कश्मीर के बांदीपोरा में तीन साल की बच्ची के साथ हुए बलात्कार ने अब एक राजनीतिक और सांप्रदायिक मोड़ ले लिया है। इस पर जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने शरिया लागू करने का सुझाव दिया है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “मैं सुंबल में 3 साल की बच्ची के साथ हुई बलात्कार की घटना की ख़बर सुनकर स्तब्ध हूँ। किस तरह की बीमार मानसिकता के लोग ऐसी वारदातों को अंजाम देते हैं। समाज अक्सर ऐसी वारदातों के लिए महिलाओं के अवांछित निमंत्रण को दोषी ठहराता है, लेकिन क्या सच में उस मासूम की ग़लती थी। आज ऐसे वक़्त में शरिया क़ानून के अनुसार, ऐसे काम करने वालों को पत्थर से मारकर मौत की सज़ा देनी चाहिए।” अफसोस की यह बयान एक पूर्व मुख्यमंत्री का है, जिससे समाज को उम्मीद होती है। जिससे वोटर को यह उम्मीद होती है कि कानून-व्यवस्था चाक-चौबंद रहेगी। अफसोस इस बात का भी मुफ्ती ने न तो ऐसे समाज का निर्माण किया, न ही राज्य में ऐसी कानून-व्यवस्था बना पाईं। और तो और, सदियों पुराने आतंकी मानसिकता वाले शरिया कानून को थोपने की बात कह गईं। चुनावी मौसम में और आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने का इससे बेहतर अवसर (या घिनौना?) शायद उन्हें दुबारा नहीं मिलता।
Mortified to hear about the rape of a 3 yr old girl in Sumbal. What kind of a sick pervert would do this?Society often blames women for inviting unwanted attention but what was this child’s fault?Times like these, Shariah law seems apt so that such paedophiles are stoned to death
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) May 11, 2019
पूर्व मुख्यमंत्री के बाद अब धर्म के ठेकेदारों की सुनिए। मुत्ताहिदा मजलिस उलेमा (एमएमयू) सहित विभिन्न धार्मिक निकायों ने इस बलात्कार की निंदा करते हुए कहा, “ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि कश्मीर में कई लोग, महान सूफी संतों द्वारा दिखाए गए मार्ग और शिक्षाओं को भूल गए हैं।” गजब खेल गए गुरु! 3 साल की बच्ची का बलात्कार हो जाता है और आप धार्मिक मार्ग-शिक्षा के बीच झूल रहे हैं? आतंकियों की मौत पर तो आप लोग पूरी घाटी को ही बंद करने का आह्वान कर डालते हैं। पत्थरबाजों को उकसाते हैं। अब खून नहीं खौल रहा आपका? या इस घटना में वो बात नहीं, जो आपको फायदा पहुँचा सके?
लगे हाथ पाक परस्त अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को भी सुन ही लीजिए। इन जनाब ने इस घटना पर ‘गहरा दुख’ व्यक्त किया है। लेकिन बोलते-बोलते बुढ़ापे के कारण या भारत-विरोधी मानसिकता की वजह से, इन्होंने इस घटना को राज्य की विवादित स्थितियों से जोड़ दिया। उन्होंने इस तरह की घटनाओं को राज्य के ताने-बाने और समृद्ध संस्कृति पर एक काला दाग करार दिया। उन्होंने राज्य में न्यायपालिका और पुलिस प्रशासन पर भी सवाल खड़े किए। राजनीतिक हस्तक्षेप से पूरी व्यवस्था को संक्रमित और बर्बाद करने जैसी बातें भी गिलानी ने अपने बयान में कही। मतलब बुढ़ापा हावी नहीं है। जहर है मन के भीतर, भारत के खिलाफ जहर। 3 साल की बच्ची के बलात्कार पर – (i) राज्य की विवादित स्थिति (ii) राजनीतिक हस्तक्षेप जैसे कारण भला और कौन गिना सकता है। और तीसरा पॉइंट – समृद्ध संस्कृति पर काला दाग! आपके मुँह से यह शोभा नहीं देता गिलानी साब! आप तो आतंकियों की पैरवी कीजिए, पत्थरबाजों को उकसाइए, पाकिस्तान से पैसे मँगवाइए, कश्मीरी पंडित अपने घर न लौट सकें, इसके लिए हर तरह के माहौल बनाइए – लेकिन कृपया करते कश्मीर के समृद्ध संस्कृति पर अपना मुँह मत खोलिए।
अब जरा खबर देखिए और समझिए कि घाटी में यह सेलेक्टिव आउटरेज़ क्यों? द एशियन एज की ख़बर के अनुसार, पीड़िता और आरोपित ताहिर, दोनों इस्लाम के अलग-अलग समुदायों से संबंध रखते हैं। ऐसी सूरत में पीड़िता के समुदाय से संबंध रखने वाले लोगों ने सोमवार को सड़क पर उतर कर न्याय के लिए विरोध-प्रदर्शन किया। हैरान कर देने वाली बात यह है कि तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार की वारदात रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना है और इस पर अलग-अलग सम्प्रदाय की बात बेशर्मी से अधिक और कुछ नहीं।
मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार, हो सकता है कि आरोपित ताहिर ने कई अन्य स्थानीय लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार किया हो। उस पर दंड संहिता की धारा 363, 342 और 376 के तहत मामला दर्ज किया गया है। फ़िलहाल इस घटना के लिए एक विशेष जाँच समिति का गठन कर दिया गया है।