वर्तमान में नए कृषि कानून के ख़िलाफ़ चल रहे किसानों के आंदोलन और पिछले साल शाहीन बाग में CAA/NRC के ख़िलाफ़ हुए आंदोलन में धीरे-धीरे कई समानताएँ नजर आना शुरू हो गई हैं।वामपंथियों और कट्टरपंथियों के समर्थन के बाद इस प्रदर्शन में शाहीन बाग की तरह अब बच्चों को आंदोलन का चेहरा बनाया जा रहा है।
एनडीटीवी द्वारा शेयर की गई वीडियो में हम देख सकते हैं कि मोहाली से आए लोग अपने बच्चों को साथ लेकर आए हैं, जो वीडियो में कहते सुनाई पड़ रहे हैं कि वह किसान परिवार से हैं और चूँकि इस आंदोलन को पूरी दुनिया का समर्थन मिलने लगा है, तो वो भी यहाँ शामिल होने आए हैं।
इसके अलावा बच्चों के अभिभावक भी कह रहे हैं कि वो नहीं चाहते कि उनके बच्चे इस प्रदर्शन से दूर रहें। वीडियो में एक चौथी कक्षा का बच्चा बैनर लिए बोलता नजर आ रहा है, जिसे देख मन में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या उस मासूम को इस बात की जानकारी भी है कि प्रदर्शन किस चीज को लेकर है या कड़ाके की ठंड में जिस प्रदर्शन का वो हिस्सा बनने के लिए आया है उसका नेतृत्व करने वाले लोग समाधान की माँग नहीं कर रहे बल्कि एक जिद्द लिए दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं, बिलकुल उसी तरह जैसे पिछले साल शाहीन बाग में प्रदर्शनकारी बैठे थे।
याद दिला दें कि इसी प्रकार बच्चों का इस्तेमाल पिछले साल सीएए/एनआरसी के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन में हुआ था। लोगों ने अपने बच्चों को प्रदर्शन पर लाकर बिठा दिया था और बच्चों से नारे लगवाए गए थे “जो हिटलर की चाल चलेगा, वो हिटलर की मौत मरेगा, जामिया तेरे खून से इंकलाब आएगा, जेएनयू तेरे खून से इंकलाब आएगा.. हम लड़कर लेंगे आजादी।”
“We belong to farmers’ families, people across India are supporting our movement – that motivates us, and hence we are here to take part,” say young children of farmers from Mohali who’ve joined #farmersprotest at Singhu Border
— NDTV (@ndtv) December 15, 2020
NDTV’s Akshay Dongare reports pic.twitter.com/UuvTH0LNNx
इससे पहले भी शाहीन बाग के प्रदर्शन से मिलती जुलती कई तस्वीरें किसान आंदोलन से सामने आई थीं। जैसे इस प्रोटेस्ट के शुरू होते ही हमने सबसे पहले शाहीन बाग की दादी बिलकिस और भीम आर्मी चीफ चंद्र शेखर रावण को मौके पर पहुँचते देखा था।
फिर, सिंघू बॉर्डर से बिरयानी के वीडियो सामने आने के बाद कई लोगों ने पिछले साल के प्रोटेस्ट को याद किया था। वीडियो में देखा गया था कि आंदोलन कर रहे ‘किसानों’ के बीच बिरयानी बाँटी जा रही है।
प्रोटेस्ट के 15वें दिन वहाँ से एक ऐसी तस्वीर सामने आई थी जिसने साबित कर दिया था कि पूरे आंदोलन को किसानों ने हाईजैक कर लिया है। तस्वीर में नजर आया था कि किसान महिलाएँ हाथ में उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे कट्टरपंथियों और अर्बन नक्सलियों की रिहाई माँग रही थी। पोस्टर के सभी चेहरे वही थे जो सीएए/एनआरसी के ख़िलाफ़ आवाज उठा रहे थे। लोगों ने ये देख कर पूछा था कि क्या ये लोग भी अब किसान बन गए हैं।
8 तारीख को किसानों के भारत बंद ने भी शाहीन बाग की याद दिलाई थी। उस समय भी चक्का जाम जैसी नीतियाँ अपनाई गई थीं। अब बच्चों का नजर आना भी इसी बात का प्रमाण हैं कि ये दोनों प्रदर्शन एक ही मॉडल पर हैं। फर्क बस ये है कि आंदोलन का नाम एंटी-सीएए से एंटी कृषि बिलों में बदल गया है और बुजुर्ग दादी की जगह पर किसान आ गए हैं।