बहुविवाह और निकाह-हलाला के ख़िलाफ़ भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने अपना विरोध दर्ज कराया है। बोर्ड ने 1997 के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ये साफ हो चुका है कि पर्सनल लॉ को मूल अधिकारों की कसौटी पर नहीं आँका जा सकता। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह निकाह हलाला, बहु विवाह का समर्थन करता है।
AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि इस्लामिक कानून पर किसी भी गैर-इस्लामिक शख्स को सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं हैं। AIMPLB ने कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में कहा कि बहुविवाह और अन्य प्रथाओं पर पहले ही फैसला सुनाया जा चुका है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दाखिल अपनी याचिका में यह भी कहा गया कि धार्मिक प्रथा को चुनौती देने वाली जनहित याचिका उस व्यक्ति द्वारा दायर नहीं की जा सकती, जो उस धार्मिक संप्रदाय का हिस्सा नहीं है। मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई मुस्लिम संगठन मौजूद हैं।
All India #Muslim Personal Law Board has opposed a #PIL in the #SupremeCourt against polygamy & nikah halala. It says those from other religions shouldn’t be allowed to question Mohammedan Law & that practises can’t be tested on anvils of fundamental rights. PIL by @AshwiniBJP
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) January 27, 2020
गौरतलब है कि इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है। इसके साथ ही इस मामले को संविधान पीठ को भेजने का फैसला किया है। लेकिन, फिलहाल अभी तक संविधान पीठ का गठन नहीं हुआ है।
बता दें अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई याचिका में हलाला और बहुविवाह को रेप जैसा अपराध घोषित करने की माँग की गई है। जबकि बहुविवाह को संगीन अपराध घोषित करने की माँग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि यह प्रथाएं संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करते हैं। उपाध्याय के मुताबिक अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है। वहीं अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है।