ब्रिटेन के एक हाई कोर्ट ने हैदराबाद के निजाम के 3.5 करोड़ पाउंड के फंड को लेकर दशकों से चल रहे मामले में बुधवार (2 अक्टूबर, 2019) को भारत के पक्ष में फ़ैसला सुनाया। देश के विभाजन के बाद हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान ने 1948 में लंदन के नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक में 10 लाख पाउंड (क़रीब 8.87 करोड़ रुपए) जमा किए थे। इस पर दावे को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले 70 सालों मुक़दमा चल रहा था। अब यह रकम बढ़कर करीब 35 मिलियन पाउंड (करीब 306 करोड़ रुपए) हो चुकी है।
रुपए के मालिकाना हक को लेकर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चल रही इस क़ानूनी लड़ाई में निज़ाम के वंशज प्रिंस मुकर्रम जाह और उनके छोटे भाई मुफ्फखम जाह भारत सरकार के साथ थे। हैदराबाद के तत्कालीन निज़ाम ने 1948 में ब्रिटेन में पाकिस्तान के उच्चायुक्त को ये रक़म भेजी थी। फ़िलहाल, यह रक़म लंदन के नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक में जमा है।
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि यूके की अदालत ने पाकिस्तान के इस दावे को ख़ारिज कर दिया है कि इस रक़म का मक़सद हथियारों की शिपमेंट के लिए पाकिस्तान को भुगतान के रूप में किया गया था। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने कई बार यह कोशिश की थी कि यह मामला किसी तरह से बंद हो जाए, लेकिन उसके मंसूबे पर पानी फेरते हुए लंदन की अदालत ने उसके हर प्रयास को विफल कर दिया।
लंदन के रॉयल कोर्ट ऑफ जस्टिस के जज मार्कस स्मिथ ने अपने फैसले में कहा कि हैदराबाद के 7वें निजाम उस्मान अली खान इस फंड के मालिक थे। उनके बाद उनके वंशज और भारत इस फंड के दावेदार हैं।
हैदराबाद के निजाम की ओर से मुकदमे की पैरवी कर रहे पॉल हेविट ने कहा, “हमें खुशी है कि कोर्ट ने अपने फैसले में 7वें निजाम की संपत्ति पर उनके वंशजों के उत्तराधिकार को स्वीकार किया है। यह विवाद 1948 से ही चला आ रहा था।”
खबरों के मुताबिक पैसे भेजने के कुछ दिनों बाद ही निजाम ने बैंक से लौटाने को कहा था। उनका कहना था कि पैसा उनकी सहमति के बिना पैसा भेजा गया। लेकिन बैंक ने ऐसा नहीं किया। बैंक की ओर से बताया गया कि पैसा पाकिस्तान के खाते में जा चुका है और उसकी सहमति के बिना इसे बिना वापस नहीं किया जा सकता।
इसके बाद निजाम ने बैंक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की। मामला हाउस ऑफ लॉर्ड्स तक भी पहुॅंचा। लेकिन उस समय इसके स्वामित्व पर फैसला नहीं हो पाया। इसका कारण पाकिस्तान का संप्रभु प्रतिरक्षा दावा था। इसके बाद से पैसा यूके के नेटवेस्ट बैंक में फ्रीज पड़ा हुआ था।
साल 2013 में पाकिस्तान ने इस फंड की राशि पर अपना दावा करते हुए केस की कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए संप्रभु प्रतिरक्षा का दावा हटा लिया था। इस केस में दोबारा कार्रवाई शुरू होने के बाद निज़ाम परिवार और भारत सरकार के बीच इस मामले को लेकर समझौता हुआ और भारत ने इन निज़ाम परिवार के दावे का समर्थन किया।