जहाँ एक ओर कॉन्ग्रेस और विपक्षी मीडिया मोदी सरकार पर ‘साइंटिफ़िक टेम्पर’ बर्बाद करने का आरोप लगा रही है वहीं दूसरी ओर भारत दुनिया की सबसे बड़ी अंतरिक्ष दूरबीनों में से एक के निर्माण में महती भूमिका निभा रहा है। 30-मीटर टेलिस्कोप (TMT) नामक यह दूरबीन अमेरिका के हवाई प्रान्त में मौना केआ नामक स्थान पर स्थापित होनी है। यह सहभागिता भारत की कुल सात महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परियोजनाओं में भागीदारी की शृंखला में से एक है।
कई भारतीय संस्थान हैं शामिल
इस परियोजना में भारत की के कई संस्थान अपना योगदान दे रहे हैं। नवभारत टाइम्स ने TMT के सहायक परियोजना प्रबंधक रविंद्र भाटिया के हवाले से बताया है कि इन संस्थानों में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफीजिक्स, आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस, इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स शामिल हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस दूरबीन की स्पष्टता नासा के हबल टेलिस्कोप से 12 गुना अधिक होगी।
विभिन्न स्थानों पर कार्य जारी, 492 हिस्से हैं दूरबीन के आईने में
इस परियोजना के बारे में नेहरू साइंस सेंटर (वर्ली, मुंबई) में वैज्ञानिकों को विज्ञान संगम कार्यक्रम के दौरान सम्बोधित करते हुए TMT इंडिया के सहायक परियोजना निदेशक एएन रामप्रकाश ने जानकारी दी। उन्होंने बताया कि टेलिस्कोप का निर्माण इसी वर्ष प्रारंभ हो जाने की आशा है। साथ ही यह जानकारी भी दी कि भारत न केवल टेलिस्कोप के कंट्रोल सिस्टम और सॉफ्टवेयर बल्कि उपकरणों के विकास में भी महती भूमिका निभाएगा।
इस टेलिस्कोप का प्राइमरी आईना 30 मीटर का होगा जिसके 492 षट्कोणीय हिस्से होंगे। 66 मीटर चौड़े और 56 मीटर ऊँचे इस टेलिस्कोप का सेंसर पुडुचेरी में निर्माणाधीन होगा, जबकि ऐक्चुएटर बंगलुरु में तैयार किया जाएगा। जहाँ टेलिस्कोप कंट्रोल सिस्टम पुणे में तैयार हो रहा है, वहीं कुछ हिस्से मुंबई में भी तैयार किए जाएँगे।