सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (17 अक्टूबर 2023) को समलैंगिक शादी यानी सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। इस याचिका को डालने वाले याचिकाकर्ताओं में शामिल अनन्य कोटिया और उत्कर्ष सक्सेना ने कोर्ट के इस फैसले के एक दिन बाद बुधवार (18 अक्टूबर 2023 ) को कोर्ट के लॉन में सगाई कर ली।
इसे लेकर अनन्य कोटिया ने अपने एक्स हैंडल पर जानकारी दी है। कोटिया ने पोस्ट किया, “कल दुख हुआ। आज मैं अदालत में वापस गया, जिसने हमारे अधिकारों को अस्वीकार कर दिया और अंगूठियों का आदान-प्रदान किया। इसलिए यह सप्ताह कानूनी नुकसान के बारे में नहीं था, बल्कि हमारी सगाई के बारे में था। हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।”
Yesterday hurt. Today, @utkarsh__saxena and I went back to the court that denied our rights, and exchanged rings. So this week wasn't about a legal loss, but our engagement. We'll return to fight another day. pic.twitter.com/ALJFIhgQ5I
— Kotia (@AnanyaKotia) October 18, 2023
वहीं इस पोस्ट को उत्कर्ष सक्सेना ने भी अपने एक्स हैंडल पर रिपोस्ट किया। उत्कर्ष सक्सेना और अनन्य कोटिया की प्रेम कहानी बॉलीवुड फिल्म जैसी है। बस अंतर इतना है कि प्रेम में पड़े ये दोनों ही एक ही सेक्स यानी लड़के हैं। सुप्रीम कोर्ट के वकील उत्कर्ष सक्सेना ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे हैं।
उनके साथी अनन्य कोटिया भी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) में पीएचडी स्कॉलर हैं। दोनों की ये प्रेम कहानी दिल्ली यूनिवर्सिटी कॉलेज के दिनों शुरू हुई थी। ये वो वक्त था, जब भारत में समलैंगिकता (Homosexuality) एक अपराध था।
अनन्य कोटिया अपने लव स्टोरी को वेरी टिपिकल बताते हैं। वह कहते हैं, “हम हंसराज कॉलेज, डीयू में मिले। यह मेरा पहला साल था और उत्कर्ष अपने तीसरे साल में था और हम डिबेटिंग सोसायटी मिले। किसी भी दूसरे कॉलेज के युवाओं की तरह हमें भी प्यार हो गया और हम तब से साथ हैं।”
कोटिया कहते हैं कि लेकिन उनका रिश्ता सामान्य नहीं था, क्योंकि वे बहुत लंबे समय तक किसी के साथ अपना रिश्ता शेयर करने के काबिल नहीं थे। अनन्य ने कहा, “मुझे लगता है कि पहली बार हमने हम दोनों के बारे में बाहर किसी को बताया वो साल 2014 या 2013 था।”
युवा उत्कर्ष वकील के तौर पर इस केस का हिस्सा रहे। इस केस में 2017 में जस्टिस केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ का फैसला काफी अहम रहा। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से 24 अगस्त 2017 के अपने इस ऐतिहासिक फैसले में ये ऐलान किया कि भारत के संविधान के तहत एकान्तता का अधिकार मौलिक अधिकार है। इस फैसले ने LGBTQ+ अधिकारों में अहम भूमिका निभाई।
इस समलैंगिक कपल का कहना था कि 2018 के ऐतिहासिक फैसले के बाद चीजें बदलने लगीं। वो कहते हैं, “हमने बहुत मुश्किल और लंबी लड़ाई लड़ी। समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के 5 साल बाद देश के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निर्धारित किया कि समलैंगिक विवाह और नागरिक संघों को कानूनी मान्यता देने का अधिकार खास तौर से संसद और राज्य विधानसभाओं के पास है।”
कोर्ट ने कानूनों के निर्माता के बजाय उनके व्याख्याकार तौर पर अपनी भूमिका पर जोर दिया और कहा कि विवाह से संबंधित मामले विधायी निकायों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने भारत में अनगिनत LGBTQIA+ लोगों को निराश कर दिया है, क्योंकि वे अपने बढ़े हुए हकों और उनकी मंजूरी की उम्मीद कर रहे थे।