देश की राजधानी दिल्ली के उत्तर (उत्तरी दिल्ली) में पाकिस्तान से 2011 के बाद से ही अलग-अलग समय पर आए हिन्दू शरणार्थियों के तीन कैंप हैं- मजलिस पार्क आदर्श नगर, मजनू का टीला और सिग्नेचर ब्रिज। तीनों ही जगहों पर करीब 450 परिवारों को जीवन के लिए जरूरी कई मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है। बिजली, पानी, शौचालय जैसी कई बेसिक सुविधाओं के लिए यह लोग 2013 से ही प्रयासरत हैं। हालाँकि इन कैम्पों प्रधानमंत्री स्वच्छता मिशन के तहत कुछ शौचालयों का निर्माण हुआ है लेकिन बिजली की समस्या अभी भी बनी हुई है। जो इनके कई दूसरी समस्याओं की वजह भी है-फिर चाहे वह स्वास्थ्य से जुड़ी हो, शिक्षा से या साँप-बिच्छुओं से सुरक्षा से।
इन सबके बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS), सेवा भारती, बजरंग दल, हिन्दू सेवा संघ जापान (HSS Japan) के साथ ही कुछ छिट-पुट NGO भी समय-समय पर पाकिस्तान से आए इन हिन्दुओं के लिए उम्मीद की किरण हैं। इसमें से खासतौर से बात HSS जापान अर्थात हिन्दू सेवा संघ जापान की जो आदर्श नगर के कैंप में एक तय मॉडल के तहत बच्चों-महिलाओं को क्रिएटिव एक्टिविटी, नृत्य, संगीत और भजन की शिक्षा के साथ ही स्किल डेवलॅपमेन्ट के तहत सिलाई और ब्यूटीपार्लर की बुनियादी जानकारी और प्रशिक्षण के माध्यम से उन्हें आजीविका के लिए सक्षम बना रही है।
ऑपइंडिया की टीम ने दिवाली से पहले बिजली की मुख्य माँगों को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान से आए हिन्दुओं की समस्याओं को नजदीक से जानने-समझने के लिए इन तीनों कैम्पों में गई। लेकिन पहले बात आदर्श नगर कैंप की जहाँ HSS जापान की मदद से वहाँ रहने वाले 800 से अधिक लोगों के लिए जो कुछ भी किया जा रहा है वह काबिले तारीफ है। HSS के कार्यों के बारे में वहाँ के मास्टर मूलचंद ने विस्तार से बताया।
जब ऑपइंडिया की टीम उनसे मिलने गई तो वहाँ कुछ बच्चियाँ डांडिया नृत्य की प्रैक्टिस करती नजर आईं। वहाँ एक छोटा से साउंड सिस्टम पर ‘लव रात्रि’ फिल्म का गीत, “चोगाड़ा तारा, ओए छबीला तारा, ओए रंगीला तारा रंगभेरू जुवे तारी बात रे” गीत बज रहा था। जिस पर बच्चियाँ नृत्य का अभ्यास कर रहीं थी।
तभी बच्चियों ने मास्टर मूलचंद को बुलाया। पाकिस्तान के सिंध सूबा के हैदराबाद से आए मास्टर जी ने औपचारिक परिचय के बाद पाकिस्तान में हिन्दुओं की भयावह स्थिति का वर्णन करते हुए अपने हरिद्वार यात्रा के बहाने बड़ी मुश्किल से भारत आने की कहानी भी सुनाई। मास्टर मूलचंद 2020 में तीर्थयात्रा के लिए भारत आए करीब 100 परिवारों के दल का हिस्सा हैं। लेकिन उनकी हरिद्वार यात्रा अभी भी अधूरी है क्योंकि वह गए ही नहीं। उन्हें हिन्दुओं के लिए एक मात्र देश में बस बसने की चाहत थी। यहाँ होना ही उनके लिए सबसे बड़ी तीर्थ यात्रा और सुकून का क्षण है। हालाँकि यहाँ उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
