Friday, November 22, 2024
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‘मैं हिंदुओं के खून की नदियाँ बहा दूँगा’: मौलाना तौकीर रज़ा ने कहा था, 2010 का बरेली दंगा भी इसने ही भड़काया – बरेली कोर्ट में हाजिर होने का आदेश

साल 2010 में यह दंगा तब भड़क गया था, जब बारावफात के जुलूस में शामिल भीड़ तय रास्ते से हटकर जबरन उस मार्ग पर निकल पड़ी थी, जो हिन्दू बहुल इलाका था। इस घटना के बाद इस्लामी कट्टरपंथियों ने बरेली शहर के कई हिस्सों में हिंसा की थी, जिसकी वजह से 10 दिनों तक कर्फ्यू लगा रहा था।

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में सत्र न्यायाधीश की अदालत ने विवादित बयानों के लिए कुख्यात कट्टरपंथी मौलाना तौकीर रज़ा खान को साल 2010 में हुए हिंदू विरोधी दंगों का मास्टरमाइंड करार दिया है। इस मामले में विवादित मौलाना को 11 मार्च 2024 को कोर्ट में तलब किया गया है। साल 2010 में यह दंगा तब भड़क गया था, जब बारावफात के जुलूस में शामिल भीड़ तय रास्ते से हटकर जबरन उस मार्ग पर निकल पड़ी थी, जो हिन्दू बहुल इलाका था। इस घटना के बाद इस्लामी कट्टरपंथियों ने बरेली शहर के कई हिस्सों में हिंसा की थी, जिसकी वजह से 10 दिनों तक कर्फ्यू लगा रहा था।

अदालत ने इस तथ्य को उजागर किया है कि उस दंगे को मौलाना तौकीर रज़ा खान ही लीड कर रहे थे। ऑपइंडिया द्वारा जुटाए गए आँकड़ों से पता चलता है कि कैसे हथियारों से लैस मुस्लिम भीड़ ने तब मज़हबी नारेबाज़ी की थी। इसके बाद भीड़ को मौलाना तौकीर ने उकसाया, जिसके फलस्वरूप हिंदुओं और सिखों के घरों पर हमले हुए। भाजपा सांसद एसएस अहलूवालिया ने भी संसद में इन दंगों का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि हिंसक भीड़ ने न सिर्फ हिन्दुओं, बल्कि सिखों की दुकानों और मकानों को निशाना बनाया था।

क्या हुआ था 2010 के दंगों में

रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह घटना 2 मार्च 2010 की है। तब प्रदेश में मायावती की सरकार थी। उस दौरान बरेलवी विचारधारा वाले मुस्लिमों की एक बड़ी मंडली ने बरेली में मिलाद-उद-नबी (पैगंबर के जन्मदिन) के मौके पर बारावफ़ात का जुलूस निकाला था। इससे पहले रैली 27 फरवरी को हुई थी। हालाँकि, 2 मार्च को भी जुलूस निकाला गया था। इस रैली में शामिल लोगों का एक ग्रुप प्रशासन द्वारा तय किए गए मार्ग से हट गया। वह कोहाड़ा पीर नामक इलाके की तरफ बढ़ गया, जो वहाँ के स्थाई निवासियों को पसंद नहीं आई।

कुछ रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि साल 2006 में भी ऐसे ही हालात तब बने थे, जब बारावफात के जुलूस में शामिल कुछ लोग कोहाड़ा पीर इलाके से गुजरने की कोशिश कर रहे थे। हालाँकि, तत्कालीन बरेली प्रशासन ने साजिश को नजरअंदाज कर दिया था और सुरक्षा के कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं किए थे। साल 2010 में तब कोहाड़ा पीर इलाके से बारावफात में शामिल भीड़ गुजरी तो वहाँ के स्थानीय निवासियों के साथ हिंसा की गई। वहाँ रहने वालों पर पत्थरबाजी हुई और लोगों को पीटा गया।

