सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (29 जुलाई, 2024) को कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ स्थित गोकर्ण मंदिर के कार्यों को देख रहे पूर्व न्यायाधीश BN श्रीकृष्ण को आ रही कठिनाइयों का संज्ञान लिया। BN श्रीकृष्ण एक समिति के मुखिया हैं, जो गोकर्ण महाबलेश्वर मंदिर के संचालन से जुड़ी कार्यों को देख रही है। मुख्य न्यायाधीश DY चंद्रचूड़, जस्टिस JB पार्दीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने उनकी कठिनाइयों को देखते हुए उन्हें अपने कार्यों में सक्षम बनाने के कई निर्देश दिए, साथ ही समिति में में उन्हें वीटो पॉवर भी दिया।
इससे पहले जस्टिस (रिटायर्ड) BN श्रीकृष्ण ने कहा था कि समिति के लोग उनके साथ सहयोग नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि अगर यही स्थिति बनी रही तो इन सदस्यों पर अदालत की अवमानना का मामला चलाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “जमीनी स्तर पर स्थिति को जल्द से जल्द सुधारने की आवश्यकता है और सभी पक्षों को यह ध्यान रखना चाहिए कि महाबलेश्वर गोकर्ण मंदिर 8वीं शताब्दी का प्राचीन मंदिर है और इसकी परंपराओं, पूजा के सदियों पुराने तरीकों का पालन किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण के सुझावों को स्वीकार किया जाना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समिति के मुखिया के रूप में रिटायर्ड जज की हताशा उनकी टिप्पणी में झलक रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात का शुक्र है कि उन्होंने पद नहीं छोड़ा, क्योंकि वो जानते हैं कि ये मंदिर कितना प्राचीन और पूजनीय है। इसके बाद अदालत ने आदेश दिया कि समिति के समुचित संचालन के लिए करवार के जिला न्यायाधीश को समिति का हिस्सा माना जाएगा, यदि वह सभी कार्य नहीं कररकते हैं तो अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (ADJ) के पद से नीचे का कोई सदस्य नियुक्त नहीं किया जाएगा।
The Supreme Court on Monday strengthened the role of former apex court judge, Justice B.N. Srikrishna, the chairman of the committee administering the Gokarna Mahabaleshwar Temple in Karnataka.https://t.co/4LZoYeDQjh
— The Hindu (@the_hindu) July 30, 2024
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ट्रस्ट या मंदिर से संबंधित किसी भी मामले को नहीं देखेंगे। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि अध्यक्ष (न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण) के पास निर्णायक मत होगा और अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा सभी सदस्यों की सलाहकार भूमिका होगी और अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के निर्णयों पर कोई वीटो नहीं होगा। बता दें कि कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा महाबलेश्वर मंदिर का प्रबंधन रामचंद्रपुरा मठ को सौंपने के राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया गया था।