बस्ती की समस्याओं को परे रखते हुए उन्होंने अपने ‘बाल संस्कार केंद्र’ में क्या सुविधाएँ हैं। पहले उनके बारें में बताया। उन्होंने वह कमरा भी दिखाया जिसमें बच्चियाँ पॉर्लर सीखती हैं। जहाँ पहले 6 महीने तक एक ट्रेनर बाहर से ट्रेनिंग देने के लिए आती रहीं। फिर बस्ती की कई महिलाएँ और लड़कियाँ जब सीख गईं तो बाकियों को वे स्वयं सिखाने लगीं। उनका पार्लर सिखाने का कमरा उनके छोटे से मंदिर के बगल में था जहाँ बच्चे पूजा-पाठ भी सीखतें हैं। साथ ही बाल संस्कार केंद्र में ही समय-समय पर भजन कीर्तन के कार्यक्रमों के साथ, नृत्य और संगीत का प्रदर्शन भी होता है।
बगल के कमरे में एक सिलाई केंद्र है जहाँ बच्चियों और महिलाओं को सिलाई सिखाया जाता है। उस कमरे में कई सिलाई मशीन के साथ एक छोटा सा लैपटॉप भी नजर आया जिस पर ऑनलाइन क्लासेस चलता है। चूँकि बस्ती में बिजली का अभाव है ऐसे में वहाँ शिक्षा और प्रशिक्षण से जुड़े कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए HSS जापान की तरफ से चार सोलर पैनल दिया गया है। जिससे वहाँ बिजली से चलने वाले कुछ उपकरण काम करते हैं। साथ ही इस केंद्र को चलाने के लिए सिलाई मशीन ‘केन्या सिंधी साथी संस्था’ द्वारा उपलब्ध कराई गई है।
वहाँ पर हमें HSS द्वारा आयोजित कोविड वैक्सीनेशन कैंप आदि के बारें में भी पता चला। गणेश चतुर्थी पूजा सहित, बच्चों की नृत्य प्रस्तुति के आयोजन के बारे में भी कैंप के लोगों ने बताया। जिसका दूसरा मतलब यह भी है कि कैंप में दिखावटी नहीं बल्कि वास्तविकता में कुछ बुनियादी सुधार और प्रशिक्षण कार्य चल रहा है। जिसका बस्ती में रहने वाले बच्चे-बच्चियों के साथ वहाँ की महिलाओं को भी लाभ मिल रहा है।
मास्टर मूलचंद ने इनसबके साथ हमें बिजली के अभाव बारे में बताया। साथ ही अपनी उस लड़ाई के बारे में भी जो कैंप के लोग बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए पिछले 8 सालों से लड़ रहे हैं। जिस पर ऑपइंडिया ने आदर्श नगर पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी कैंप के प्रधान नेहरू लाल से विस्तार से बात की है।
मास्टर मूलचंद के साथ जब हम बस्ती की बच्चियों, महिलाओं और दूसरे लोगों से मिलने के लिए निकले तो चारों तरफ से आने वाले नाले के पानी और खासतौर से बारिश में झेले जाने वाले अपने उस दौर के बारे में भी बताया जब बस्ती में घुटने से ज़्यादा पानी भर जाता है और ये लोग सड़क पर होते हैं। जहाँ से भी इन्हें वापस खदेड़ दिया दिया जाता है क्योंकि उनके पास कोई लिखित परमीशन नहीं होता। तब कई लोग बस्ती में रुके पानी में मच्छरों के प्रकोप के कारण डेंगू और मलेरिया के शिकार होते हैं।
इस साल भी कई शिकार हुए और कुछ अभी भी कैंप में बीमार हालत में मौजूद थे। जो आधार कार्ड या भारत का कोई भी स्थाई प्रमाण पत्र न होने के कारण ये सरकारी अस्पताल में अपना ईलाज भी नहीं करा पातें। मजबूरन इन्हें प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ता है और अपनी खस्ताहाल ज़िन्दगी में बड़ी आर्थिक मार झेलनी होती है। जो किसी तरह दिहाड़ी मजदूरी या मोबाइल के कवर-वगैरह बेचकर गुजारा करने वाले इन परिवारों के लिए समस्या को और बढ़ाने वाली होती है।