बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार (8 मई 2024) को औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने के महाराष्ट्र सरकार के निर्णय के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं को खारिज कर दिया। अदालत ने औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव करने के सरकार फैसले को बरकरार रखा।
बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और जस्टिस आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने कहा कि शहरों के नाम बदलने की अधिसूचना अवैध नहीं थी। कोर्ट ने कहा, “हमें यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि शहरों और राजस्व प्रभागों का नाम बदलने वाली अधिसूचनाएँ किसी भी बुराई से ग्रस्त नहीं हैं।”
दरअसल, दोनों शहरों के नाम बदलने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले के खिलाफ संबंधित जिलों के निवासियों सहित व्यक्तियों द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष कई याचिकाएँ दायर की गईं। याचिकाओं में कहा गया है कि राज्य सरकार ने वर्ष 2001 में औरंगाबाद का नाम बदलने के अपने प्रयास को विफल कर दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि यह निर्णय संविधान के प्रावधानों की पूरी तरह अवहेलना है। उस्मानाबाद का नाम बदलने के खिलाफ दायर याचिका में कहा गया था कि उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव करने से धार्मिक और सांप्रदायिक नफरत भड़क सकती है। इससे धार्मिक समूहों के बीच दरार पैदा हो सकती है।
याचिका में दावा किया गया था कि यह बदलाव भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के विपरीत है। इसमें यह भी बताया गया था कि सन 1998 में महाराष्ट्र सरकार ने उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव करने का प्रयास किया था, लेकिन असफल रही। इसलिए इन बदलावों पर फिर से रोक लगाई जाए।
जवाब में महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि ‘उस्मानाबाद’ का नाम बदलकर ‘धाराशिव’ करने से न तो कोई धार्मिक या सांप्रदायिक नफरत पैदा हुई, बल्कि अधिकांश लोगों ने उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव करने पर जश्न मनाया। सरकार ने इन आरोपों से इनकार किया कि नाम बदलना एक समुदाय के प्रति नफरत फैलाने के उद्देश्य से राजनीति से प्रेरित कदम था।
बता दें कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की पिछली सरकार ने 29 जून 2021 को अपनी कैबिनेट की बैठक में दोनों शहरों का नाम बदलने का फैसला किया था।औरंगाबाद शहर और राजस्व मंडल का नाम बदलकर ‘छत्रपति संभाजीनगर’ कर दिया गया, जबकि उस्मानाबाद का नाम बदलकर ‘धाराशिव’ कर दिया गया।
इसको लेकर कहा गया कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार ने राजनीतिक लाभ के लिए कथित तौर पर अनधिकृत तरीके से इस मुद्दे को अपनी आखिरी कैबिनेट में उठाया। इसके बाद शिवसेना में टूट हुई मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली नई सरकार ने 16 जुलाई 2022 को उद्धव सरकार के फैसले की फिर से पुष्टि की।