निजीकरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए भारतीय रेलवे ने आज (जुलाई 2, 2020) 109 जोड़ी रूटों के लिए 151 आधुनिक ट्रेनों को लेकर प्राइवेट कंपनियों से आवेदन माँगा है। इस परियोजना की शुरुआत के लिए प्राइवेट कंपनियों की तरफ से 30 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। पिछले साल इसी क्रम में IRCTC ने देश की पहली निजी ट्रेन लखनऊ दिल्ली तेजस एक्सप्रेस की शुरुआत की थी।
Railways invites Request for Qualifications for private participation for passenger train operations on 109 pairs of routes through 151 modern trains.
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) July 1, 2020
This initiative will boost job creation, reduce transit time, provide enhanced safety & world-class facilities to passengers. pic.twitter.com/uG2dhdbG3b
अब भारतीय रेलवे के इसी फैसले ने लोगों के मन में कई तरह के सवालों को जन्म देना शुरू कर दिया है। वहीं दूसरी ओर राहुल गाँधी जैसे विपक्षी पार्टियों के नेता भी इस मौके पर आम जनता को बरगलाने से नहीं चूक रहे।
इसीलिए जरूरी है कि सरकार के इस फैसले के पीछे निहित उद्देश्य को लेकर लोगों को स्पष्ट किया जाए। जिससे भ्रम की स्थिति पैदा न हो और आम जनता सरलता से यह समझ सके कि भारतीय रेलवे ने प्राइवेटाइजेशन की ओर क्यों रुख किया और इससे आम जनता की जेब पर सफर के दौरान क्या असर पड़ेगा।
निजीकरण का नाम लेकर सबसे पहले लोगों को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि मोदी सरकार सबकुछ प्राइवेट कंपनियों को बेच रही है। ऐसे में आने वाले समय में रेलवे की टिकट बढ़ जाएँगी और निजी कंपनियाँ मनमाना किराया वसूल करेंगी। साथ ही लोगों को नौकरी के अवसर कम मिलेंगे।
लेकिन यहाँ आपको बता दें कि मंत्रालय ने ये फैसला लेते हुए स्पष्ट किया है कि टिकट उपलब्धता पर इस फैसले से कोई असर नहीं पड़ेगा और न ही दूसरी ट्रेनों के किराए इससे प्रभावित होंगे। इसके बाद, ये सवाल कि अगर यही सब हुआ तो सरकारी नौकरियाँ तो प्राइवेट खिलाड़ियों के हाथ में चली जाएँगी। इससे सरकारी क्षेत्र में नौकरी के अवसर घट जाएँगे? तो बता दें, जब सरकार के फैसले पर अमल होगा, तो ट्रेनों में नया स्टॉफ आएगा, उससे रोजगार में वृद्धि होगी न कि कटौती। इसके अलावा रेल में कैटरिंग की सुविधा भी अच्छी होगी और स्वच्छता व रखरखाव सुविधाओं का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा।
इसके बाद कुछ लोगों के मन में केवल इसी फैसले के आधार पर ये सवाल भी उठने लाजमी है कि क्या मोदी सरकार धीरे-धीरे सारे विभागों को प्राइवेट लोगों के हाथों बेच देगी? अगर नहीं, तो फिर भारतीय रेलवे के मामले में ये कदम उठाने के पीछे क्या उद्देश्य है? क्या जो काम प्राइवेट कंपनियाँ ट्रेन के लिए करेंगी, वो सरकार अपने बूते पर नहीं सकती है?
अब, इन्हीं सवालों के जवाब देते हुए मंत्रालय ने अपनी ओर से जारी बयान में इस पहल को लेकर कहा है कि इसका उद्देश्य कम रखरखाव, कम पारगमन समय, ज्यादा रोजगार सृजन, यात्रियों को ज्यादा सुरक्षा, विश्व स्तरीय यात्रा अनुभव देने वाली आधुनिक तकनीक से युक्त रेल इंजन और डिब्बों की पेशकश करना तथा यात्री परिवहन क्षेत्र में माँग व आपूर्ति के अंतर में कमी लाना है।
परियोजना के तहत चलने वाली ट्रेनों की खासियत क्या होगी? सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है कि यह ट्रेनें मेक इन इंडिया योजना के तहत बनाई जाएँगी। जिसका उद्देश्य भारत को मजबूत बनाना है। इसके बाद इन ट्रेनों के वित्तपोषण, खरीद, परिचालन और रखरखाव के लिए निजी ईकाई ही जिम्मेदार होगी। इन ट्रेनों को अधिकतम 160 किमी प्रति घंटा की गति के लिए डिजाइन किया जाएगा। इससे यात्रा में लगने वाले समय में खासी कमी आएगी।
इतना ही नहीं, इन ट्रेनों को भारतीय रेल के चालक और गार्ड द्वारा ही परिचालित किया जाएगा। जबकि निजी इकाई द्वारा ट्रेनों के परिचालन में समय-पालन, विश्वसनीयता, ट्रेनों के रखरखाव आदि प्रदर्शन के प्रमुख संकेतकों का ध्यान रखना होगा। वहीं यात्री ट्रेनों का परिचालन और रखरखाव में भारतीय रेल द्वारा उल्लिखित मानकों एवं विनिर्देशों और आवश्यकताओं का ध्यान रखना होगा।
गौरतलब है कि आज राहुल गाँधी समेत कई विपक्षी नेता रेलवे मंत्रालय के इस फैसले को लेकर उनपर निशाना साध रहे हैं। लेकिन ये गौर करने वाली बात है कि मोदी सरकार के नेतृत्व में रेलवे ने नए आयाम हासिल किए हैं। अपने नाम नए रिकॉर्ड बनाए हैं।
ताजा कामयाबी में 1 जुलाई को हासिल की गई। जब भारतीय रेल ने करीब 201 ट्रेन ऑपरेट की और एक के बाद एक करके सभी अपने गंतव्य स्थान पर बिना किसी देरी के पहुँचती गई। कुल मिलाकर टाइमिंग के मामले में रेल विभाग ने 100% सफलता हासिल की।
कई जानकारों का मनना है कि भारतीय इतिहास में अब तक रेलवे को इस तरह की सफलता नहीं मिली थी। हालाँकि, 23 जून को भी रेलवे ने लगभग सभी ट्रेनों को समय पर ही संचालित किया था। लेकिन उस दिन कुछ दशमलव के फर्क से भारतीय रेल यह रिकॉर्ड अपने नाम नहीं कर पाई। मगर, 1 जुलाई को ऐसा संभव हुआ।
उल्लेखनीय है कि टाइमिंग को लेकर भारतीय रेलवे का नाम हमेशा ही खराब रहा है। ज्यादातर ट्रेनों का लेट होना देश में आम बात हो गई है। लेकिन पिछले कुछ सालों ने रेलवे विभाग ने अपने इस लेट-लतीफी को कम करने के लिए खूब मेहनत की है। पिछले कुछ महीनों में रेलवे अपनी टाइमिंग को लेकर भी पाबंद है। ट्रेनों के लेट होने के घंटों में लगातार गिरावट देखी गई है।