उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) और काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) को लेकर हो रहे विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट 29 मार्च (मंगलवार) से प्रतिदिन सुनवाई करेगा। कोर्ट में हिंदू पक्ष की ओर से दावा किया गया है कि स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर का मंदिर सतयुग से ही वहाँ पर है। ज्ञानवापी मस्जिद के जिस ढाँचे को लेकर विवाद है, उसी ढाँचे में भगवान शिव विराजमान हैं। ऐसे में यहाँ के जमीन की प्रकृति पूरी तरह से धार्मिक है और इस पर प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू ही नहीं होता है।
हाईकोर्ट के जस्टिस प्रकाश पाडिया की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। जस्टिस प्रकाश पाडिया ही वाराणसी स्थित अंजुमन इंतजामिय़ा मस्जिद की याचिका और दूसरी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं। हाईकोर्ट में मंदिर पक्ष से वकील विजय शंकर रस्तोगी ने बहस दाखिल की। याचिका में कहा गया है कि मंदिर का आकार चाहे जैसा भी हो, मंदिर का तहखाना और अभी भी वादी के कब्जे में है, जो कि 15वीं सदी से पहले बने मंदिर का ढाँचा है।
गुरुवार (24 मार्च) को इस मामले में सुनवाई के दौरान अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की तरफ से अदालत के समक्ष तर्क दिया कि शुरू में आदेश VII नियम 11 (डी) सीपीसी के तहत वादी (स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति) को खारिज करने के लिए एक आवेदन दायर किया था। हालाँकि, उन्होंने लिखित बयान दर्ज कराया।
क्या है पूरा मामला
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटा ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है। साल 1991 में वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें दावा किया गया था कि मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को अवैध तरीके से बनाया गया है। मुगल आक्रान्ता औरंगजेब ने मंदिर को तुड़वाकर उसी के ढाँचे पर मस्जिद का निर्माण करवाया था।
पिछले साल वाराणसी की लोअर कोर्ट ने इस मामले की असलियत का पता लगाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को सर्वे करने का आदेश दिया था, लेकिन बाद में सितंबर 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। सुन्नी वक्फ बोर्ड और मस्जिद इंतजामिया कमेटी ने याचिका दायर की थी।