बुलंदशहर चलती कार गैंगरेप और हत्या मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार (04 अक्टूबर) को तीनों दोषियों की फाँसी की सजा को घटाकर 25 साल की सजा कर दी। कोर्ट ने इसे ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ केस नहीं माना और दोषियों की पुनर्वास और सुधार की संभावना पर जोर दिया। यह घटना जनवरी 2018 की है, जब बुलंदशहर जिले में 17 साल की आरुषि (बदला हुआ नाम) का अपहरण कर चलती कार में गैंगरेप कर उसकी हत्या कर दी गई थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बदली फाँसी की सजा
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह मामला ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ की श्रेणी में नहीं आता, इसलिए दोषियों को फाँसी नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने तीनों दोषियों – जुल्फिकार अब्बासी, दिलशाद अब्बासी और इजराइल उर्फ मेलानी – को 25 साल की कैद की सजा सुनाई, जिसमें कोई माफी नहीं होगी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 2 जनवरी 2018 की शाम को दोषियों ने पीड़िता को उसके साइकिल से लौटते वक्त देखा और उसे मौज-मस्ती के इरादे से अगवा कर लिया। वे उसे अपनी कार में खींचकर ले गए और चलती कार में उसके साथ एक-एक करके बलात्कार किया। जब पीड़िता चिल्लाने लगी, तो उन्होंने उसका गला दुपट्टे से घोंटकर हत्या कर दी और उसका शव एक नहर में फेंक दिया।
मामले की सुनवाई के दौरान, बुलंदशहर की पॉक्सो (POCSO) कोर्ट ने मार्च 2021 में तीनों दोषियों को फाँसी की सजा सुनाई थी। अदालत ने कहा था कि इस घटना से समाज में भय का माहौल पैदा हुआ है और लोगों, विशेष रूप से अभिभावकों, में अपनी बेटियों को स्कूल भेजने को लेकर चिंता पैदा हो गई है। दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 364 (अपहरण), 376D (गैंगरेप), 302/34 (हत्या), 201 (सबूत मिटाने) और 404 (संपत्ति छीनने) तथा पॉक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था।
हाईकोर्ट की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई
पॉक्सो कोर्ट में फाँसी की सजा पाए तीनों दोषियों ने फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत के फैसले की फिर से समीक्षा की और पाया कि यह ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ केस की श्रेणी में नहीं आता। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने कोई ऐसे विशेष कारण नहीं बताए थे, जिनके आधार पर केवल फाँसी की सजा दी जानी चाहिए।
हाई कोर्ट ने कहा कि दोषियों का कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था और उनके परिवारों की जिम्मेदारी भी थी। इसके अलावा, दोषियों की उम्र लगभग 24 साल थी, और उनमें से एक को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ थीं। इन परिस्थितियों के मद्देनज़र, कोर्ट ने कहा कि दोषियों का सुधार और पुनर्वास संभव है, इसलिए फाँसी की जगह 25 साल की कैद की सजा उचित होगी।
सुप्रीम कोर्ट के नवास उर्फ मुलानवास केस का संदर्भ
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के नवास उर्फ मुलानवास मामले का हवाला देते हुए कहा कि ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ केसों में ही फाँसी की सजा दी जा सकती है, और ऐसे मामलों में भी यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कोई असाधारण परिस्थिति हो, जिससे सजा को उलटा न जा सके। अदालत ने इस मामले में कहा कि निचली अदालत ने इस तरह की कोई असाधारण स्थिति का उल्लेख नहीं किया था, जो केवल फाँसी की सजा को उचित ठहरा सके।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला जनवरी 2018 की घटना से जुड़ा है, जब बुलंदशहर जिले में 17 साल की पीड़िता आरुषि (बदला हुआ नाम) का अपहरण कर उसके साथ चलती कार में गैंगरेप किया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गई। इस वीभत्स घटना के बाद पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी। 4 जनवरी 2018 को पीड़िता का शव एक नहर में पाया गया था। परिजनों ने इजराइल, जुल्फिकार और दिलशाद को नामजद करते हुए उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था।
इस मामले में पुलिस की लापरवाही भी सामने आई थी। आरोप था कि तत्कालीन चौकी इंचार्ज ने घटना के बाद बरामद किए गए सबूतों को कोर्ट में पेश नहीं किया, जबकि वे सबूत केस के लिए महत्वपूर्ण थे। कोर्ट की नाराजगी के बाद पुलिस ने जाँच में तेजी लाई और तीनों आरोपितों के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाए।
पॉक्सो कोर्ट ने सुनाई थी फाँसी की सजा
मार्च 2021 में बुलंदशहर की पॉक्सो कोर्ट ने इस मामले में दोषियों को फाँसी की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि यह अपराध इतना गंभीर और वीभत्स था कि इससे समाज में भय का वातावरण बना और लोग अपनी बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो गए। अदालत ने दोषियों को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं और पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराया था। फाँसी की सजा सुनाए जाने के बाद, पीड़िता की माँ ने कहा था कि वे तीनों दोषियों को फाँसी पर लटकते हुए देखना चाहती हैं। उन्होंने इस घटना को अपनी बेटी और पूरे परिवार के लिए अत्यंत दुखद और अपमानजनक बताया था।
हालाँकि, अब हाईकोर्ट ने फाँसी की सजा को बदलकर 25 साल की कैद की सजा दी है, यह निर्णय दोषियों के पुनर्वास की संभावना और अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए लिया गया। कोर्ट ने कहा कि दोषियों की उम्र, उनका आपराधिक रिकॉर्ड न होना और उनके परिवार की जिम्मेदारी जैसे बिंदु इस मामले में सजा को कम करने के लिए पर्याप्त थे। इस फैसले के बाद, एक बार फिर यह चर्चा का विषय बन गया है कि किस प्रकार के मामलों में फाँसी की सजा दी जानी चाहिए और किस आधार पर इसे कम किया जा सकता है।