सरस्वती केवल पृथ्वी पर विलुप्त हो चुकी एक नदी का नाम ही नहीं है। दो साल पहले भारत के वैज्ञानिकों के एक दल ने ब्रह्माण्ड में मंदाकिनियों के एक बड़े समूह का पता लगाया था और उसे ‘सरस्वती’ नाम दिया था। कल्पना से भी बड़े गैलेक्सी के इन समूहों को सुपर क्लस्टर कहा जाता है।
जुलाई 2017 में पुणे स्थित इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिज़िक्स (IUCAA) के वैज्ञानिकों ने सरस्वती सुपर क्लस्टर की खोज की थी। यह सुपर क्लस्टर हमसे 4 अरब प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। दूरी की गणना की जाए तो एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है जो प्रकाश एक वर्ष में तय करता है। प्रकाश एक सेकंड में 3 लाख किमी दूरी तय करता है। इस हिसाब से वह एक वर्ष में लगभग 10 खरब किमी तय करेगा।
इस छोटी सी गणित को समझा जाए तो हमें पता चलेगा कि हम सरस्वती सुपर क्लस्टर की जो तस्वीर देख रहे हैं वह आजकल या कुछ साल पहले की नहीं बल्कि उस समय की है जब ब्रह्माण्ड में बड़ी संरचनाएँ जन्म ले रही थीं। उस कालखंड को वैज्ञानिक ‘Large Structure Formation’ की संज्ञा देते हैं। यह बिग बैंग से एक अरब वर्ष बाद का समय था जब बड़ी संरचनाएँ उत्पन्न हुईं। सरस्वती सुपर क्लस्टर आज से 4 अरब वर्ष पहले निर्मित हुआ था।
बिग बैंग से एक लाख वर्ष बाद ब्रह्माण्ड में केवल तरंगें ही व्याप्त थीं, कोई पदार्थ नहीं बना था। इन तरंगों को ‘कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन’ (CMBR) कहा जाता है। इन तरंगों की खोज भी अकस्मात हुई थी। दरअसल 1964-65 में अमेरिका में आर्नो पेंजियास और रॉबर्ट विल्सन एंटीना पर कुछ प्रयोग कर रहे थे कि तभी उन्हें कुछ विचित्र आवाज़ सुनाई दी। जब उन्होंने उसका स्रोत जानने का प्रयास किया तो पाया कि वे तरंगें धरती पर कहीं से नहीं आ रही थीं। वास्तव में वे तरंगें सुदूर अंतरिक्ष में अरबों वर्षों से व्याप्त थीं जब ब्रह्माण्ड अपने शैशवकाल से निकलकर किशोरावस्था में प्रवेश कर रहा था।
कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन ने बिग बैंग थ्योरी को प्रमाणित किया। लेकिन जब मंदाकिनियों के अपनी धुरी पर घूमने की गति मापी गई तो पता चला कि गति के हिसाब से उनका द्रव्यमान (mass) अत्यधिक है। एक गैलेक्सी के सभी तारों, गैस इत्यादि पदार्थों का द्रव्यमान जोड़ा गया तो वह बहुत कम था। अपनी आकाशगंगा की ही बात करें तो उसमें जितना पदार्थ हम देख पाते हैं वह गणितीय आकलन द्वारा प्राप्त द्रव्यमान का मात्र 10% है। तब प्रश्न उठा कि बाकी 90% भार या द्रव्यमान किस वस्तु का है। गैलेक्सी में ऐसी कौन सी वस्तु है जो हमें दिखाई नहीं देती लेकिन उसका भार है।
तब एक थ्योरी आई जिसे हम डार्क मैटर कहते हैं। डार्क मैटर दो प्रकार के बताए गए- कोल्ड डार्क मैटर और हॉट डार्क मैटर। ब्रह्माण्ड में बड़ी संरचनाएँ कैसे बनीं इसकी सर्वाधिक प्रचलित थ्योरी कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी है। कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी के अनुसार ब्रह्माण्ड के जन्म के 1 अरब वर्ष बाद तारे और छोटी गैलेक्सी उत्पन्न हुईं। आज से 4 अरब वर्ष पहले तक ब्रह्माण्ड में सरस्वती जैसे सुपर क्लस्टर का निर्माण कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी के अनुसार नहीं हुआ होगा।
लेकिन अब जब एक सामान्य गैलेक्सी से सैकड़ों गुना बड़ी सरस्वती जैसी बड़ी संरचना खोज ली गई है जो कई मंदाकिनियों का समूह है, तब वैज्ञानिकों को ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी पर पुनर्विचार करना होगा। अब तक तो यही माना जाता रहा कि ब्रह्माण्ड एक जाल की तरह है जिसके तंतु गैलेक्सी हैं। ये मंदाकिनियाँ आपस में जुड़ कर गैलेक्सी की चादर (sheet) बनाती हैं। कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के आरंभ में छोटी गैलेक्सी बनी होंगी। कालांतर में वे जुड़कर क्लस्टर और सुपर क्लस्टर बनी होंगी, लेकिन 250,000 प्रकाश वर्ष बड़ी सरस्वती की खोज ने इन मान्यताओं को धराशाई कर दिया है।