चक्रवाती तूफान (Cyclone) Tauktae ने शनिवार (15 मई, 2021) रात को अपनी दिशा बदल दी और यह तूफान पूर्व की ओर खिसक गया। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने चक्रवात Tauktae को ‘अति भीषण चक्रवाती तूफान’ की श्रेणी में रखा था, लेकिन अक्सर तूफान स्थल भाग के संपर्क में आने पर कमजोर हो जाते हैं इसलिए चक्रवात Tauktae की कैटेगरी को ‘अति भीषण’ से ‘भीषण’ में बदला जा सकता है। अति भीषण चक्रवाती तूफान (Very Severe Cyclonic Storm) का मतलब है कि अब चक्रवात जिन हवाओं को समेटे रखता है, उनकी रफ्तार लगभग 118-221 किमी प्रति घंटे की होती है।
भारत के पश्चिम में स्थित अरब सागर में उत्पन्न हुए इस Tauktae Cyclone ने केरल, गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में अपना भयानक रूप दिखाया और अब यह गुजरात की ओर लगातार लगभग 16 किमी/घंटे की रफ्तार से बढ़ रहा है। तूफान की ताकत का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि Tauktae Cyclone के केंद्र की परिधि 30 से 35 किमी है और तूफान के केंद्र में लगभग 150 किमी/घंटे की रफ्तार से हवाएँ चल रही हैं।
साल 2020 में बंगाल की खाड़ी में ‘अम्फान’ चक्रवात उत्पन्न हुआ था जो सुपर साइक्लोन में बदल गया था। यह 1999 के बाद से दूसरा सुपर साइक्लोन था। साल 2020 में ही मुंबई में चक्रवात ‘निसर्ग’ ने भयानक नुकसान किया था। तीन ओर से समुद्र से घिरा होने के कारण भारत हमेशा से ही इन चक्रवातों से जूझता रहा है।
आखिर इन चक्रवाती तूफानों के बनने के पीछे क्या कारण है और इनके नाम किस आधार पर रखे जाते हैं? भारत के अलावा दुनिया भर में इन चक्रवाती तूफानों की स्थिति क्या है? तो आइए ढूँढते हैं इन सभी प्रश्नों के उत्तर।
चक्रवात (Cyclone) के प्रकार :
दुनिया भर में चक्रवातों को प्रमुख रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात और शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात। उष्णकटिबंधीय चक्रवात कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच के क्षेत्र में आते हैं अर्थात भूमध्य रेखा के आस-पास के क्षेत्रों में। शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में आने वाले चक्रवात शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात होते हैं। शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को फ्रन्टल या वेव साइक्लोन भी कहा जाता है।
अक्सर लोगों में यह भ्रम रहता है कि साइक्लोन, हैरीकेन और टाईफून में भी क्या कोई अंतर है, तो आपको बता दें कि ये सभी उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफान ही हैं। दुनिया में अलग-अलग जगह पर इन्हें इस प्रकार विभिन्न नामों से जाना जाता है। जैसे हिन्द महासागर और दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में आने वाले तूफ़ानों को ‘ट्रॉपिकल साइक्लोन (Tropical Cyclone)’ या सिर्फ साइक्लोन कहा जाता है। उत्तर अटलांटिक, कैरेबियन और पूर्वोत्तर प्रशांत क्षेत्र में उठने वाले तूफ़ानों को हैरीकेन कहा जाता है। उत्तर-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के तूफान टाईफून कहे जाते हैं। यह क्षेत्र इस प्रकार के तूफ़ानों के लिए सबसे सुभेद्य क्षेत्र हैं। इसके अलावा पश्चिमी अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी भागों में आने वाले तूफानों को टॉरनेडो कहा जाता है।
इन चक्रवाती तूफ़ानों को इनमें समाहित हवा की गति और इनकी तीव्रता के आधार पर भी विभाजित किया जाता है। इन तूफ़ानों का सबसे न्यूनतम स्तर ‘डिप्रेशन (Depression)’ कहा जाता है जहाँ हवा की गति लगभग 50 किमी या उससे भी कम होती है। इन चक्रवाती तूफ़ानों का सबसे भयानक और विनाशकारी रूप ‘सुपर साइक्लोनिक स्टॉर्म (Super Cyclonic Storm)’ कहा जाता है। इसमें हवा की गति 222 किमी से भी अधिक हो जाती है।
हमेशा से ही एक बड़ा प्रश्न इन तूफ़ानों के नाम को लेकर उठता रहता है कि आखिर इन तूफ़ानों के नाम किस प्रकार निर्धारित किए जाते हैं? विभिन्न क्षेत्रों में स्थित देशों के द्वारा विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की देखरेख में इन तूफ़ानों को नाम प्रदान किया जाता है। हिन्द महासागर क्षेत्र में आने वाले तूफ़ानों के नाम रखने के लिए सितंबर 2004 में एक समझौता हुआ। इस समझौते के तहत हिन्द महासागर क्षेत्र के आठ देश, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड तूफ़ानों के लिए नामों का एक समूह देंगे, जिसमें से बारी-बारी से तूफान का नामकरण होगा। हालाँकि, अब इस समझौते में देशों की संख्या बढ़कर 13 हो गई है।
