कहा जाता है कि समय पर नहीं मिला न्याय, न्याय नहीं कहलाता है। अगर अंतराल 30 साल जितना लंबा हो तो प्रभावशाली लोगों के बचने की आशंका अधिक रहती है। इस मामले में भी गवाहों और सबूतों में उलटफेर को लेकर आशंका जताई रही थी। बात हो रही है, बिहार के पूर्व मंत्री और जदयू के वर्तमान नेता श्रीभगवान सिंह कुशवाहा की।
बिहार के भोजपुर जिले के कुख्यात इचरी नरसंहार में आरोपित रहे जदयू के वर्तमान महासचिव श्रीभगवान कुशवाहा को आरा के MP/MLA कोर्ट ने बुधवार (5 अप्रैल 2023) को इस नरसंहार से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कुशवाहा के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं है।
वहीं, अन्य 9 आरोपितों को उम्र कैद की सजा सुनाने के साथ ही जुर्माना लगाया गया है। जिन लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है, वे हैं- राजेंद्र साह, बुद्धू साह, पुलिस महतो, गौरी महतो, बहादुर राम, बलेशर राम, भरोसा राम, सत्यनारायण और दुलारचंद यादव।
इन दोषियों के ऊपर भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 149 के तहत उम्रकैद, 307 के तहत 10-10 साल की सश्रम कैद तथा आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत तीन-तीन साल की सश्रम कारावास और 25-25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है। ये सभी सजाएँ साथ चलेंगी।
वहीं, मृतक अनंत बिहारी सिंह के पुत्र रितेश सिंह उर्फ पप्पू सिंह ने कोर्ट के इस फैसले पर असंतोष जताया है। उन्होंने कहा कि आरा कोर्ट के इस फैसले को वह पटना उच्च न्यायालय में अपील करेंगे। उन्होंने कहा कि अपराधियों को इतनी सजा पर्याप्त नहीं है।
क्या है इचरी कांड
देश के जिन-जिन इलाकों में राजपूत और भूमिहारों पास जमीनें थीं, उन अधिकांश इलाकों में नक्सली के रूप में आतंक फैला हुआ था, जो आजतक देखने को मिलता है। बिहार में भी ऐसा ही आतंक था। 1990 के दशक शुरू होने के पहले ही विनोद मिश्रा के नेतृत्व में इंडियन पीपुल्स फ्रंट (IPF) द्वारा दूसरे के जमीनों पर लाल झंडा गाड़कर कब्जा करने का आतंक फैलने लगा था।
लालू यादव की बिहार की राजनीति में उभार ने इस कोढ़ में खाज का काम किया। इसी दौरान का नरसंहार है, भोजपुर जिले के आयर थाने के अंतर्गत आने वाला इचरी नरसंहार कांड। विनोद मिश्रा के IPF ने इस जातीय नरसंहार को अंजाम दिया। कभी IPF के कमांडर रहे श्रीभगवान सिंह कुशावाहा ने भोजपुर जिले के जगदीशपुर विधानसभा सीट से घटना के लगभग 2.5 साल पहले यानी 1990 में IPF के टिकट पर चुनाव जीत चुके थे।
कहा तो यहाँ तक जाता है कि इससे IPF में उनका नियंत्रण और कद और बढ़ गया था। तब स्थानीय लोग स्पष्ट रूप से मानते थे कि भोजपुर और उसके आसपास जिलों में नक्सलियों द्वारा दी जाने वाली कोई भी छोटी या बड़ी घटना बिना उनकी सहमति के नहीं होती थी।
राज्य में लालू यादव का पहला शासनकाल था। अपराधियों और नक्सलियों में जोश उफान पर था। भाजपा अपना वजूद तलाश रही थी, लेकिन कॉन्ग्रेस का तिलिस्म अभी टूटा नहीं था। यही कारण था कि 1989 के आम चुनाव में भाजपा ने बक्सर के डुमराँव राजघराने के महाराज कमल सिंह को टिकट दिया था। लेकिन, ब्राह्मण बहुल बक्सर लोकसभा से वे जीत नहीं सके।
