Sunday, November 17, 2024
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एकेडमी लड़कियों के लिए नहीं थी, महिला क्रिकेट की नई सनसनी शैफाली वर्मा ने ‘लड़का’ बन ली थी ट्रेनिंग

"कोई मेरी बेटी को लेना नहीं चाहता था क्योंकि रोहतक में लड़कियों के लिए एक भी एकेडमी नहीं थी। मैंने उनसे भीख माँगी कि उसे एडमिशन दे दें, लेकिन किसी ने नहीं सुनी।"

बॉलीवुड की फ़िल्म ‘दिल बोले हड़िप्पा’ की रानी मुखर्जी याद है आपको! इस फ़िल्म में वीर कौर (रानी मुखर्जी) को लड़की होने की वजह से जब क्रिकेट की ट्रेनिंग नहीं मिल पाती, तो वो वीर प्रताप सिंह यानी लड़का बनकर क्रिकेट टीम में शामिल हो जाती है। इस दौरान वो न सिर्फ़ भारतीय टीम का हिस्सा बनती है बल्कि पाकिस्तान के साथ होने वाले एक स्थानीय मैच में नया इतिहास भी रचती है।

ऐसा ही कुछ कर दिखाया है हरियाणा के रोहतक ज़िले की रहने वाली शैफाली वर्मा ने। दरअसल, उनके होम टाउन में लड़कियों के लिए कोई एकेडमी नहीं थी और हरियाणा के रोहतक ज़िला के सभी क्रिकेट एकेडमी ने उन्हें एडमिशन देने से साफ़ इनकार कर दिया था।

दक्षिण अफ्रीका महिला क्रिकेट टीम के ख़िलाफ़ सूरत में मंगलवार (1 अक्टूबर) को खेले गए मुक़ाबले में भारतीय महिला टीम को जीत दिलाने में शैफाली वर्मा ने अहम योगदान दिया था। इस युवा खिलाड़ी के बारे में बता दें कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम में सबसे कम उम्र में टी-20 इंटरनेशनल में डेब्यू करने वाली 15 साल की बैट्समैन शैफाली ने क्रिकेट के लिए जुनूनी पिता संजीव वर्मा के निर्देश पर अपने बाल कटवा दिए थे।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया से हुई बातचीत में शैफाली के पिता संजीव ने बताया,  “कोई मेरी बेटी को लेना नहीं चाहता था क्योंकि रोहतक में लड़कियों के लिए एक भी अकैडमी नहीं थी। मैंने उनसे भीख माँगी कि उसे एडमिशन दे दें, लेकिन किसी ने नहीं सुनी।”

उन्होंने बताया, “मैंने कई क्रिकेट एकेडमी का दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन हर जगह रिजेक्शन मिला। तब मैंने अपनी बेटी के बाल कटवा कर उसे एक अकैडमी ले गया और लड़के की तरह उसका एडमिशन कराया।”

लड़का बन कर शैफाली जब लड़कों की टीम के साथ क्रिकेट खेलती, तो उन्हें कई बार गंभीर चोटें भी आईं, लेकिन उनकी परवाह किए बिना वो लगातार आगे बढ़ती गईं। शैफाली के पिता के अनुसार,

“लड़कों के ख़िलाफ़ खेलना आसान नहीं था क्योंकि अक्सर उसकी हेलमेट में चोट लगती थी। कुछ मौक़ों पर बॉल उसके हेलमेट ग्रिल पर लगती थी, मैं डर जाता था, लेकिन उसने हार नहीं मानी।”

शुरूआती दौर में शैफाली के पिता को पड़ोसियों और रिश्तेदारों के तमाम ताने सुनने पड़े। उन दिनों को याद करते हुए वो कहते हैं, “पड़ोसी और रिश्तेदारों ने ताने मारने शुरू कर दिए थे। तुम्हारी लड़की लड़कों के साथ खेलती है, लड़कियों का क्रिकेट में कोई भविष्य नहीं है।” उन्होंने कहा, “मुझे और मेरी बेटी को इतना सुनना पड़ा कि कोई भी परेशान हो जाए, लेकिन शैफाली ने एक दिन मुझसे कहा- ये लोग किसी दिन मेरे नाम के नारे लगाएँगे।” इसके बाद परिस्थितियाँ तब बदलीं जब उनके स्कूल ने लड़कियों के लिए क्रिकेट टीम बनाने का फ़ैसला लिया।

शैफाली में क्रिकेट का पैशन उस वक़्त शुरू हुआ जब सचिन तेंदुलकर 2013 में अपना अंतिम रणजी मैच खेलने आए थे। उस समय शैफाली महज़ 9 साल की थी, जो सचिन के समर्थन में नारे लगा रही थी। वहीं से शैफाली के मन में क्रिकेट के लिए एक अलग जगह बन गई। शैफाली को भारतीय टीम में खेलने का मौका तब मिला जब उन्होंने घरेलू सीजन में 1923 रन बनाए, जिसमें छह शतक और तीन अर्ध शतक शामिल हैं। उस समय शैफाली 10वीं कक्षा की छात्रा थीं, शैफाली का कहना है कि उनका लक्ष्य भारत के लिए अधिक से अधिक मैच खेलना है और देश के लिए मैच जीतना है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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