केरल में 2648 मंदिरों में अब ओलियंडर के फूलों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। केरल में 2 मंदिर न्यासों ने इस बारे में फैसला लिया है, क्योंकि ओलियंडर के फूलों की वजह से एक 24 साल की नर्स की मौत हो गई थी। इसके बाद ओलियंडर के फूलों के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया गया है। ओलियंडर के फूलों को करवीर या अरली भी कहते हैं, ये कनेर के नस्ल से जुड़ा है।
केरल के मंदिरों में ओलियंडर पर बैन लगाने का फैसला मंदिर प्रबंधन से जुड़े 2 बोर्ड ने लिया है। केरल में सबसे ज्यादा मंदिरों का प्रबंधन 2 देवास्वोम बोर्ड करते हैं। पहला-त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड और दूसरा मालाबार देवास्वोम बोर्ड। त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड 1248 मंदिरों का प्रबंधन करता है और मालाबार देवास्वोम बोर्ड 1400 मंदिरों का। अब इन मंदिरों में ओरियंडर के फूल नहीं दिखेंगे।
क्या है पूरा मामला?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल के अलाप्पुझा में 30 अप्रैल को 24 साल की नर्स सूर्या सुरेंद्रन की संदिग्ध मौत हो गई। शुरुआती जाँच में पता लगा कि सुरेंद्रन की मौत ओलियंडर के जहर के चलते हुई। रिपोर्ट के मुताबिक सुरेंद्रन की ब्रिटेन में नौकरी लगी थी। 28 अप्रैल को वह रवाना होने वाली थीं। उसी सुबह उन्होंने फोन पर बात करते हुए गलती से अपने घर में लगे ओलियंडर से कुछ पत्ते तोड़कर चबा लिए।
सुरेंद्र को पता नहीं था कि ये जहरीला है। थोड़ी देर बाद उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी और उल्टियां हुईं। उसी दिन वह कोच्चि एयरपोर्ट पर गिर पड़ीं और कुछ दिनों बाद अस्पताल में उनकी मौत हो गई। अस्पताल में इलाज के दौरान डॉक्टरों ने उनसे पूछा कि उन्होंने क्या खाया था? तो बताया कि उन्होंने ओलियंडर की पत्तियां चबा ली थी। बाद में पोस्टमार्टम हुआ तो पता लगा कि सुरेंद्रन की मौत ओलियंडर के जहर के चलते हुई।
नेरियम ओलियंडर, जिसे आमतौर पर ओलियंडर या रोज़बे के नाम से जाना जाता है, दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में उगने वाला एक पौधा है। इस पौधे की खास बात यह है कि यह सूखा भी झेल लेता है। सर्वाइव करने के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है। भारत के तमाम इलाकों में यह पौधा पाया जाता है। केरल में, इस पौधे को अरली और कनाविरम के नाम से जाना जाता है। वहाँ हाईवे और समुद्र तटों के किनारे बड़ी संख्या में इन्हें लगाया जाता है। ओलियंडर की एक दर्जन से ज्यादा किस्में होती हैं और प्रत्येक में अलग-अलग रंग का फूल होता है।
पारंपरिक दवाओं में इस्तेमाल
आयुर्वेदिक फार्माकोपिया ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में ओलियंडर के औषधीय गुणों का विस्तृत वर्णन है। इसमें बताया गया गया है कि ओलियंडर की जड़, छाल से तैयार तेल का उपयोग त्वचा रोगों के इलाज के लिए किया जा सकता है। ओलियंडर का जिक्र बृहत्रयी, निघंटस और अन्य आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी मिलता है। चरक संहिता में भी इसका जिक्र है। कहा गया है कि ये कुष्ठ रोग सहित गंभीर प्रकृति की पुराने त्वचा रोगों से निपटने में लाभदायक है। ओलियंडर, कनेर के परिवार का पौधा है।
ओलियंडर फ्लॉवर कितना जहरीला?
बता दें कि ओलियंडर के पौधे का इस्तेामल हर्बल मेडिसिन के तौर पर 15वीं शताब्दी से किया जा रहा है। हालाँकि इसका इस्तेमाल बहुत ध्यान रखते हुए किया जाता है क्योंकि यह जहरीला होता है। इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि ओलियंडर से दूरी बनाना ही बेहतर है। हालाँकि दक्षिण एशिया के कुछ देशों में इसका इस्तेमाल आत्महत्या करने के लिए किया जाता है।