एक अलग रास्ते पर बिहार चल रहा था। 29 मार्च 1993 की शाम का वक्त था। भाजपा की मीटिंग से ट्रैक्टर पर बैठकर लौट रहे लगभग दो दर्जन से अधिक लोग जैसे ही आटापुर गाँव के नजदीक नागा बाबा के मठिया के पास पहुँचे, वैसे ही हथियारों से लैस अपराधियों ने उन पर अंधाधुन फायरिंग कर दी।
इस फायरिंग में पाँच लोगों- राम लोचन सिंह, विनय सिंह, जालिम सिंह, हृदयानंद सिंह और अनंत बिहारी सिंह की मौके पर ही मौत हो गई। वहीं, जनेश्वर सिंह, सत्येंद्र सिंह, उमेश सिंह, गुप्तेश्वर सिंह, मटुकधारी सिंह, रवींद्र सिंह, जय प्रकाश सिंह और भीखन साह घायल हो गए। मारे गए सभी लोग राजपूत समाज से थे।
इस हत्याकांड का आरोप IPF पर लगा। कहा गया कि विनोद मिश्रा के इशारे पर श्रीभगवान सिंह कुशवाहा के नेतृत्व में इस घटना को अंजाम दिया गया। इस हमले को लेकर घटना में घायल गुप्तेश्वर सिंह ने 24 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखवाई थी। इनमें श्रीभगवान कुशवाहा का नाम भी शामिल था।
इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से 12 गवाह पेश किए थे, जबकि बचाव पक्ष सिर्फ दो गवाह पेश कर पाया था। इस तरह 30 सालों यह केस ना सिर्फ चलता रहा, बल्कि इसके आरोपित रहे श्रीभगवान सिंह कुशवाहा बाइज्जत बरी भी हो गए। यह जानते हुए भी कि श्रीभगवान पर नरसंहार का आरोप है, नीतीश कुमार ने उन्हें खूब प्रश्रय दिया।
श्रीभगवान कुशवाहा भोजपुर क्षेत्र के एकवारी गाँव में नक्सलवाद को स्थापित करने वाले कुख्यात जगदीश महतो के दामाद हैं। इसके बाद वह विधायक भी चुन लिए गए। इसके बाद उनका प्रभाव लगातार बढ़ता रहा। IPF के बाद वे साल 2000 में नीतीश कुमार की समता पार्टी से विधायक बने और साल 2005 में जदयू से। इस दौरान वे बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री भी रहे।
स्थानीय लोगों का कहना है कि श्रीभगवान ने एक चुनावी जनसंपर्क के दौरान कहा था कि ‘राजपूत चमरुआ जूता ह, जब पहिने के होखे त करुआ तेल लगा ल आ पहिन जा।’ यानी राजपूत चमड़े के जूता है। जब इनसे काम लेना हो तो इनमें तेल लगाओ और पहन लो। यह उनके जातीय नफरत को दर्शाता है।
नीतीश सरकार में जातीय नरसंहार
वैसे जातीय नरसंहार का आरोप सिर्फ लालू यादव की सरकार पर नहीं है। नीतीश कुमार की सरकार में भी जातीय नरसंहार के हुए हैं। नीतीश कुमार की पहला में पहला जातीय नरसंहार खगड़िया का अलौली नरसंहार हुआ था। साल 2007 में इसमें धानुक जाति के एक दर्जन लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
इसके बाद इसके साल 2021 में मधुबनी जिले बेनीपट्टी में एक राजपूत परिवार के 5 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इस नरंसहार के बाद भी नीतीश कुमार ने एक शब्द नहीं कहा था। इसी तरह फरवरी 2023 मे सारण जिले के मुबारकपुर गाँव में राजद से जुड़े विजय यादव नाम इलाके का छटे हुए गुंडे एक ही जाति के तीन लोगों को पीट-पीटकर मार डाला। तब भी नीतीश कुमार चुप रहे।