वर्तमान में अरब सागर से उठने वाले चक्रवाती तूफान Tauktae का नाम म्याँमार द्वारा दिया गया है। Tauktae, गेको छिपकली का बर्मीज नाम है। यह छिपकली बहुत तेज आवाज करती है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफ़ानों के बनने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें भी होती हैं। ये शर्तें पूरी होने पर ही समुद्री क्षेत्रों में किसी चक्रवाती तूफान का निर्माण हो पाता है।
सबसे पहली आवश्यकता है कि समुद्र की एक विशाल सतह का तापमान 27° C से अधिक होना चाहिए। इससे होता यह है कि इस सतह के संपर्क में आने वाली हवा गर्म होती है और ऊपर उठती है। गर्म हवा के ऊपर उठने के कारण बाहरी ठंडी हवा उस खाली स्थान को तेजी से भरने के लिए आती है।
यहाँ पृथ्वी की घूर्णन गति से उत्पन्न कोरियॉलिस बल के कारण बाहर से आने वाली ठंडी हवा तेज गति से एक सर्पिलाकार पथ पर घूमने लगती है। इस हवा के घूर्णन की दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि तूफान किस गोलार्ध में उत्पन्न हुआ है। यदि तूफान उत्तरी गोलार्ध में है तो इसका घूर्णन घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में अर्थात एंटी-क्लॉकवाइज होगा लेकिन यदि यही तूफान दक्षिणी गोलार्ध में है तो इसकी घूर्णन की दिशा उत्तरी गोलार्ध के विपरीत अर्थात घड़ी की सुई की दिशा (क्लॉकवाइज) होगी।
समुद्र की सतह पर पहले से बना हुआ कम दबाव का क्षेत्र भी इन चक्रवाती तूफ़ानों के निर्माण में सहायक होता है। इसके अलावा ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में भिन्नता को भी तूफ़ानों के निर्माण में सहायक माना जा सकता है।
अब समझते हैं कि एक चक्रवात का निर्माण कैसे होता है और वो कौन से कारक होते हैं जिनसे एक तूफान की गति, उसके द्वारा प्रभावित क्षेत्र और स्थानीय मौसम में परिवर्तन निर्धारित होता है।
किसी भी चक्रवात के निर्माण या प्रारम्भिक अवस्था में समुद्र से वाष्पीकृत जलवाष्प और अपेक्षाकृत अधिक तापमान ऊपरी हवा में स्थानांतरित होता है। आप यह मान सकते हैं कि एक चक्रवात को भी ईंधन की आवश्यकता होती है और उसका यह ईंधन होती है गर्म जलवाष्प। इसके कारण समुद्र की सतह से ऊपर उठने वाली संघनित हवा के संवहन के कारण बड़े पैमाने पर क्यूमलस बादलों का निर्माण होता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफान का दूसरा चरण उसका सबसे खतरनाक स्तर होता है। इस चरण में ऊपर उठने वाली हवा क्षोभमंडल (ट्रोपोपॉज) पर क्षैतिज रूप से फैल जाती है। ऊपरी क्षेत्र में हवा के फैलने के कारण एक उच्च दबाव का क्षेत्र बन जाता है। इससे संवहन क्रिया प्रारंभ होती है और उच्च दबाव से निम्न दबाव क्षेत्र की ओर हवा का तेजी से संचालन होता है जो आँधी-तूफान का कारण बनता है।
हिन्द महासागर या ऐसे ही उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले चक्रवाती तूफ़ानों का तीसरा और अंतिम चरण तब होता है जब तूफान किसी ठंडे जल क्षेत्र अथवा जमीन से होकर गुजरते हैं। ठंडे क्षेत्र से गुजरने के कारण तूफ़ानों को जलवाष्प नहीं मिल पाती जो कि इनका मुख्य ईंधन है। ऐसा ही कुछ तब होता है जब ये तूफान तटीय क्षेत्रों से टकराते हैं। स्थल भाग पर पहुँचने के कारण भी इन्हें जलवाष्प नहीं मिलती जिसके कारण ये कमजोर हो जाते हैं और एक समय के बाद समाप्त हो जाते हैं। तूफ़ानों के समाप्त होने में एक बड़ा कारक उनमें समाहित हवा की गति भी है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सभी चक्रवाती तूफान विनाशकारी नहीं होते हैं। कई तूफान समुद्र में ही बनते हैं और वहीं नष्ट हो जाते हैं। अक्सर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले चक्रवाती तूफान समुद्री पवनों के संपर्क में आने के कारण गतिमान हो जाते हैं जो तटीय क्षेत्रों की ओर बढ़ जाते हैं और उन क्षेत्रों में वर्षा के माध्यम से अपना जल निष्काषित करते हैं।
भारत हमेशा ही उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के दायरे में आता है क्योंकि यहाँ के आसपास के समुद्री क्षेत्र में चक्रवात उत्पन्न होने की सभी आवश्यक परिस्थितियाँ मौजूद हैं। अक्सर इन समुद्री तूफ़ानों से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात अधिक प्रभावित रहते हैं।
अब आप यह प्रश्न कर सकते हैं कि चक्रवात कभी भी भूमि या स्थल भाग पर क्यों उत्पन्न नहीं होते हैं? इसका एक ही जवाब है, तूफान के लिए ईंधन की उपलब्धता और हम पहले ही बता चुके हैं कि एक चक्रवाती तूफान के लिए आवश्यक है गर्म जलवाष्प जो कि स्थल भाग में उपलब्ध नहीं हो पाती। हालाँकि यहाँ नदियाँ और तालाब होते तो हैं लेकिन उनमें इतनी शक्ति नहीं होती कि उससे एक बड़ा चक्रवाती तूफान तैयार हो सके। इसीलिए स्थल भाग में जमीन के अत्यधिक गर्म होने पर कभी-कभी बवंडर तैयार होते हैं लेकिन ये अल्पकालिक होते हैं।