नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में आने के बाद हर साल लोगों को पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों का इंतजार रहता है। इस बार ये पुरस्कार 132 हस्तियों को दिए जाने का ऐलान हुआ था। इनमें 2 पद्म विभूषण, 9 पद्म भूषण और 56 पद्म श्री पुरस्कार दूसरे चरण में राष्ट्रपति भवन में महानुभावों को गुरुवार (9 मई 2024) को दिए गए। इसके बाद सभी हस्तियों और उनके उल्लेखनीय कार्यों की चर्चा सोशल मीडिया पर होने लगी। इस बीच सबसे ज्यादा जिन्हें देख लोग इंस्पायर हुए वो डॉ केएस राजन्ना हैं।
कल से डॉ केस एस राजन्ना की वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है और आज की पीढ़ी को उनसे जज्बा लेने की सलाह दी जा रही। इस वीडियो में दिखाई दे रहा है कि के एस राजन्ना हाथ-पाँव न होने के बावजूद इतने उत्साह से पद्म पुरस्कार लेने आते हैं कि उनके चेहरे की मुस्कान देख सब खुश हो जाते हैं। पहले वो पीएम मोदी के पास जाते हैं, जहाँ पीएम उन्हें हाथ जोड़ उनका अभिवादन करते हैं। फिर वो राष्ट्रपति मुर्मू के पास जाते हैं और पद्म पुरस्कार स्वीकारते हैं।
#WATCH | President Droupadi Murmu presented Padma Shri award to Dr. KS Rajanna, a Divyang social worker committed to the welfare of differently-abled persons who lost both hands and legs to Polio, today
— ANI (@ANI) May 9, 2024
He rose to the position of State Commissioner for Persons with Disabilities pic.twitter.com/zH5YXlXdoq
इस दौरान राष्ट्रपति भवन में मौजूद जवान उनकी मदद करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वो बिन किसी की सहायता के खुद अपने आत्मनिर्भर होने का प्रमाण देते हैं। उनकी वीडियो देखने के बाद लोग आश्चर्यचकित हैं और जो उनके संबंध में नहीं जानते वो उनके बारे में सर्च कर रहे हैं।
पोलियों के कारण डॉ केएस राजन्ना ने गँवाए थे हाथ-पाँव
मात्र 11 माह की उम्र में पोलियों के कारण अपने हाथ-पाँव गँवाने वाले डॉ के केस राजन्ना ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने खुद को दिव्यांग समझने की बजाय अपने अपनी क्षमताओं का विस्तार करना शुरू किया और धीरे-धीरे वो अन्य दिव्यांगों के लिए प्रेरणा बनते गए। आज लोग उन्हें एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर जानते हैं लेकिन सच तो यह है कि वो सिर्फ सामाजिक कार्यकर्ता नहीं हैं बल्कि एक स्पोर्ट्स पर्सन भी रहे हैं जिन्होंने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम ऊँचा किया।
1980 में मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री ले लेने वाले डॉ राजन्ना ने 2002 में हुए पैरालंपिक के डिस्कस थ्रो प्रतियोगिता में देश के लिए गोल्ड जीता था और तैराकी में चांदी जीतकर देश की शान बढ़ाई थी।
इसके बाद उन्होंने खिलाड़ी के तौर पर पहचान स्थापित करने के बाद खुद का बिजनेस शुरू किया। वहाँ भी उन्हें ऐसी सफलता मिली कि उन्होंने 500 दिव्यांगों को उसके जरिए रोजगार प्रदान किया। 2013 में राजन्ना को ‘कमिश्नर फॉर डिसेबल्ड’ का पद दिया गया। इस दौरान भी उन्होंने कई दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने का काम किया।
64 साल की उम्र में जाकर उन्हें उनके संघर्षों के लिए, उनकी मेहनत के लिए पहचान मिली। जब इस वर्ष इनका नाम पद्म पुरस्कार के लिए आया तो इन्होंने ये खबर सुन कहा, “यह पुरस्कार मेरे लिए चीनी खाने जितना मीठा है. लेकिन यह सिर्फ एक पुरस्कार बनकर नहीं रहना चाहिए बल्कि इससे मुझे अपने सामाजिक कार्यों में और मदद मिलेगी।”
मोदी सरकार में मिला आम जन को सम्मान
अब डॉ केएस राजन्ना को जब यह अवार्ड मिल गया है तो उनके चेहरे की मुस्कान से कई लोग उनकी तारीफ कर रहे हैं और साथ में पीएम मोदी का अभिवादन कर रहे हैं। चर्चा हो रही है कि मोदी सरकार ने जो प्रयास आम जन के कार्यों को पहचान दिलाने के लिए किया है, वो दशकों से इस देश में नहीं हुआ था। मोदी सरकार आई तो उन्होंने न केवल उन महानुभूतियों को पहचान दिलाई जो समाज में चुपचाप बिन किसी लालच के किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दे रहे थे बल्कि उनकी पहुँच तक पद्म पुरस्कारों को भी पहुँचवाया।
जानकारी के लिए बता दें कि देश की जनता तक के बीच पद्म पुरस्कार पहुँचानेलेके लिए मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद सबसे पहले पुरस्कार पाने की प्रक्रिया में बदलाव किया था। पहले जहाँ ये अवार्ड केवल उन लोगों को मिलते थे जो इसके लिए अप्लाई करते थे। उस प्रक्रिया में केवल उन लोगों का नाम आ पाता था था जिन्हें अवार्ड के बारे में पता होता था और जानकारी होती थी कि इसका कब नामांकन करना है, कहाँ उसे जमा कराना है, क्या सोर्स लगानी है आदि-आदि… ये सब बिंदु मिलकर निर्धारित करते थे कि किसका नाम यूपीए शासन में पद्म पुरस्कार के लिए घोषित होगा। इस प्रक्रिया में नतीजा ये दिखता था कि सर्वोच्च सम्मान के अधिकारी समाज का एक निश्चित वर्ग रह जाता था। तब, उन लोगों को अवार्ड ज्यादा मिलता था जो सरकार के करीबी होते थे, वहीं असली संघर्ष करने वाले गुमनाम ही रह जाते थे। मगर, अब स्थिति बदल गई है। आज के समय में ये पुरस्कार देने से पहले किसी का बैकग्राउंड या राजनैतिक पार्टी नहीं देखी जाती, उनके कार्यों को देखा जाता है।