18 फरवरी, 2007 को समझौता एक्सप्रेस में हुए इस धमाके में 68 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें मुख्यतः पाकिस्तानी नागरिक थे। तत्कालीन यूपीए सरकार और जाँच एजेंसियों ने इसके लिए ‘हिन्दू आतंकवादियों’ को दोषी ठहराते हुए उन पर यह धमाका करने का आरोप लगाया था। एनआइए की विशेष अदालत ने स्वामी असीमानंद समेत चारों आरोपियों को इस केस में बरी कर दिया है।
‘कोई दम नहीं ‘मंदिर का बदला’ थ्योरी में’
2011 से इस मामले की जाँच कर रही राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआइए) ने अदालत में यह आरोप लगाया कि गुजरात के अक्षरधाम, जम्मू के रघुनाथ, एवं वाराणसी के संकट मोचन मंदिर में हुए आतंकी हमलों का बदला लेने के लिए आरोपियों लोकेश शर्मा, कमल चौहान, व राजिंदर चौधरी ने समझौता एक्सप्रेस में इस धमाके को अंजाम दिया। स्वामी असीमानंद पर इस धमाके में शामिल व्यक्तियों को साजिश हेतु आवश्यक सामग्री मुहैया कराने (logistical support) का आरोप था।
पर एनआइए कोर्ट के जज जगदीप सिंह के फैसले के अनुसार उन्हें यह थ्योरी और जाँच एजेंसी द्वारा पेश सबूत इतने ठोस नहीं लगे कि उनके आधार पर आरोपियों को दोषी करार दिया जा सके। उन्होंने एक पाकिस्तानी महिला द्वारा पाकिस्तानी गवाहों को पेश करने की याचिका को भी मेरिट के आधार पर खारिज कर दिया।
इस मामले के मास्टरमाइंड के तौर पर प्रचारित आरएसएस सदस्य सुनील जोशी की 2007 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस मामले को भी इसी भगवा आतंकवाद नैरेटिव से जोड़ कर देखा गया था। जाँच एजेंसियों ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत 8 लोगों को इस मामले में भी आरोपी बनाया था पर बाद में उनके खिलाफ भी एनआइए दोषी साबित करने लायक सबूत पेश करने में नाकाम साबित हुई।