प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘जल जीवन मिशन’ (हर घर नल से जल) को पश्चिम बंगाल, झारखंड, राजस्थान और केरल जैसे राज्य पलीता लगा रहे हैं। वर्ष 2019 में चालू की गई इस योजना में सबसे खराब काम करने वाले राज्य यही हैं। धीमे कार्य के चलते इन राज्यों के करोड़ों नागरिक स्वच्छ जल नहीं पा रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस 2019 के मौके पर देश भर की आबादी को नल से उनके घर तक स्वच्छ जल पहुँचाने के उद्देश्य से ‘जल जीवन मिशन – हर घर जल से नल’ योजना चालू की गई थी। केंद्र सरकार ने इसके लिए लगभग 3.5 लाख करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई थी।
हालाँकि, केंद्र सरकार द्वारा इस योजना पर इतना जोर देने के बाद भी यह चारों राज्य सबसे कम लोगों को पानी पहुँचा पाए हैं। जल जीवन मिशन पर केंद्र सरकार की रिपोर्ट बताती है कि यह राज्य कहीं पीछे हैं।
क्या है ‘जल जीवन मिशन’ की स्थिति
केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, 15 अगस्त, 2019 से पहले देश के मात्र 3.23 करोड़ (16.83%) घरों में ही सीधे नल से जल पहुँच रहा था। वर्तमान में 13.17 करोड़ (68.52%) घरों में नल से जल पहुँच रहा है। हरियाणा, गुजरात और पंजाब जैसे कुछ राज्यों में 100% घरों तक पानी पहुँचाया जा चुका है।
केंद्र सरकार जहाँ इस पर युद्धगति से काम कर रही है तो वहीं यह राज्य 50% से अधिक जनता को पानी नहीं पहुँचा पा रहे हैं। जल जीवन मिशन के अंतर्गत सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य पश्चिम बंगाल है। पश्चिम बंगाल में मात्र 38.12% घरों तक ही इस मिशन के तहत पानी पहुँचाया गया है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आए दिन केंद्र सरकार पर सौतेले व्यवहार का आरोप लगाती हैं लेकिन उनकी खुद की सरकार मूलभूत सुविधा पहुँचाने वाली योजना के तहत काम नहीं कर पा रही है। पश्चिम बंगाल के अलावा जल जीवन मिशन के अंतर्गत सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य झारखंड है जहाँ कॉन्ग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की गठबंधन सरकार है। झारखंड में मात्र 42.80% घरों में पानी पहुँचाया गया है।
पश्चिम बंगाल और झारखंड के अलावा राजस्थान भी इस योजना में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत केंद्र पर राजनीति का आरोप लगाते हैं। राजस्थान के 43.89% घरों में पानी पहुँचाया जा सका है। यह स्थिति तब है जब राजस्थान उन राज्यों में से एक है जो कि पानी की कमी से सबसे ज्यादा जूझते हैं।
इन सभी नामों के अतिरिक्त, देश के वामपंथी तबके के पत्रकारों द्वारा जिस ‘केरल मॉडल’ की प्रशंसा की जाती है वह भी खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है। केरल में इस योजना के तहत मात्र 50.83% घरों में पानी पहुँचाया जा सका है।
हजारों करोड़ ले चुके, काम तब भी आधा-अधूरा
जिन राज्यों का जल जीवन मिशन के अंतर्गत प्रदर्शन फिसड्डी है, वह बड़े पैमाने पर केंद्र सरकार से योजना को पूरा करने के लिए काफी पैसा भी ले चुके हैं। जल जीवन मिशन में केंद्र सरकार राज्यों को लागत का 50% पैसा देती है जबकि बाकी का 50% वह अपने पास से लगाते हैं। पहाड़ी एवं हिमालयी राज्यों में केंद्र सरकार 90% धनराशि देती है।
जल जीवन मिशन की रिपोर्ट बताती है कि राजस्थान वर्ष 2019-20 से लेकर अब इस योजना के तहत राजस्थान 10,360 करोड़ रूपए केंद्र सरकार से ले चुका है। पश्चिम बंगाल 7,249 करोड़ रूपए, झारखंड 3,734 करोड़ रूपए और केरल ने 4,300 करोड़ रूपए केंद्र से इस योजना के लिए ले चुके हैं।
वर्ष 2019 से लेकर अब तक राज्य 1.44 लाख करोड़ रूपए केंद्र से इस योजना के लिए ले चुके हैं।
अन्य योजनाओं में भी फिसड्डी हैं बंगाल और केरल
पश्चिम बंगाल और केरल मात्र ‘जल जीवन मिशन’ ही नहीं बल्कि अन्य योजनाओं में भी फिसड्डी हैं। जल संरक्षण और स्थानीय स्तर पर रोजगार को बढ़ावा देने वाली योजना ‘अमृत सरोवर‘ में भी पश्चिम बंगाल और केरल अन्य राज्यों से कहीं पीछे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त, 2022 को लाल किले की प्राचीर से यह ऐलान किया था कि वर्ष 2023 के स्वतंत्रता दिवस तक देश में 50,000 अमृत सरोवर बनाए जाएँगे। इस मिशन के तहत अच्छी प्रगति हुई है और समय सीमा से पहले ही 50,000 सरोवर बन गए थे।
इस योजना में भी पश्चिम बंगाल और केरल फिसड्डी सिद्ध हुए हैं। ‘मिशन अमृत सरोवर’ डैशबोर्ड के अनुसार, पश्चिम बंगाल में एक वर्ष के बाद भी मात्र 25 अमृत सरोवर पूरे किए जा सके हैं जबकि इसी दौरान केरल में मात्र 851 सरोवर पूरे किए गए हैं। इसी दौरान मध्य प्रदेश में 5167 और उत्तर प्रदेश में 13,014 सरोवर बन चुके हैं।
केंद्र सरकार इन सरोवरों के माध्यम से जल संरक्षण करना चाहती है और उन जलाशयों का उद्धार करना चाहती है जिन पर कब्जा हो गया है जो जीर्ण शीर्ण हालत में हैं। इन सरोवरों को स्थानीय पर्यटन स्थल के रूप में भी बदला जा रहा है जिससे आसपास के युवाओं को रोजगार मिले।