बिहार के मुजफ्फरपुर में 100 से भी अधिक बच्चे ASE (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) के कारण जान गँवा चुके हैं और नीतीश सरकार व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इस त्रासदी को रोकने में नाकाम साबित हुए हैं। स्थानीय जनता के अनुसार, मरने वाले मासूमों की संख्या सरकारी आँकड़ों से कहीं ज्यादा है। पूरे उत्तर बिहार में फ़ैल चुके इस जापानी बुखार को लेकर प्रशासन अभी भी सुस्त बना हुआ है। आज से 2 वर्ष पहले तक योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक व धार्मिक कर्मभूमि रहा गोरखपुर भी जापानी इंसेफेलाइटिस की चपेट में था।
2017 से पहले उत्तर प्रदेश (खासकर गोरखपुर में) में प्रति वर्ष हज़ारों बच्चों की मौतें होती थीं। 2017 में जब योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाली, तब उनके सामने इससे निपटने की सबसे बड़ी चुनौती थी, जो पिछली सरकारों की निष्क्रियता के कारण उन्हें विरासत में मिली थी। अकेले उसी वर्ष 500 से अधिक बच्चे अपनी जान गँवा चुके थे। गोरखपुर व आसपास के 14 जिले इस बीमारी की चपेट में थे। 2017 में गोरखपुर के अस्पताल में कई बच्चों की मौत के बाद यह एक बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी बन गया था।
योगी आदित्यनाथ ने इस बीमारी से निपटने के लिए बड़े स्तर पर योजनाएँ तैयार कीं। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन (WHO) और UNICEF जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ साझेदारी की और उनके साथ मिल कर एक एक्शन प्लान पर काम शुरू किया। एक बड़ा और व्यापक टीकाकरण अभियान शुरू किया गया। स्वास्थ्य व सफाई को लेकर जागरूकता फैलाने के तहत एक बड़ा अभियान चलाया गया। प्रभावित क्षेत्रों से सूअरों को अलग किया गया। फॉगिंग के लिए त्वरित प्रतिक्रया टीम को लगाया गया।
बच्चों के माता-पिता को घर-घर जाकर यह समझाया गया कि वे अपने बच्चों को मिट्टी की पुताई वाली जमीन पर न सोने दें। पीने का पानी के लिए इंडिया मार्क-2 वाटर पाइप का और हैंड पंप का प्रयोग करने की सलाह दी गई। इस बीमारी से जुड़े लक्षणों के बारे में हर परिवार को बताया गया और किसी भी आपात स्थिति में 108 एम्बुलेंस नंबर पर कॉल करने को कहा गया। इन सभी कार्यों के परिणाम भी अच्छे मिले। जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण हुई मौतों में एक वर्ष के भीतर दो तिहाई की कमी आई। जहाँ 2017 में इस बीमारी से 557 जानें गई थीं, 2018 में यह आँकड़ा 187 रहा।
Around 100 children have died of Japanese #encephalitis in #Muzaffarpur district of #Bihar.
— India Today (@IndiaToday) June 17, 2019
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अगर 14 जिलों के आँकड़ों की बात करें तो 2017 में इस बीमारी को लेकर कुल 3817 मामले आए थे, 2018 में इसकी संख्या आधे से भी कम होकर 2043 पर पहुँच गई। जब इस बीमारी से पीड़ित होने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई तो इसका अर्थ यह हुआ कि अस्पताल में भी कम बच्चे भर्ती होंगे। इससे डॉक्टरों को मृत्यु दर रोकने में मदद मिली। जहाँ 2017 में प्रत्येक 7 मरीज में से 1 की मृत्यु हो जाती थी, 2018 में हर 11 में से 1 बीमार की मृत्यु हुई। इस वर्ष फ़रवरी में जापानी इंसेफेलाइटिस की वजह से 1 भी बच्चे की जान जाने की बात सामने नहीं आई है।
अब चूँकि पूर्वी यूपी और उत्तरी बिहार के भौगोलिक हालात मिलते-जुलते हैं, बिहार सरकार को योगी प्रशासन से यह सीखना चाहिए कि उन्होंने कैसे इस बीमारी पर काबू पाने में सफलता हासिल की। हालाँकि, बिहार सरकार ने भी 2016 एवं 2017 में इस बीमारी से हुई मौतों में कमी लाने के प्रयास में सफलता पाई थी, लेकिन इस वर्ष हुई इतनी संख्या में मौतें सरकार की सुस्ती का परिणाम हैं।