बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी का नाम विश्वविद्यालय के दक्षिणी कैम्पस से हटाने की सिफारिश की है। पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि संस्थान में राजीव गाँधी का कोई योगदान नहीं था। बीएचयू कोर्ट विश्वविद्यालय की एक सलाहकार संस्था है।
The #BHU court has recommended removing former PM #RajivGandhi‘s name from the university’s south campus as he made “no contribution” towards the educational institute.https://t.co/iqkuEalGeY
— The New Indian Express (@NewIndianXpress) December 13, 2019
यह साउथ कैम्पस 2006 में स्थापित हुआ था। मुख्य कैम्पस से 60 किलोमीटर दूर मिर्ज़ापुर के बरकछा में स्थित यह कैम्पस मुख्यतः कृषि विज्ञान के अनुसंधानों को समर्पित है। 19 अगस्त, 2006 को इसका लोकार्पण तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने किया था।
नाम बदलने का प्रस्ताव कोर्ट ने यूनिवर्सिटी के निर्णय लेने वाली संस्था अकादमिक काउंसिल के पास भेज दिया है। कोर्ट की इस बैठक की अध्यक्षता चांसलर गिरिधर मालवीय ने की, जो इलाहबाद हाई कोर्ट से रिटायर्ड जज हैं। इसके अलावा वह विश्वविद्यालय के संस्थापक और हिन्दू महासभा के नेता महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के पौत्र हैं। महामना को 2015 में भारत रत्न से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था।
The 63rd meeting of #BHU Court was chaired by Justice Giridhar Malviya, Chancellor, #BHU today. VC, Prof. Rakesh Bhatnagar, briefed the members about various achievements & milestones of the University during the past year. @HRDMinistry @bhupro @ugc_india pic.twitter.com/YOR2qgqUyu
— BHU (@VCofficeBHU) December 9, 2019
9 दिसंबर, 2019 को हुई जिस बैठक में यह निर्णय किया गया, वह कोर्ट की 63वीं बैठक थी। जस्टिस मालवीय के अनुसार यह प्रस्ताव कोर्ट ने एकमत से पारित किया है।
BHU Advisory Body Recommends Removing Rajiv Gandhi’s Name From South Campus As He Made ‘No Contribution’ To Varsityhttps://t.co/3xiW9klx06
— Swarajya (@SwarajyaMag) December 13, 2019
नाम बदलने की इस प्रक्रिया के दौरान जब ऑपइंडिया ने BHU के सोशल साइंस, कला संकाय, संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय सहित बरकछा कैंपस के कुछ छात्रों से बात की कि क्या राजीव गाँधी का नाम हटाना ठीक है तो ज़्यादातर ने एक सुर में कहा कि बिलकुल हटना चाहिए हम छात्र तो बहुत पहले से ही माँग करते आ रहे हैं। अब प्रशासन ने इसका स्वतः संज्ञान लिया है। और प्रस्ताव भी BHU कोर्ट में पारित हो गया है।
जब हमने छात्रों से पूछा कि आप छात्र क्या चाहते हैं? किसके नाम पर हो BHU के दक्षिणी परिसर का नाम? तो अमित, मनोज, अमन, पंकज,शुभम, कृष्णा कुमार, शशिकांत मिश्र, आनंद मोहन झा, विनायक जैसे कई छात्रों ने एक मत से कहा परिसर का नाम या तो महामना के नाम पर रखा जाए अगर नहीं तो उन्हीं के हिन्दू महासभा के कुछ साथियों सावरकर, गोलवरकर या हेडगेवार के नाम पर भी रखा जा सकता है। इन सभी का BHU की स्थापना के समय मालवीय जी को सहयोग रहा है। हालाँकि, कुछ लोगों ने महात्मा गाँधी का नाम भी सुझाया तो छात्रों ने यह कहकर इसे ख़ारिज किया कि वाराणसी में पहले से ही महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ है। तो सावरकर का नाम भी चल सकता है क्योंकि वो भी महामना के सहयोगी रहे हैं।
धर्म विज्ञान संकाय के पूर्व छात्र डॉ. मुनीश मिश्र से जब ऑपइंडिया ने बात की तो उन्होंने कहा, “BHU कोर्ट का यह कदम स्वागत योग्य है। इसके लिए साउथ कैम्पस बनने के समय से ही माँग होती चली आ रही थी। जैसे महामना जी शृंगेरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य जी की ही उपस्थित में विश्वविद्यालय का शिलान्यास कराना चाहते थे, पर समय की जरूरत को समझते हुए लार्ड हार्बिन की उपस्थिति में हुआ किन्तु उस समारोह का समापन शंकराचार्य की पादुका आने के उपरांत ही हुआ। उसी तरह तत्कालीन कुलपति महोदय ने समय की माँग को देखते हुए नामकरण किया, अब अगर बदला जा रहा है तो स्वागत योग्य कदम है।”
जैसे ही यह खबर कॉन्ग्रेस को लगी तो उम्मीद के मुताबिक कॉन्ग्रेस ने इस सिफारिश का विरोध किया है। कॉन्ग्रेस नेता अजय राय ने कहा है कि उनकी पार्टी ऐसा होने ही नहीं देगी। “अगर ऐसी कोई कोशिश हुई तो कॉन्ग्रेस सड़कों पर उतरेगी, और नाम बदलीकरण होने ही नहीं देगी।” पूर्व में विधायक रह चुके राय 2014 में प्रधानमंत्री (तत्कालीन प्रधानमंत्री पद के और वाराणसी लोक सभा के भाजपा प्रत्याशी) नरेंद्र मोदी से लोक सभा चुनाव हार चुके हैं।
इसके पहले बीएचयू कुछ दिन पूर्व भी चर्चा में था। उस समय उसके सनातन विद्या और धर्म विज्ञान संकाय (SVDV फैकल्टी) में एक मुस्लिम प्रोफेसर डॉ. फ़िरोज़ खान की नियुक्ति का छात्रों ने कड़ा किरोध किया था क्योंकि यह संकाय केवल सनातन धर्म के धर्मावलम्बियों के लिए ही बना था। एक महीने से अधिक समय तक चला गतिरोध तब टूटा जब विश्वविद्यालय प्रशासन ने समझौता करते हुए डॉ. फ़िरोज़ खान को दूसरे विभाग में उसी विषय की शिक्षा में समायोजित कर लिया और उन्होंने SVDV से त्यागपत्र दे दिया।