महात्मा गाँधी दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति (अश्वेत) बनने वाले हैं, जो ब्रिटिश मुद्रा में नज़र आएँगे। ब्रिटिश राज कोष विभाग ने इस ऐतिहासिक कदम का ऐलान शनिवार के दिन किया। वह भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को वहाँ की मुद्रा में प्रकाशित करने के लिए पूरी तरह तैयार है। ब्रिटिश सरकार ने यह फैसला वंचित वर्ग के लिए किए गए बापू के योगदान को देखते हुए लिया।
महात्मा गाँधी भारतीय मुद्राओं (नोट और सिक्कों) में साल 1987 से लगातार नज़र आ रहे हैं, हालाँकि 1969 में पहली बार उन्हें 100 रुपए के संस्मरणीय नोट पर छापा गया था। अब वह ऐसे पहले (अश्वेत) व्यक्ति बनने वाले हैं जो ब्रिटिश मुद्रा में नज़र आएँगे।
ब्रिटेन की रॉयल मिंट एडवाईज़री कमिटी इस मामले में काम शुरू कर चुकी है। इस मामले में चांसलर ऋषि सूनक ने भी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने BAME अभियान (ब्लैक, एशियन एंड माइनॉरिटी एथिनिक) को समर्थन दिया। साथ ही माँग उठाई कि ऐसे लोगों ने ब्रिटेन के लिए बहुत योगदान दिया है। ऐसे योगदानों का सम्मान और उल्लेख किया जाना चाहिए।
पूर्व कंज़रवेटिव दावेदार ज़ेहरा ज़ैदी “We Too Built Britain” नाम के अभियान की मुखिया हैं। इस अभियान से जुड़े लोगों ने भी माँग उठाई थी कि ब्रिटिश मुद्रा में महात्मा गाँधी और उन जैसे कई लोगों को जगह दी जानी चाहिए। ज़ेहरा ज़ैदी को लिखे पत्र में ऋषि सूनक ने कई अहम बातें लिखीं। उन्होंने लिखा:
“एशियाई, श्वेत और अन्य जातीय अल्पसंख्यक समुदायों ने यूनाइटेड किंगडम के साझा इतिहास में उल्लेखनीय किरदार निभाया है। जिसे किसी भी सूरत में भुलाया नहीं जा सकता है।”
इसके अलावा उन्होंने यह भी लिखा, “इस देश (यूके) के लिए तमाम जातीय अल्पसंख्यक समुदायों ने लंबी लड़ाई लड़ी है। इस देश की नींव तैयार करने में न जाने कितने लोगों की जानें गई हैं और उनका ज़िक्र बहुत कम मिलता है। हमने अपने बच्चों को हमेशा यही सिखाया है कि बीमारी की देखभाल करनी चाहिए और बड़ों का सम्मान करना चाहिए। नतीजतन हमारे लोगों ने अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति से अच्छा व्यवसाय शुरू किया है। जिससे बहुत से नौकरियाँ पैदा हुई हैं और देश का विकास हुआ है।”
रॉयल मिंट एडवाईज़री कमिटी विशेषज्ञों की एक स्वतंत्र संस्था है। जो चांसलर को सिक्कों के आकार और संरचना का सुझाव देती है। ऋषि सूनक ने इस संस्था के प्रमुख को लिखे पत्र में भी कुछ अहम बातें लिखी।
ऋषि सूनक ने लिखा, “मैं यह पत्र रॉयल एडवाईज़री कमिटी की पीठ के मुखिया लार्ड वॉलडेग्रेव को लिख रहा हूँ। इसे वह एशियाई, अश्वेत और जातीय अल्पसंख्यकों का देश के लिए किया गया योगदान समझें। उनका योगदान सिर्फ इतिहास तक सीमित नहीं है बल्कि उन्होंने ब्रिटेन के वर्तमान और भविष्य के लिए भी योगदान दिया है।”