Sunday, November 17, 2024
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अँधेरे में गॉंव में घुसे 500-600, घर से घसीटकर लाए गए ग्रामीण, 34 का गला काटा-पेट चीरा: 22 साल बाद कोई दोषी नहीं

18 मार्च 1999 की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन एमसीसी ने सेनारी गाँव को घेर लिया। मर्दों को खींचकर बाहर निकाला। लाइन में खड़ा कर बारी-बारी से सबका गला काटा गया और पेट चीर दिया गया।

1990 के दशक में बिहार ने कई नरसंहार देखे। इनके कारण लालू-राबड़ी के शासनकाल के जंगलराज को याद कर लोग आज भी सिहर जाते हैं। इन नरसंहारों में से एक सेनारी में अंजाम दिया गया था।

जहानाबाद जिले के सेनारी गॉंव में 18 मार्च 1999 को 34 लोगों की हत्या कर दी गई थी। बेहद क्रूर तरीके से। 22 साल बाद 21 मई 2021 को इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने उन सभी 13 लोगों को बरी कर दिया है, जिन्हें निचली अदालत ने दोषी माना था। अब इस मामले में कोई भी दोषी नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इंसानों को भेड़-बकरियों की तरह काटने वाले इस नरसंहार का आखिर दोषी कौन है?

सेनारी नरसंहार के मामले में 15 नवंबर 2016 को जिला अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए सभी लोगों को तत्काल छोड़ने का आदेश हाई कोर्ट ने दिया है। जिला कोर्ट 10 दोषियों को फाँसी और तीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। जिला कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट के जस्टिस अश्विनी कुमार और अरविंद श्रीवास्तव की पीठ ने रद्द कर दिया। इस केस में कुल 70 लोगों को आरोपित बनाया गया था, जिनमें से 4 की मौत हो चुकी है।

सेनारी में क्या हुआ था उस दिन

18 मार्च 1999 की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के उग्रवादियों ने सेनारी गाँव को घेर लिया। 500-600 उग्रवादी रात के वक्त गाँव में घुसे। घरों से मर्दों को खींचकर बाहर निकाला गया। उन्हें तीन ग्रुप में बाँटकर गाँव के बाहर ले जाया गया। रिपोर्टों के अनुसार लाइन में खड़ा कर बारी-बारी से सबका गला काटा गया और पेट चीरा गया था।

दैनिक भास्कर को 5 साल पहले इस हमले में बचे कुछ लोगों ने आपबीती बताई थी। राकेश शर्मा ने बताया था कि हमलावर धारदार हथियार से एक-एक कर सबको गर्दन रेतकर जमीन पर गिरा रहे थे। उन्होंने बताया था कि हमलावर नशे में थे जिसकी वजह से उनकी जान बच गई थी। पेट पर गहरे वार की वजह से राकेश की आँत का कुछ हिस्सा बाहर आ गया था। वहीं संजय ने बताया था कि एक हमलावर ने उन पर भी वार किया, लेकिन वे किसी तरह से बच गए। जल्दबाजी में हमलावरों ने उन्हें दूसरे झटके में बिना काटे शवों के ढेर में धकेल दिया था।

इस नरसंहार में मरने वाले लोग भूमिहार थे। 300 घर वाले इस गॉंव में 70 भूमिहार परिवार रहते थे। उस समय बिहार ने इस तरह के कई नरसंहार देखे थे। ऐसे ही एक नरसंहार के कारण 1998 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। लेकिन कॉन्ग्रेस के विरोध के कारण 24 दिनों में ही दोबारा राबड़ी सरकार बहाल हो गई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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