Monday, December 23, 2024
Homeदेश-समाजवकीलों ने अदालत के लॉकअप में लगा दी आग, 100 बंदियों की जा सकती...

वकीलों ने अदालत के लॉकअप में लगा दी आग, 100 बंदियों की जा सकती थी जान

"उनकी नीयत लॉकअप तोड़ने की थी लेकिन वे ऐसा कर नहीं पाए। हमने अंदर से बाल्टियों में पानी भर-भर के आग बुझाई। लेकिन (एक वाहन के) टैंक में विस्फोट होने से आग और धुआँ लॉकअप में भरने लगे।"

दिल्ली में हुए दिल्ली पुलिस और तीस हजारी कोर्ट के वकीलों के बीच के संघर्ष को लेकर रोज़ नए और स्तब्ध कर देने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। हमने पहले ही देखा कि कैसे हथियारबंद पुलिस के चोटी के अफसरों को गत शनिवार (2 नवंबर, 2019 को) निहत्थे वकीलों ने बेख़ौफ़ होकर पीटा- जिन्हें शायद पता था कि हथियारों से लैस होने के बावजूद पुलिस वाले उन्हें निकाल कर आत्म रक्षा के लिए भी इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं करेंगे, और जाहिर तौर पर उन्हें क़ानूनी कार्रवाई का भी डर नहीं था।

और अब खबर आ रही है कि उस दिन वकील केवल एडिशनल डीसीपी (नॉर्थ) हरिंदर सिंह, एसीपी सिविल लाइन्स राम मेहेर सिंह और डीसीपी नॉर्थ मोनिका भरद्वाज समेत पुलिस वालों के साथ हाथापाई करने और पुलिस व आम आदमी की गाड़ियाँ जलाने भर से नहीं रुके थे, बल्कि उन्होंने अदालत के परिसर में सुनवाई के लिए आए कैदियों को ठहराने के लिए बने लॉक अप को भी आग के हवाले कर दिया था। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट में किए गए दावे के मुताबिक वह लॉक अप भी उस समय खाली नहीं बल्कि भरा हुआ था। उसमें 100 के करीब बंदी थे- जिनमें से कई दंगाई वकीलों के खुद के नहीं तो किसी न किसी वकील के तो मुवक्किल रहे ही होंगे, जिनकी फीस से उन वकीलों की रोजी-रोटी चल रही होगी।

पहले दंगाईयों के हाथों मार खाने वाले, और उसके बाद घटना के अगले दिन यानि 3 नवंबर, 2019 को दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर स्थानांतरित किए गए एडिशनल डीसीपी (नॉर्थ) हरिंदर सिंह ने टाइम्स नाउ से बात करते हुए बताया कि वकीलों ने लॉकअप के चारों ओर बाकायदा पेट्रोल छिड़क कर आग लगाई थी- यानि यह कोई हादसा या अनजाने में भड़की आग नहीं थी। “उनकी नीयत लॉकअप तोड़ने की थी लेकिन वे ऐसा कर नहीं पाए। हमने अंदर से बाल्टियों में पानी भर-भर के आग बुझाई। लेकिन (एक वाहन के) टैंक में विस्फोट होने से आग और धुआँ लॉकअप में भरने लगे।” उन्होंने बताया कि उस समय लॉकअप में करीब 100 बंदी थे, जो अगर पुलिस हस्तक्षेप न करती तो जान से हाथ धो बैठते।

अगर एडिशनल डीसीपी (नॉर्थ) हरिंदर सिंह की बात सच निकलती है, तो यह एक गंभीर आरोप ही नहीं है- यह इस ओर भी इंगित करता है कि यह हिंसा उतना सीधे ईगो में आकर हाथापाई और उसके बाद पुलिस व वकीलों के अपने-अपने ‘कैम्पों’ के पक्ष में उतर पड़ना भर नहीं है, जैसा दिख रहा है। यदि वकीलों ने लॉकअप को पहले तोड़ने की कोशिश की और उसमें असफ़ल रहने पर आगजनी का सहारा लिया, जैसा कि एडिशनल डीसीपी (नॉर्थ) का दावा है, तो यह निष्पक्ष और बेहद गंभीर जाँच का विषय होना चाहिए कि यह जेल तोड़ने का प्रयास महज़ गुस्से की अभिव्यक्ति था, या इसके पीछे कोई ठंडे दिमाग से बनाई गई योजना थी।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

किसी का पूरा शरीर खाक, किसी की हड्डियों से हुई पहचान: जयपुर LPG टैंकर ब्लास्ट देख चश्मदीदों की रूह काँपी, जली चमड़ी के साथ...

संजेश यादव के अंतिम संस्कार के लिए उनके भाई को पोटली में बँधी कुछ हड्डियाँ मिल पाईं। उनके शरीर की चमड़ी पूरी तरह जलकर खाक हो गई थी।

PM मोदी को मिला कुवैत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ : जानें अब तक और कितने देश प्रधानमंत्री को...

'ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' कुवैत का प्रतिष्ठित नाइटहुड पुरस्कार है, जो राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी शाही परिवारों के सदस्यों को दिया जाता है।
- विज्ञापन -