हाल ही में ऑपइंडिया ने जिहाद वॉच के संस्थापक और निदेशक रॉबर्ट स्पेंसर के साथ बातचीत की। स्पेन्सर इस्लामिक जिहाद को लेकर अपने अनुभवों और विचारों को साझा करते हुए अब तक 19 किताबें लिख चुके हैं। उनकी दो पुस्तकों को एफबीआई ने ट्रेनिंग मेटेरियल के रूप में सूचीबद्ध किया है।
पाकिस्तान सहित कई इस्लामिक देशों ने उनकी किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस्लाम पर उनके विचारों के परिणामस्वरूप यूनाइटेड किंगडम में उनके प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। वह Stop Islamization of America ग्रुप के सह-संस्थापक भी हैं, जिसे American Freedom Defense Initiative के रूप में भी जाना जाता है।
फिलहाल वह संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रहे हैं। ऑपइंडिया के संपादक नूपुर जे शर्मा से बात करते हुए, स्पेंसर ने कहा कि उनका परिवार ओटोमन साम्राज्य से है। उन्हें 1916 में वहाँ से निर्वासित कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने इस्लाम में धर्मांतरण से इनकार कर दिया था।
जब उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि उनके दादा-दादी को अपनी जन्मभूमि क्यों छोड़नी पड़ी, तो उनके परिवार ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया, जिसकी वजह से उन्होंने इतिहास का गहन अध्ययन किया।
स्पेंसर और नूपुर ने कई बिंदुओं पर विस्तार से बात की। इस दौरान जो पहली बात सामने आई, वो यह था कि क्या इस्लाम शांति का धर्म है। इस पर रॉबर्ट स्पेंसर ने हँसते हुए कहा कि हर गलत धारणा का कोई न कोई स्रोत होता है। उन्होंने कहा कि SLM सलाम शब्द का मूल है जिसका अर्थ होता है शांति। इसी वजह से अधिकांश लोग सोचते हैं कि यह धर्म शांति को बढ़ावा देता है।
हालाँकि, SLM इस्लाम शब्द का भी मूल है, जिसका अर्थ है अधीन होना। कुरान कहता है कि आप केवल तभी शांति प्राप्त कर सकते हैं जब आप खुद को अल्लाह को सौंप देते हैं। समाज में सच्ची शांति केवल गैर-इस्लामी लोगों को इस्लाम मानने वाले को सौंपने से आती है। उन्होंने कहा कि शांति की परिभाषा जो अन्य धर्म सोचते हैं, वह इस्लाम से पूरी तरह से अलग है। अन्य धर्म जहाँ शांति को सह-अस्तित्व से जोड़ते हैं, वहीं इस्लाम का मानना है कि शांति केवल तभी संभव है जब इस्लाम पर विश्वास न करने वाले खुद को उनके अधीन कर दे। इस तरह के विश्वास का मूल कारण कुरान में गैर-इस्लामी लोगों की जहालत है।
भारत में धर्मांतरण की समस्या
संप्रदाय विशेष और ईसाइयों द्वारा भारत में धर्मांतरण की समस्या पर चर्चा करते हुए, स्पेन्सर ने कहा कि ईसाई और संप्रदाय विशेष जिस तरह से उपदेश देते हैं, उसमें बहुत बड़ा अंतर है। उन्होंने कहा कि ईसाई आएँगे और आपको चर्च में बुलाने की कोशिश करेंगे ताकि वे आपको यीशु के बारे में बता सकें। यदि आप उनसे कहते हैं कि आपको इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है, तो वे आपको छोड़ देंगे। वहीं दूसरी तरफ, यदि आप संप्रदाय विशेष के लोग से कहते हैं कि आप अल्लाह के बारे में जानने के लिए मस्जिद में नहीं जाएँगे, तो वे आपके घर को जला देंगे।
वामपंथी इस्लामी साँठगाँठ
चर्चा के दौरान, लेफ्ट-इस्लामी साँठगाँठ के बारे में विस्तार से बात की गई थी। स्पेंसर ने कहा कि हालाँकि वामपंथी इस बात से इनकार करते हैं कि वे सत्तावादी हैं, मगर दुनिया के हर हिस्से में जहाँ वो अभी तक सत्ता में हैं, वे लोगों को स्वतंत्र भाषण के अधिकार से वंचित करते हैं। उन्होंने कहा कि मार्क्सवादी, इस्लाम का समर्थन करते हैं, जबकि उनके बीच कोई अनुकूलता नहीं है, क्योंकि दोनों सत्तावादी हैं और वे अपने तरीके से एक नया आदेश स्थापित करने की कोशिश करते हैं।
इस्लाम को नियंत्रित करने में राज्य की भूमिका
स्पेंसर ने जोर देकर कहा कि वह यह नहीं मानते हैं कि राज्य को देश के धर्म को परिभाषित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर संविधान सभी धर्मों को अनुमति देता है, तो समस्या तब पैदा होती है जब इस्लामवादियों जैसे सत्तावादी राज्य में वो अपने धर्म को स्थापित करने की कोशिश करते हैं। वे सभी अधिकारों का उपयोग करेंगे, लेकिन जैसे ही उन्हें मौका मिलेगा, वे देश में धार्मिक कानून स्थापित करेंगे। उनके मुताबिक भारत तभी इस्लामिक देश बनने से बच सकता है, जब हिंदू अपने धर्म में आस्था बनाए रखने के साथ ही इसे बचाने की इच्छा जागृत रखे।