जो पत्रकार हिंदुओं को खुलेआम गाली देते हैं, उनमें से एक नाम सारा वारिस का भी है।
द क्विंट और एनडीटीवी जैसे संस्थानों में छप चुकीं सारा ने 2013 के एक ट्वीट में हिंदुओं को बलात्कारी बताया था। हालाँकि अब यह ट्वीट डिलीट हो चुका है। ट्वीट से हिंदुओं के प्रति उनकी नफरत स्पष्ट दिखती है। वे हिंदुओं को ही नीचा नहीं दिखाती, बल्कि भारतीय क्रिकेटर को कमतर बता विदेशी खिलाड़ियों की प्रशंसा में भी संकोच नहीं करती।
गोरे इंग्लिश क्रिकेटरों का पक्ष लेने पर विजडन की पिछले साल पूर्व भारतीय क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने भी आलोचना की थी। वैसे भी विजडन का भारतीयों के प्रति भद्दी टिप्पणी करने का इतिहास रहा है। 1983 के विश्व कप से पहले विजडन के एक संपादक डेविड फ्रिथ ने भारत की भागीदारी पर आपत्ति जताते हुए एक लेख तक लिख डाला था।
‘द ऑस्ट्रेलियन’ में 19 फरवरी 2021 को गिडन हाई का लेख प्रकाशित हुआ था। आप हैरत में रह जाएँगे कि क्रिकेट पर केंद्रित इस लेख में किसानों के प्रदर्शन तक पर चर्चा थी। भारत में लोकतंत्र कमजोर पड़ने का दावा करते हुए कहा गया था कि बीजेपी का तौर तरीका अल्पसंख्यकों, संस्थानों और मीडिया को डराने धमकाने वाला है।
इसी तरह ‘जैकोबिन’ नामक एक वामपंथी पत्रिका ने 4 अगस्त 2019 को एक लेख ‘क्रिकेट इन द सर्विस ऑफ हिंदू नेशनलिज्म’ के नाम से प्रकाशित किया था। इसमें भारतीय क्रिकेट टीम के अमेरिका दौरे को हिंदू राष्ट्रवाद के प्रभाव के विस्तार का प्रयास बताया गया था। मोदी के दुबारा चुने जाने पर उनके समर्थन में भारतीय क्रिकेट दिग्गजों के ट्वीट को लेकर भी लेख में सवाल उठाए गए थे।
इस लेख के सह लेखकों में नकुल एम पांडे भी थे। ब्रिटेन में रहने वाले नकुल क्रिकेट के जानकार माने जाते हैं। लेकिन उनके ट्विटर प्रोफाइल को देखकर हिंदुओं और मोदी सरकार से उनकी घृणा का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
जाहिर है लिबरलों ने हिंदुओं को नीचा दिखाने के लिए क्रिकेट को हथियार बनाना शुरू कर दिया है। इस खेल को लेकर भारतीयों की दीवानगी के कारण उन्हें लगता है कि नफरत का प्रचार करने में आसानी होगी। भले ही इनकी कारस्तानी से भारत की अंतरराष्ट्रीय साख को बट्टा न लगे, लेकिन खेल की आड़ में चल रहे इस प्रोपेगेंडा को हर कदम पर बेनकाब करना जरूरी है।
(मूल रूप से यह लेख अंग्रेजी में पल्लव ने लिखा है। इस लिंक पर क्लिक कर आप विस्तार से पढ़ सकते हैं)