‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल।’ आज हिंदी का दिन है तो भाषा के महत्व को इस दोहे से ज्यादा बेहतर नहीं समझा जा सकता। हिंदी केवल भाषा नहीं बल्कि यह जीवन जीने का एक तरीका है। हिंदी हमारी पहचान है, हमारी संस्कृति है, और हमारी सभ्यता है।
हिंदी का एक गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। पूरे विश्व में हिंदी की एक अलग पहचान है। आज का दिन हिंदी भाषा और हिंदी भाषी लोगों, दोनों के लिए बेहद ही खास दिन है, जिसे ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के रूप में देश-विदेश में मनाया जाता है।
विश्व हिन्दी दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य हिंदी को विश्व में प्रचारित-प्रसारित करना, हिंदी के प्रति जागरूकता पैदा करना, इसके प्रति अनुकूल वातावरण तैयार करना, हिंदी के प्रति लोगों में अनुराग पैदा करना और इसे अंतरराष्ट्रीय पटल पर विश्व-भाषा के रूप में स्थापित करना है।
विदेशों में स्थित भारतीय दूतावास और देश में स्थित सभी सरकारी कार्यालय इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। इस शुभ अवसर पर विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किए जाते हैं। हिंदी विषय पर कविताओं, निबंध प्रतियोगिता समेत अनेकों सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
जो अधिकारी या कर्मचारी पूरे वर्ष में अधिक से अधिक काम हिंदी में किए होते हैं, वे पुरस्कृत भी होते हैं। हालाँकि करोना महामारी के कारण भले ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में कमी आई है, लेकिन कई वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें दुनिया भर से अनेकों हिंदी भाषा प्रेमी हिस्सा ले रहे हैं। हिन्दी में व्याख्यान ऑनलाइन आयोजित किए जा रहे हैं।
आइए अब बात करते है कुछ अतीत के पन्नों की, जब इस गौरवपूर्ण भाषा के प्रचार-प्रसार को लेकर अनेकों परिस्थितियों का निर्माण हुआ था। सबसे पहले तो हम बात करेंगे दिवगंत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देने की परंपरा की शुरुआत की थी। इस परंपरा को हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे ले जा रहे हैं।
विश्व में हिन्दी के विकास तथा इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई थी। माना जाता है कि पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था, इसीलिए इस दिन को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा 10 जनवरी को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की गई थी। जिसके बाद से विदेश मंत्रालय ने विदेशों में 10 जनवरी 2006 को पहली बार ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाया था।
बहुत बार लोग ‘हिंदी दिवस’ और ‘विश्व हिंदी दिवस’ में भ्रमित हो जाते हैं। बता दें कि ‘हिंदी दिवस’ और ‘विश्व हिंदी दिवस’ दो अलग तिथियाँ तथा दिवस हैं। देश में हिंदी भाषा के प्रसार-प्रचार हेतु 14 सिंतबर को ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है।
1949 में इसी दिन संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया था। तभी से इस दिन को ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। सम्पूर्ण भारतीयों के लिए वह गर्व का क्षण था जब भारत की संविधान सभा ने हिंदी भाषा को देश की आधिकारिक राजभाषा के रूप में अपनाया था।
‘विश्व हिंदी दिवस’ का उद्देश्य पूरे विश्व में हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना तथा पूरे विश्व को हिंदी भाषा के माध्यम से एक सूत्र में बाँधना है। हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा को आत्मसात करती है, जिसमें हिंदी भाषा का एक अमूल्य योगदान है।
पूरी दुनिया में हिंदी सबसे प्राचीन एवं प्रभावशाली भाषाओं में से एक है। ऐसे में हमें अपनी हिंदी भाषा को बोलने और लिखने में गर्व महसूस करना चाहिए। सवाल है कि क्या हम इस दिशा में सफल हो पाए हैं? हम सभी को खुद से यह प्रश्न करना चाहिए और सोचना चाहिए कि कैसे हमारी मातृ-भाषा को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर और भी मजबूती मिले।
अप्रवासी भारतीय भाई-बहनों का भी यह कर्त्तव्य बनता है कि इस दिशा में एक सजग प्रयास करें। हम सभी को यह समझना पड़ेगा कि हिन्दी ना केवल एक भाषा है, बल्कि एक आशा है। हमें वचन लेना चाहिए कि हिन्दी में हम सभी काम करेंगे और इस अद्भुत भाषा का नाम करेंगे।