बिहार के झाझा रेलवे स्टेशन से लगी सड़क जो सिमुलतला की ओर जाती है, उस पर आप करीब 25 किलोमीटर का सफर तय करेंगे तो खुरंडा पंचायत के बथनावरन गाँव में पहुँचेंगे। पहाड़ और जंगलों से घिरे इस इलाके में कई गाँव हैं। मसलन- बनगामा, गोपलामारन, लीलावरण, टीटहीचक, तिलौना, बजियाडीह, पटुआ, पचकटिया, कारीझाड़ वगैरह।
इनमें से कुछ गाँव में दर्जनभर घर हैं, तो कुछ बड़े गाँव। इस इलाके में मुस्लिमों और यादवों की अच्छी-खासी आबादी है। करीब-करीब हर गाँव में कुछ घर संथाल यानी आदिवासियों के हैं। इसके अलावा दलितों और महादलितों के भी कुछेक घर हैं।
बथनावरन में प्रवेश करते ही हमारी मुलाकात मोबिन अंसारी से हुई। मोबिन हमें देखते ही भड़क उठे। उनका कहना था, “मेरे घर का छः बच्चा बाहर कमा रहा था। सब बेरोजगार हो गया। सरकार कोई मदद नहीं किया। सब घर आ गया है। घर लौटने के लिए पैसा नहीं था तो यहाँ से मवेशी बेचकर पैसा भेजे।”
थोड़ा आगे बढ़ने पर गाँव की मस्जिद दिखी, जिसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़े हमने गाँव की महिलाओं और पुरुषों को बीड़ी बनाते देखा। अल्पसंख्यक वर्ग के कई परिवार बीड़ी बनाने के कार्य पर ही आश्रित हैं। गाँव के आखिरी छोर पर 14 घर संथालों के हैं। यहीं हमारी मुलाकात बिरसा कुजूर से हुई। उन्होंने बताया कि कुछ संथाल परिवार ने धर्म परिवर्तन कर लिया है।
धर्मांतरण करने वाले एक परिवार की महिला शोभा तिग्गा ने बताया कि वे लोग चार साल से यीशु की पूजा कर रहे हैं। वे कहती हैं, “देवता को पूजा कर मर गए तो कुछ सुनवाई न हुआ। कोई लोग बोला कि इसमें जाओ तो जान बचेगा। इसलिए चले गए। गाँव में क्रिश्चन लोग आता है। वे कहे कि इसमें जाइएगा तो अच्छा रहेगा।” यह पूछे जाने पर कि मिशनरी से उन लोगों को किसी तरह की मदद मिलती है, महिला ने बताया, “पहले मिलता था, लेकिन मोदी ने अब सब बंद करवा दिया।”
झारखंड से सटे बिहार के सुदूर ग्रामीण इलाकों में मिशनरी भी खासे सक्रिय हैं। ये धर्मांतरण ही नहीं करवा रहे, मोदी को बदनाम भी कर रहे। सुनिए इस महिला को…#BiharElections2020 #बिहारडायरी pic.twitter.com/0gUrghD0Dz
— Ajit Jha (@JhaAjitk) October 16, 2020
पहले यानी, धर्मांतरण से पहले। महिला के अनुसार धर्मांतरण से उनलोगों को खाने के सामान, कपड़े वगैरह मिले थे। अब नहीं मिलता क्योंकि मिशनरी के लोगों ने उन्हें बताया कि मोदी ने सब बंद करवा दिया है। इस महिला की मानें तो वह वोट तो गिराती हैं, लेकिन दूसरों के कहने पर। जब हमने पूछा कि किसके कहने पर वोट देती हैं, तो उन्होंने हैदर का नाम लिया। हैदर स्थानीय वार्ड सदस्य है।
हमने इसकी पुष्टि के लिए हैदर से संपर्क करने की कोशिश की तो पता चला कि वह झाझा गया हुआ है। स्थानीय मुखिया बलदेव यादव ने इस संबंध में बात करने से इनकार कर दिया।
शोभा के घर के सामने ही 35 साल के अमानत अंसारी का घर है। अमानत भी दिल्ली में काम करता था और लॉकडाउन के बाद घर लौट आया। उसने बताया कि गाँव में मिशनरी वाले आते रहते हैं। अमानत ने बताया, “यहाँ 13-14 घर संथाल है। इसमें चार घर ईसाई हो गया है। इनके घर से तीन-चार वोटर हैं। हमलोगों का 500 के करीब वोट पड़ता है। लेकिन सब जुट जाएँगे तो समझिए दो हजार के करीब वोटर होगा।”
यह केवल बथनावरन की कहानी नहीं है। पटुआ और घोरपारण में भी हमने पाया कि कुछेक संथाल परिवारों ने धर्मांतरण कर लिया है। दिलचस्प यह था कि ऐसे हरेक परिवार ने धर्मांतरण 5 साल के भीतर किया है। धर्मांतरण से पहले इन्हें ईसाई मिशनरी जिसे ये क्रिश्चन कहते हैं, से आर्थिक और अन्य मदद मिलती थी, पर धर्म बदलने के बाद से यह बंद है।
गौरतलब है कि झाझा विधानसभा सीट जमुई जिले के अंतर्गत आती है। इस सीट पर पहले चरणा में 28 अक्टूबर को वोट डाले जाने हैं। 2015 में इस सीट से बीजेपी के रवींद्र यादव जीते थे जो इस बार लोजपा के उम्मीदवार हैं। यह सीट जदयू के खाते में गई है और उसने पिछला चुनाव हारने वाले दामोदर रावत को उम्मीदवार बनाया है। राजद की तरफ से राजेंद्र प्रसाद मैदान में हैं।