भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने भविष्यवाणी की है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ‘हिंदू विकास दर’ की ओर बढ़ रही है। समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ हुए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि एनएसओ (NSO) द्वारा राष्ट्रीय आय के जो आँकड़े जारी किए गए हैं, वह चिंताजनक हैं। चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जीडीपी की वृद्धि दर 13.2 प्रतिशत थी। वहीं, दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में जीडीपी की वृद्धि 6.3 प्रतिशत थी। यह अब अब तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में घटकर 4.4 प्रतिशत रह गई है।
इससे पहले रघुराम राजन ने भविष्यवाणी की थी कि कोरोना वायरस महामारी के कारण आई मंदी से उबरने में भारत को कई साल लगेंगे। हालाँकि, भारत एक साल में ही अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में कामयाब रहा। लेकिन, रघुराम राजन ने अपनी ‘झूठी भविष्यवाणी’ के लिए कभी माफी नहीं माँगी। वह बीते 5 वर्षों से लगातार भारत में आने वाले आर्थिक संकट की भविष्यवाणी कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनकी ऐसी सभी भविष्यवाणी गलत साबित हो रहीं हैं।
मुद्दे पर लौटें तो रघुराम राजन ने आर्थिक विकास में मंदी का उल्लेख करते हुए ‘हिंदू विकास दर’ शब्द का उपयोग किया है। रघुराम राजन 2013 से 2016 तक आरबीआई के गवर्नर थे। इस दौरान देश स्थिर विदेशी मुद्रा भंडार समेत कई अन्य विवादों से घिरा रहा। हालाँकि, उनके पद से हटने के बाद से आरबीआई का विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन से अधिक हो गया है। वास्तव में यह एक ऐसा आँकड़ा है जो भारतीय इतिहास में विदेशी मुद्रा भंडार का एक रिकॉर्ड है।
‘हिंदू विकास दर’ क्या है
भारत का 6000 से अधिक वर्षों का इतिहास गौरवशाली और सभ्यतागत रहा है। इस लंबी अवधि के दौरान, भारत गर्व से वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रतीक के रूप में चमकता रहा। पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत के स्थान को एक अमेरिकी इतिहासकार विल डुरंट की पुस्तक ‘द केस फॉर इंडिया’ में शानदार ढंग से बताया गया है। सत्रहवीं शताब्दी तक, भारत का सकल घरेलू उत्पाद विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का एक तिहाई था। यहाँ तक कि इस्लामी आक्रांताओं द्वारा की गई 800 वर्षों की लूट के बाद भी भारत में संसाधनों की कमी नहीं हुई। इसके बाद अंग्रेजों की लूट के बाद ही भारत में धन की कमी हुई। इसके बाद भारत को साल-दर-साल लगातार अकाल का भी सामना करना पड़ा।
‘हिंदू विकास दर’ शब्द साल 1978 में तथाकथित अर्थशास्त्री राज कृष्ण द्वारा गढ़ा गया था। यह उन्होंने साल 1950 से 1980 तक जीडीपी वृद्धि दर का उल्लेख करने के लिए तैयार किया था। ‘हिंदू विकास दर’ पूरी तरह से एक गलत शब्द है, क्योंकि उस समय और बाद में भी देश की अर्थव्यवस्था में हिंदुओं का सबसे बड़ा योगदान था। निश्चित रूप से भारत में सभी धर्मों के लोग रहते हैं। लेकिन, तत्कालीन आर्थिक योजनाकारों ने हिंदुओं पर विकास की जिम्मेदारी रख दी थी।
1950-80 के दशक तक देश के विकास को लेकर कई प्रयास किए जा रहे थे। हालाँकि इसके बाद भी विकास कमोबेश स्थिर रहा। वास्तव में उस दौरान विकास दर करीब 3.5% थी। इसलिए उस समय स्थिर विकास दर को ‘हिंदू विकास दर’ कहते हुए एक गलत शब्द के प्रयोग की शुरुआत की गई। चूँकि उस समय हिंदुओं को नीति निर्माण में कोई प्रत्यक्ष अधिकार नहीं था, इसलिए भी विकास दर को इस तरह का नाम देना अनुचित था।
हिंदू नहीं, नेहरू विकास दर
जवाहर लाल नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। वह 1964 तक पद पर बने रहे। अधिकांश आर्थिक नीतियाँ नेहरू द्वारा तय या बनाई गई थीं। इसलिए, उनके शासन के दौरान और उसके बाद के वर्षों के आर्थिक विकास के लिए ‘नेहरू विकास दर’ शब्द कहीं अधिक सही प्रतीत होता है।
नेहरू समाजवाद के प्रति इतने जुनूनी थे कि भारत सरकार होटल भी चलाती थी। उस समय बिड़ला और टाटा जैसे मेहनती व्यक्तियों को अपने व्यवसाय का विस्तार करने की स्वतंत्रता नहीं दी गई थी। नेहरू की इस अदूरदर्शी दृष्टि को विकास की धीमी दर के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
नेहरूवादी आर्थिक नीतियाँ इतनी अधिक गलत थीं कि देश लगभग हमेशा खाद्य संकट से घिरा हुआ था। इतना ही नहीं, उनकी अदूरदर्शी दृष्टि उन्हें नदी बांधों को ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ कहने के लिए प्रेरित करती है। नेहरूवादी नीतियों को उनकी बेटी इंदिरा गाँधी ने भी आगे बढ़ाया। इंदिरा गाँधी ने बैंकिंग, कपड़ा, कोयला, इस्पात, ताँबा जैसे क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इसलिए विकास की इस दर को वास्तव में ‘हिंदू विकास दर’ कहना गलत होगा, क्योंकि तत्कालीन परिस्थितियों के लिए नेहरू ही जिम्मेदार थे।
इसलिए, आर्थिक विकास की स्थिरता के लिए जिम्मेदार व्यक्ति के नाम पर ‘नेहरू विकास दर’ शब्द ही बेहतर होगा।