दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने सेवानिवृत जज एसएन धींगरा (SN Dhingra) के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की अनुमति देने से भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल (KK Venugopal) ने इनकार कर दिया है। धींगरा के साथ-साथ वरिष्ठ वकील अमन लेखी और के रामकुमार के खिलाफ के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति माँगी गई थी।
इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद (Prophet Muhammad) के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के दो जजों ने नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) की आलोचना की थी और राजस्थान के उदयपुर में हुई कन्हैया लाल की हत्या से उसे जोड़ा था। इसके बाद रिटायर्ड जज धींगरा सहति इन लोगों ने जजों की इस टिप्पणी को अवांछित बताया था।
वेणु गोपाल ने कहा कि इन लोगों द्वारा की गई टिप्पणी ‘निष्पक्षता’ के दायरे में आती हैं। इन्होंने किसी तरह की गाली-गलौज या अपमानजनक शब्दों का प्रयोग नहीं किया है, जो न्यायिक प्रशासन में हस्तक्षेप के दायरे में आते हैं।
अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ी संख्या में अपने निर्णयों में यह माना है कि न्यायिक कार्यवाही की निष्पक्ष और उचित आलोचना अदालत की अवमानना नहीं होगी।
उन्होंने कहा, “मैं इस बात से संतुष्ट नहीं हूँ कि आपके पत्र में नामित तीन व्यक्तियों द्वारा की गई आलोचना दुर्भावना वाला या न्याय प्रशासन को बिगाड़ने का प्रयास वाला है या यह न्यायपालिका की छवि को खराब करने के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास है।”
सुप्रीम कोर्ट के जजों पर टिप्पणियों को लेकर जया सुकिन नामक वकील ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन ढींगरा और वरिष्ठ अधिवक्ता अमन लेखी, राम कुमार के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति माँगी थी।
तीनों ने उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या के बाद नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला द्वारा की गई टिप्पणियों को लेकर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय न्यायपालिका पर सवाल उठाए थे।
जजों की टिप्पणी के बाद सेवानिवृत जज एसएन धींगरा ने कहा था, “मेरे ख्याल से ये टिप्पणी बेहद गैर-जिम्मेदाराना है। उन्हें कोई अधिकार नहीं है कि वो इस तरह की टिप्पणी करें, जिससे जो व्यक्ति न्याय माँगने आया है उसका पूरा करियर चौपट हो जाए या जो निचली अदालतें हैं वो पक्षपाती हो जाएँ। सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर को सुना तक नहीं और आरोप लगाकर अपना फैसला सुना दिया। मामले में न सुनवाई हुई, न कोई गवाही, न कोई जाँच हुई और न नूपुर को अवसर दिया गया कि वो अपनी सफाई पेश कर सकें। इस तरह सुप्रीम कोर्ट का टिप्पणी पेश करना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि गैर कानूनी भी है और अनुचित भी। ऐसी टिप्पणी सर्वोच्च न्यायालय को करने का कोई अधिकार नहीं है।”
जस्टिस एसएन ढींगरा ने सवाल उठाया था कि आखिर सुप्रीम कोर्ट के जजों ने अपनी कही बातों को लिखित आदेश में क्यों नहीं शामिल किया। उन्होंने कहा था कि अगर इस तरह जजों को टिप्पणी देनी है तो उन्हें राजनेता बन जाना चाहिए वो लोग जज क्यों है।
जब जस्टिस से पूछा गया कि आखिर कैसे कोर्ट की टिप्पणी गैर कानूनी हो सकती है तो उन्होंने कहा, “कोर्ट कानून से ऊपर नहीं है। कानून कहता है कि अगर आप किसी व्यक्ति को दोषी बताना चाहते हैं तो पहले आपको उसके ऊपर चार्ज फ्रेम करना होगा और इसके बाद जाँचकर्ता सबूत पेश करेंगे, फिर बयान लिए जाएँगे, गवाही होगी तब जाकर सभी साक्ष्यों को ध्यान में रखकर अपना फैसला सुनाया जाएगा। लेकिन यहाँ क्या हुआ। यहाँ तो नुपूर शर्मा अपनी एफआईआर ट्रांस्फर कराने गई थी और वहीं कोर्ट ने खुद उनके बयान पर स्वत: संज्ञान लेकर उन्हें सुना दिया।”
उन्होंने ये भी बताया कि अगर अब सुप्रीम कोर्ट के जज को ये पूछा जाए कि नूपुर शर्मा का बयान कैसे भड़काने वाला है, इस पर वह आकर कोर्ट को बताएँ तो उन्हें पेश होकर ये बात बतानी पड़ेगी। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस ढींगरा ने ये भी कहा कि अगर वो ट्रायल कोर्ट के जस्टिस होते तो वो सबसे पहले इन्हीं जजों को बुलाते और गवाही लेते।
उन्होंने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट के इन जजों से पूछते, “आप आकर गवाही दीजिए और बताइए कैसे नूपुर शर्मा ने गलत बयान दिया और उसे आप किस तरह से देखते हैं। टीवी मीडिया और चंद लोगों के कहने पर आपने अपनी राय बना ली। आपने खुद क्या और कैसे महसूस किया, इसे बताएँ।”