इन दिनों सोशल मीडिया पर मांसाहारी और शाकाहारी भोजन को लेकर एक विवाद छिड़ा हुआ है। हाल ही में, ऑनलाइन फूड कंपनी ज़ोमैटो (Zomato) का एक विवाद सोशल मीडिया पर सामने आया, जब एक हिन्दू ग्राहक ने ऑडर लेने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि डिलीवरी ब्वॉय दूसरे समुदाय से था। इसके पीछे कारण था कि हिन्दू ग्राहक श्रावण के महीने में ग़ैर-हिन्दू के हाथ से ऑर्डर स्वीकार नहीं करना चाहता था।
एक हिन्दू ग्राहक होने के नाते इस मुद्दे को न सिर्फ़ तूल दिया गया बल्कि ज़ोमैटो ने खाने की डिलीवरी के साथ-साथ ज्ञान देना भी शुरू कर दिया, जिसमें बताया गया कि खाने का कोई मज़हब नहीं होता बल्कि खाना अपने आप में मज़हब होता है।
इसी कड़ी में आइए नज़र डालते हैं हलाल से जुड़ी कुछ अन्य बातों पर, जिनसे पता चलता है कि समुदाय विशेष अपने नियम के तहत गै़र-मुस्लिम के हाथ का मांस हराम तक मानते हैं।
हलाल केवल एक मुस्लिम व्यक्ति ही कर सकता है। इसका मतलब साफ़ है कि हलाल फर्म में गैर-मुस्लिमों को रोज़गार से वंचित रखा जाता है। इसके अलावा कुछ और भी शर्तें हैं, जिन्हें अवश्य पूरा किया जाना चाहिए। जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह हलाल पूरी तरह से एक इस्लामी प्रथा है। भारत में हलाल के एक प्रमाणीकरण और प्राधिकरण की आधिकारिक वेबसाइट पर दिशानिर्देश उपलब्ध हैं जो यह स्पष्ट करता है कि पशु वध प्रक्रिया (हलाल) के किसी भी हिस्से में गैर-मुस्लिम कर्मचारियों को रोज़गार नहीं दिया जा सकता है।
पूरे दस्तावेज़ में इस्लामी पशु वध के दिशानिर्देशों को सूचीबद्ध किया गया है, इसमें शामिल कर्मचारियों के धर्म का उल्लेख करने के लिए ध्यान रखा गया है। यह स्पष्ट करता है कि केवल समुदाय विशेष के कर्मचारियों को ही हलाल के हर चरण में भाग लेने की अनुमति है। यहाँ तक कि मांस का लेबल लगाने का काम भी मजहब के ही लोग कर सकते हैं।
यूरोपीय संघ के हलाल प्रमाणन विभाग ने यह और भी स्पष्ट कर दिया है कि हलाल फ़र्म में रोज़गार के अवसर विशेष रूप से इस्लाम के अनुयायियों के लिए उपलब्ध होंगे। इसमें कहा गया है, ”पशु वध एक वयस्क मुस्लिम द्वारा किया जाना चाहिए। एक ग़ैर-मुस्लिम द्वारा मारा गया जानवर हलाल नहीं कहलाएगा।” इसमें आगे कहा गया है, “जानवर का वध करते समय अल्लाह का नाम (उल्लेखित) लिया जाना चाहिए: बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर यानी (अल्लाह के नाम पर; अल्लाह सबसे महान है)। यदि पशु का वध करते समय किसी दूसरे का नाम (अर्थात जिसके लिए पशु की बलि दी जा रही हो) अल्लाह का नाम नहीं लिया जाता है, तो वो मांस हराम यानी, ‘ग़ैर-क़ानूनी’ हो जाता है।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि जब कोई व्यक्ति माँग करता है कि उसे केवल हलाल मांस परोसा जाए, तो वो शख़्स न केवल आहार वरीयता का प्रयोग कर रहा है, बल्कि वो यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि उस जानवर का वध करने की प्रक्रिया से लेकर उसके लेबल लगाने तक में समुदाय विशेष का हाथ है या नहीं?
इसके अलावा, समुदाय विशेष को अपने धर्म ग्रंथों द्वारा ग़ैर-हलाल भोजन का सेवन करने से रोका गया है। इस प्रकार, जब एक मुस्लिम विशेष रूप से हलाल मांस की माँग करता है, तो ऐसे में वह साफ़ तौर पर ऐसी सेवा की माँग कर रहा होता है, जो केवल मजहब के लोगों द्वारा दी जा सकती हो। बेहद साफ़ है कि एक समुदाय विशेष का शख्स अपनी धार्मिक पहचान के कारण एक ग़ैर-मुस्लिम से सेवा लेने से इनकार करता है।
हलाल प्रमाणन विभाग भी पशु वध (Slaughtering) के इस्लामी तरीके के बारे में दिशानिर्देश देता है। इसमें कहा गया है कि जानवर का क़त्ल तेज़ चाकू का इस्तेमाल कर सिर्फ़ एक झटके में किया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि विंडपाइप (गला), फूड-ट्रैक्ट (ग्रासनली) और दो गले की नसों को एक ही झटके में काट देना चाहिए। ध्यान रखा जाना चाहिए कि सिर अलग न होने पाए और रीढ़ की हड्डी को भी न काटें। नियम तो यह भी कहते हैं कि एक मशीन द्वारा वध किया गया मांस हलाल की श्रेणी में नहीं आता, जानवर का क़त्ल एक समुदाय विशेष के व्यक्ति द्वारा ही होना चाहिए।
यह एक संपूर्ण उद्योग है जहाँ कुछ क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर गैर-मुस्लिमों के लिए पूरी तरह से बंद और प्रतिबंधित हैं। यह न केवल हिंदू धर्म के लोगों, बल्कि ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और अन्य लोगों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया है।
बहुत से लोग यह कहेंगे कि शाकाहारी भोजन की तरह ही हलाल भोजन की माँग करना अपनी-अपनी पसंद की बात है। लेकिन यह पूरी तरह से ग़लत है। जबकि लोग अपनी पसंद से शाकाहारी बन जाते हैं, समुदाय विशेष के लोगों के पास इस संदर्भ में कोई विकल्प नहीं है। इस्लामी नियम उन्हें हराम या ग़ैर-हलाल भोजन का सेवन करने से मना करता है, उन्हें केवल हलाल भोजन का सेवन ही करना होता है।
हलाल के नियम क़ुरान से हदीस और सुन्नत में निहित हैं और इस्लाम के अनुयायियों को इन नियमों का पालन करना पड़ता है। जैसे अधिकांश हिंदुओं के लिए गोमांस नहीं खाना केवल व्यक्तिगत पसंद का मामला नहीं है। एक समुदाय विशेष का व्यक्ति जो सूअर का मांस खाने से इनकार करता है या किसी ग़ैर-मुस्लिम द्वारा मारे गए जानवर का मांस, मात्र पसंद का मामला नहीं है, दोनों ही मामलों में मांस का सेवन करने से धर्म उन्हें रोकता है।