सुप्रीम कोर्ट ने यौन संबंधों को लेकर बड़ा फैसला दिया है। एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शादी का वादा करके किसी महिला से यौन संबंध बनाना और फिर उससे शादी न करना रेप माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में यौन संबंध के लिए महिला की सहमति के कोई मायने नहीं हैं, क्योंकि यह धोखा देकर किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एल नागेश्वर राव और एम आर शाह ने यह बड़ा फैसला दिया है।
जानकारी के मुताबिक, पीड़िता ने 21 जून 2013 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के मालखरौदा में सरकारी अस्पताल के जूनियर डाक्टर के खिलाफ दुष्कर्म का केस दर्ज करवाया था। जूनियर डॉक्टर के साथ पीड़िता का 2009 से प्रेम प्रसंग चल रहा था। आरोपी डॉक्टर ने शादी का वादा कर लड़की से संबंध बनाया। इसके बाद उसने किसी और लड़की से शादी कर ली। निचली अदालत और हाई कोर्ट ने आरोपी को दुष्कर्म का दोषी ठहराते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी। अब सुप्रीम काेर्ट ने भी उसकी याचिका खारिज कर दी है और 10 साल की सजा को घटाकर 7 साल कर दिया गया है।
अपने फैसले में दोनों जजों की बेंच ने कहा कि शादी का वादा करके जब युवक महिला के साथ यौन संबंध बनाता है और उससे शादी नहीं करता है, तो महिला की सहमति को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि महिला इस भ्रम में होती है कि युवक उससे शादी करेगा। शादी के वादे की वजह से ही युवती ने इसके लिए सहमति दी। लिहाजा इसे महिला की सहमति नहीं माना जा सकता है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और एम आर शाह की बेंच ने 9 अप्रैल को दिए फैसले में कहा कि युवती ने संबंध बनाने की सहमति इसलिए दी थी क्योंकि दाेषी ने उससे शादी का वादा किया था। मगर बाद में वह मुकर गया। उसने युवती के साथ धोखा किया।
जस्टिस शाह ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह की घटनाएँ आजकल काफी बढ़ रही है। बलात्कार नैतिक और शारीरिक रूप से समाज में घृणित अपराध है। ये पीड़िता के शरीर, दिमाग और व्यक्तिगत गोपनीयता का शोषण है। कोर्ट ने फैसले में साफ किया कि जब कोई हत्यारा किसी की हत्या करता है, तो उसके शरीर को खत्म करता है, लेकिन बलात्कारी महिला की आत्मा को खत्म कर देता है।