स्वामी विवेकानंद को लेकर गाँधी जी ने कहा था- "मैंने उनके कार्यों को बड़े गहरे से अध्ययन किया है, और उन्हें पढ़ने के बाद, जो प्रेम मुझे अपने देश के लिए था, वह हजार गुना बढ़ गया।"
"मैं अगर तुम्हें कस्तूरबा को पेनिसिलिन देने की आज्ञा दे देता, तो भी वो नहीं बचती। लेकिन ये मेरी आस्था की धज्जियाँ उड़ाने जैसा होता। वो मेरी गोद में मरी, इससे बेहतर कुछ हो सकता था?"