बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आदतन और बेवजह जनहित याचिका लगा कर निर्माण कार्य रोकने वाले याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि समाजसेवी और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील व्यक्ति के तौर पर अपनी ईमानदारी साबित करने के लिए वह मशहूर शहर के पर्यावरणविद और वकील अफ़रोज़ शाह के साथ मिलकर “कुछ असली समाजसेवा करके दिखाए”। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और जस्टिस भारती डांगरे की डिवीजन बेंच ने इसके अलावा राज्य सरकार को निर्देश दिया है वह सुनिश्चित करे कि याचिकाकर्ता राकेश चव्हाण सच में अफ़रोज़ शाह के दफ्तर पहुँचे, और काम करे।
400 साल पहले की झील के लिए बिल्डिंग न बनाई जाए
चव्हाण ने याचिका दायर कर गोरेगाँव में चल रहे NESCO नामक कम्पनी के निर्माण कार्य को रोकने की याचिका लगाई थी। उन्होंने याचिका में महाराष्ट्र सरकार, उसके विभिन्न विभागों और NESCO को प्रतिवादी बनाया था। उनके अनुसार NESCO ने वहाँ मौजूद एक झील को भर दिया था और उसके ऊपर एक इमारत का अवैध निर्माण चालू था। न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग को पहले तो समझ में ही नहीं आया कि याचिकाकर्ता चव्हाण आखिर कहना क्या चाहते हैं।
फिर उन्होंने NESCO के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता प्रसाद ढाकेफलकार से पूरा मामला समझाने के लिए कहा। तो ढाकेफलकार ने बताया कि PIL के अनुसार जहाँ NESCO का निर्माण कार्य चल रहा है, उस जगह पर पहले एक झील और कुआँ हुआ करते थे। “याचिकाकर्ता की आदत है कि जब कभी नया निर्माण कार्य शुरू होता है, वह याचिका दायर कर देता। है यह भूखंड कम्पनी ने 70 के दशक में पूरी तरह से कानूनी रूप से खरीदा था। उस पर झील थी तो ज़रूर, लेकिन 400 साल पहले!” ढाकेफलकार ने अदालत को बताया।
इस पर याचिकाकर्ता चव्हाण ने जवाब दिया कि वे उस साइट पर झील और कुएँ की वापसी चाहते हैं। उन्होंने दावा किया कि वे “समाज के उद्धार और भलाई के लिए” काम करते हैं।
‘एक हफ़्ते समाज सेवा करो’
इस पर अदालत ने कहा, “आप समाज के भले के लिए काम करना चाहते हैं, तो जाइए और अब कुछ असली समाजसेवा करिए। जाइए और कोई बीच साफ़ करिए, या फिर और कोई काम एक हफ़्ते तक करिए जो अफ़रोज़ शाह आपको सौंपें।” बेंच ने राज्य को निर्देश भी दिया कि वह सुनिश्चित करे कि चव्हाण 2 सितंबर को शाह के दफ्तर पहुँचें, और जो भी काम उन्हें सौंपा जाए, वह करें। अदालत ने कहा कि इस बीच वह चव्हाण की याचिका को लंबित रखेगी।
पहले भी हाईकोर्ट दे चुका है ‘शाह के साथ काम करो’ की रचनात्मक सज़ा
पिछले साल अक्टूबर में भी आपराधिक धमकी देने के दो आरोपितों को अदालत ने वर्सोवा बीच की सफाई के अफ़रोज़ शाह के अभियान का हिस्सा बनने को कहा था। अपने इस ‘बीच एक्टिविज़्म’ के लिए शाह को ‘चैंपियन ऑफ़ अर्थ’ का ख़िताब संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम से मिल चुका है। अपने 84-वर्षीय पड़ोसी के साथ शुरू हुए शाह के इस यह साप्ताहिक अभियान के बारे में कहा जाता है कि इसने वर्सोवा बीच की कायापलट कर दी। उनके काम की सराहना प्रधानमंत्री के रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में भी हो चुकी है।