हमारे देश का न्यायिक तंत्र किस धीमी गति से काम करता है, इसकी बानगी हाल ही में मध्य प्रदेश में देखने को मिली। ₹20 के जेबकतरी के मामले का निपटारा 41 साल में भी नहीं हो सका, और अंत में फरियादी को ही यह याचना करनी पड़ी कि वह अब इस मुकदमे का अंत चाहता है। अंततः लोक अदालत में यह मामला समाप्त हो गया।
15 साल बाद 4 महीने जेल में भी बिताए
आरोपित इस्माइल के ख़िलाफ़ बाबूलाल ने बस टिकट की लाइन में अपनी जेब से ₹20 चुराने का आरोप लगाते हुए माधोगंज (मध्य प्रदेश) के पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई। जांच और न्यायालय में चालान पेश होने के बावजूद मामला न्यायालय में लंबित ही रहा। इस्माइल ने न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा नियत तारीख पर अदालत आना भी बंद कर दिया। आखिरकार 2004 में अदालत ने इस्माइल की गिरफ़्तारी का वारंट जारी किया और 15 साल ढूँढ़ने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया। इस्माइल ने 4 महीने जेल में बिताए।
‘साहब, मैं आरोपी को नहीं जानता। अब मामला खत्म कीजिए’
गत शनिवार (13 जुलाई, 2019) को मामला लोक अदालत के सुपुर्द कर दिया गया। प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट अनिल कुमार नामदेव की अदालत ने 64-वर्षीय बाबूलाल से कहा कि 41 साल पुराने मामले को, जहाँ आरोपित चार महीने जेल काट भी चुका है, और खींचने का मतलब नहीं है। बाबूलाल ने भी सहमति जताते कि वे आरोपित को नहीं जानते। इसके बाद मामले को खत्म कर दिया गया। नवभारत टाइम्स से बात करते हुए मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ के सरकारी वकील ऋषिकेश मिश्रा ने भी कहा कि लोक अदालतों में ऐसे ही आपसी सहमति से निराकरण होता है।