हिन्दुओं के भारी विरोध के बाद आंध्र प्रदेश की सरकार ने तिरुपति तिरुमाला मंदिर की संपत्ति को नीलाम करने के फैसले पर रोक लगा दी है। सरकार ने एक आदेश जारी कर इस बात की सूचना दी।
जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने हालाँकि इसका पूरा दोष पिछली सरकार पर डालने की कोशिश की है। सरकार ने कहा है कि जिस ट्रस्ट के बोर्ड ने मंदिर की 50 संपत्तियों को नीलम करने का फैसला लिया था, उसका गठन चंद्रबाबू नायडू की पूर्ववर्ती सरकार ने किया था।
आंध्र प्रदेश की सरकार ने कहा है कि श्रद्धालुओं की भावनाओं को समझते हुए उसने तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम (TTD) से कहा है कि वो इस मुद्दे पर पुनर्विचार करे। वरिष्ठ साधु-संतों, समाज के प्रबुद्ध लोगों और श्रद्धालुओं से बातचीत कर ये सुनिश्चित किया जाए कि इन चीजों का उपयोग मंदिरों का निर्माण करने, धर्म का प्रचार करने या फिर अन्य धार्मिक कार्यों के लिए किस तरह से किया जा सकता है। सरकार ने इस पर योजना बनाने को कहा है।
जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने कहा है कि जब तक इस मामले पर अंतिम फैसला नहीं हो जाता, तब तक संपत्ति को नीलाम करने के फैसले पर रोक लगी रहेगी। साथ ही TTD के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर को कहा गया है कि वो इस सम्बन्ध में जल्द ही एक्शन लें और जितनी जल्दी हो सके, सरकार को एक रिपोर्ट के माध्यम से अवगत कराएँ।
मुख्य सचिव प्रवीण प्रकाश ने आंध्र प्रदेश सरकार की तरफ से पत्र भेज कर ये आदेश जारी किया। सरकार ने सोमवार (मई 24, 2020) की रात को ये आदेश जारी किया। इससे पहले इस फैसले को लेकर हिन्दुओं में रोष व्याप्त था और सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक विरोध प्रदर्शन चालू हो गए थे।
अधिवक्ता जे साईं दीपक और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी सहित कई प्रबुद्ध जनों ने इस फैसले के खिलाफ रोष जताया था। लोग इसे मंदिर की संपत्ति को बेच कर श्रद्धालुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ के रूप में देख रहे थे।
दरअसल, जिन संपत्तियों को बेचने का निर्णय लिया गया था, उसे श्रद्धालुओं ने ही मंदिर को दान किया था। तिरुपति तिरुमाला मंदिर ट्रस्ट ने इसे ‘नन-यूजेबल’ करार देते हुए इसे बेचने का फ़ैसला ले लिया था। ये संपत्ति आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और ऋषिकेश में स्थित है।
ट्रस्ट का कहना था कि ये सब मंदिर से दूर हैं, इसीलिए इसका प्रबंधन करने और देखभाल करने में खासी मुश्किलें आ रही हैं। इनमें से कुछ को अतिक्रमण का शिकार होने की बात भी कही गई है।
हालाँकि, ये पहली बार नहीं है जब तिरुपति तिरुमाला मंदिर की संपत्तियों को बेच रहा है। 1974 से लेकर 2016 तक 129 ऐसी सम्पत्तियाँ थीं, जिन्हें नीलामी के जारी बेच डाला गया। हालिया फैसले के खिलाफ भाजपा और टीडीपी, दोनों ने ही वाइआरएस कॉन्ग्रेस सरकार का विरोध किया था। इनमें से कई कृषि के लिए प्रयोग की जाने वाली जमीन है और कई घर भी हैं, जो मंदिर से दूर हैं। मंदिर प्रबंधन उसकी देखभाल में खुद को अक्षम बता रहा है।
The logic behind to sale 63 properties belonging to TTD Devasthanams (small pieces of land &unmanageable) is untenable.The decision was taken in 2016 by TTD Board constituted by @ncbn .I wrote a letter to the TTD Chairman Sh Subba Rao Garu to stop this and review it in TTD Board. pic.twitter.com/b9If6gDRYB
— Prof Rakesh Sinha (@RakeshSinha01) May 24, 2020
भाजपा के राज्यसभा सांसद प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने भी तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम बोर्ड को पत्र लिख कर आपत्ति जताई थी। उन्होंने बताया कि 2016 में चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने ये निर्णय लिया था। उन्होंने ट्रस्ट के अध्यक्ष को भेजे गए पत्र में लिखा कि जो संपत्ति मंदिर से दूर हैं, उनके प्रबंधन के लिए श्रद्धालुओं की मदद ली जाए। उन्होंने बताया कि मंदिर की इन संपत्तियों से श्रद्धालुओं की भावनाएँ जुड़ी हुई हैं।
बता दें कि आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने अपने मामा वाई वी सुब्बा रेड्डी को तिरुपति तिरुमला देवस्थानम ट्रस्ट बोर्ड (TTD) के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया था, जिसका खूब विरोध हुआ था। तिरुपति स्थित गोविंदराजा स्वामी मंदिर से तीन स्वर्ण मुकुट के चोरी होने की ख़बर भी आई थी। सभी मुकुट में हीरे जड़े हुए थे। इन मुकुटों का वजन 1.3 किलो बताया गया था।