बताते हैं कि इस घटना के बाद स्थानीय निवासियों का गुस्सा फूट पड़ा। तब दुकानों और वाहनों के साथ पुलिस चौकियों तक में आगजनी की गई। हिंसा में गोलियाँ भी चली थीं। हिंसक घटनाओं में कबूतरखाना बाजार में लगभग 20 दुकानें और कोहाड़ा पीर पुलिस चौकी को आग लगा दी गई थी। थाने के अंदर बने मंदिर की मूर्ति को भी हिंसक भीड़ ने तोड़ डाला था। हिंसा रोकते हुए कई पुलिस वाले घायल हो गए थे। आरोप यहाँ तक है कि हिन्दुओं के घरों मे घुसकर उनके गैस सिलेंडरों तक को आग लगाकर ब्लास्ट करवाया गया था।

हालात संभालने के लिए प्रशासन को बरेली के कई हिस्सों में 2 हफ़्तों तक कर्फ्यू लगाना पड़ा था। कर्फ्यू के बावजूद कई हिस्सों में भीड़ ने हथियारों के साथ सड़कों पर उतरकर हिंसा की थी। इस दौरान उन्मादी नारे लगाकर कई मंदिरों को टारगेट किया गया था। अनुमान के मुताबिक हिंसा में हिन्दू के 60 से अधिक घर जलाए गए थे। कम-से-कम 10 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। नुकसान का अनुमान करोड़ों रुपए में लगाया गया था। इस पूरी हिंसा के लीडर के तौर पर मौलाना तौकीर का नाम सामने आया था।

हिन्दुओ के जलते घरों में नहीं पहुँच पाई फायर ब्रिगेड

बरेली के भाजपा नेता राजेश अग्रवाल ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है। 2010 की घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा कि तब मुस्लिमों ने अपने घरों की पहचान के लिए उसके ऊपर हरे झंडे लगा दिए थे। यहाँ तक कि जल रहे हिन्दुओं के घरों और मकानों को बुझाने निकली फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को भी रोका गया था। बताया जा रहा है कि तब मौलाना तौकीर ने कोहाड़ा पीर इलाके में एक मंच बनवाया था। इस मंच का प्रयोग उसने मुस्लिमों को भड़काने के लिए किया था। तब मौलाना ने प्रशासन को भी धमकाते हुए कहा था कि अगर जुलूस को चाहबाई क्षेत्र में जाने से रोका गया तो इसके अंजाम ठीक नहीं होंगे।

उस समय मौलाना तौकीर ने कहा था, “मैं हिंदुओं के खून की नदियाँ बहा दूँगा। मैं उनके (हिंदुओं के) घरों और दुकानों को आग लगा दूँगा।” इस हिंसा के बाद 8 मार्च 2010 को मौलाना तौकीर को गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तारी से नाराज भीड़ एक बार फिर से तोड़फोड़ पर उतारू हो गई थी। तब कई कट्टरपंथियों ने मायावती को वोट न देने और उनकी रैलियों के बहिष्कार जैसी चेतावनियाँ भी दी थीं। इसी दबाव में आकर मौलाना तौकीर महज 3 दिनों बाद 11 मार्च को रिहा हो गया। उसकी रिहाई के बाद भी हिंसा हुई, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे।

मौलाना तौकीर की इतनी जल्द रिहाई और उसके चलते हुई हिंसा पर प्रशासन की चुप्पी पर बरेली बार एसोसिएशन ने तब सवाल उठाए थे। वकीलों ने तब सामूहिक तौर पर कहा था कि स्थानीय प्रशासन ने न्यायिक प्रणाली का मजाक बना दिया। कई वकीलों ने तो तब तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को पत्र भी लिखा था। अब अपनी टिप्पणी अदालत ने पुलिस की चार्जशीट में मौलाना तौकीर का नाम न होने पर हैरानी भी जताई है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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