इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामचरितमानस जलाने वाले 2 हिन्दू विरोधियों पर लगे NSA (रासुका) हटाने से इनकार कर दिया है। इन दोनों ने रामचरितमानस की प्रतियाँ खुलेआम जलाई थीं। गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस का उत्तर भारत में विशेष महत्व है। उन्होंने रामायण को सरलीकृत लोकसभा में आम जनों तक पहुँचाया था। लेकिन, सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और राजद नेता व बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव जैसे नेताओं ने लगातार बयान देकर 2023 में रामचरितमानस को बदनाम करने की कोशिश की।
वहीं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रामचरितमानस की प्रतियाँ खुलेआम जलाई गईं। जिलाधीश के आदेश पर 2 आरोपितों के खिलाफ रासुका के तहत मामला दर्ज किया गया था। इन दोनों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में आदेश को चुनौती दी। अब हाईकोर्ट ने इस याचिका को ख़ारिज कर दिया है। जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ ने शुक्रवार (5 जनवरी, 2024) को देवेंद्र प्रताप यादव एवं सुरेश सिंह यादव की याचिकाओं को रद्द कर दिया।
सतनाम सिंह नवी नामक हिन्दू कार्यकर्ता ने 29 जनवरी, 2023 को इस संबंध में स्थानीय PGI थाने में मामला दर्ज कराया था। वृन्दावन कॉलोनी में रामचरितमानस पुस्तक के न सिर्फ पन्ने फाड़े गए थे, बल्कि जला भी दिया गया था। इससे आम लोग आक्रोशित हो गए और इलाके में तनाव बढ़ गया था। इन दोनों ने स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में इस कृत्य को अंजाम दिया था। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि आरोपितों ने अपने सहयोगियों के साथ मिल कर दिन-दहाड़े सार्वजनिक स्थल पर भगवान राम के जीवन के घटनाक्रम से संबंधित ग्रन्थ का जिस तरह से अपमान किया, उससे सामाजिक आक्रोश स्वाभाविक है।
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— Zee Uttar Pradesh Uttarakhand (@ZEEUPUK) January 6, 2024
रामचरितमानस की प्रति फाड़ने का मामला
हाईकोर्ट बेंच ने NSA लगाने को सही माना
2 आरोपियों पर लगा था NSA
डीएम के निर्देश को दी गई थी चुनौती #NSA @shukladeepali15 pic.twitter.com/p5em8GsOoR
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साथ ही रामचरितमानस को हिन्दुओं की धार्मिक मान्यताओं और आस्था से भी जोड़ा। जजों ने नोट किया कि मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के वर्तमान युग में हर व्यक्ति इनसे जुड़ा हुआ है और ऐसे में ऐसी घटनाओं से समाज में धार्मिक उन्माद और तनाव फैल सकता है। साथ ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि प्रशासन द्वारा NSA लगाने का निर्णय लेना उचित है और सही है। अदालत ने कहा कि जिस तरह का व्यवहार किया गया, हिन्दुओं का आक्रोशित होना स्वाभाविक था।