सीबीआई के पूर्व निदेशक एम नागेश्वर राव ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी को पत्र लिख कर तिरुपति में गरीब परिवार की एक 20 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार के मामले में गिरफ्तारी में ढिलाई बरतने का आरोप लगाया है। एफआईआर के अनुसार, पीड़िता आरोपित ईसाई पादरी के यहाँ नौकरी करती थी। एक दिन वो झाँसे से उसे लेकर किसी सुनसान स्थान पर गया और बलात्कार किया। आरोपित एक ईसाई पादरी है।
पूर्व सीबीआई निदेशक ने अपने पत्र में लिखा कि चूँकि आरोपित ईसाई मिशनरी समूह का हिस्सा है, जो धर्मान्तरण के कार्य में लगा हुआ है और उसका अच्छा-खासा प्रभाव है। उसने पीड़िता को जान से मार डालने की धमकी भी दी थी। सीबीआई के पूर्व निदेशक नागेश्वर राव ने आरोप लगाया कि इस मामले में राजनीतिक व अन्य दबावों के कारण पुलिस उसके प्रति नरमी बरत रही है। उन्होंने कहा कि FIR दर्ज करने में ही पुलिस ने 9 दिन की देरी लगा दी, जिससे आरोपित के प्रभाव के बारे में पता चलता है।
उन्होंने इस दौरान सीएम रेड्डी को भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा अक्टूबर 9, 2020 को जारी किए गए निर्देशों के बारे में याद दिलाया, जिसमें महिलाओं के साथ होने वाले अपराध के मामले में कुछ अनिवार्य कदम के बारे में बताया गया था। सभी राज्य सरकारों को ये निर्देश जारी किए गए थे। उन्होंने आग्रह किया कि इस मामले में सही और पक्षपात रहित जाँच होनी चाहिए। साथ ही आरोपित को तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
साथ ही उन्होंने सीआरपीसी की धाराओं के तहत पीड़िता को मुआवजा देने की भी माँग की। उन्होंने लापरवाही बरतने के आरोप में तिरुपति के एसपी अवुला रमेश रेड्डी के खिलाफ अनुशासत्मक कार्रवाई करने की भी माँग की। तिरुपति पुलिस ने नागेश्वर राव के ट्वीट पर रिप्लाई करते हुए कहा कि उनकी शिकायत को निवारण हेतु भेज दिया गया है। पूर्व सीबीआई निदेशक ने इसे ‘मैकेनिकल रिप्लाई’ बताते हुए याद दिलाया कि शिकायतकर्ता वो नहीं हैं, बल्कि पीड़िता और उसका परिवार है – जिन्होंने FIR दर्ज कराई।
हालाँकि, इस घटना के 12 दिन बाद और FIR दर्ज होने के 9 दिन बाद पुलिस ने आरोपित को गिरफ्तार किया। पूर्व सीबीआई निदेशक का आरोप है कि तिरुपति के एसपी ने इस मामले को लेकर किए गए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में न सिर्फ उनके बारे में प्रोफेशनल तरीके से बात की, बल्कि पुलिस की निष्क्रियता और इस मामले में बरती गई ढिलाई को भी नकार दिया। साथ ही, तिरुपति पुलिस ने अपना ट्वीट भी डिलीट कर लिया।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने आशंका जताई कि तिरुपति में एक प्रभावशाली ईसाई पादरी द्वारा एक गरीब लड़की का बलात्कार किए जाने के मामले में एसपी का ये रवैया उनके बारे में शक और संदेह पैदा करता है। उन्होंने कहा कि इतने दिन बाद FIR का दर्ज होने और आरोपित की गिरफ्तारी में देरी बताती है कि मटेरियल एविडेंस मिट गए हैं और ऐसा आरोपित को बचाने के लिए किया गया है। उन्होंने आईपीसी की धारा की बात करते हुए याद दिलाया कि ऐसी लापरवाही होने पर पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है।
उन्होंने कहा कि पुलिस अधिकारी इस मामले में धारा-201 (सबूतों को मिटाना), धारा-217 (आरोपित को बचाने के लिए क़ानूनी प्रावधानों को नजरअंदाज करना), धारा-218 (आरोपित को सज़ा से बचाने के ले रिकॉर्ड्स में गड़बड़ी करना) और धारा-221 (जानबूझ कर आरोपित की गिरफ़्तारी में चूक करना) के तहत आरोपित बनाए जाने चाहिए। उन्होंने सीएम से एसपी को तुरंत सस्पेंड करने के साथ-साथ इस मामले क क़ानूनी जाँच के लिए आग्रह किया है।
Sir @ysjagan conduct of SP @tirupatipolice raises strong suspicion about his role in inaction etc in the Rape case.
— M. Nageswara Rao IPS (@MNageswarRaoIPS) October 16, 2020
Here👇is my letter requesting action against him including his immediate suspension, to ensure fair/impartial investigation so as to do justice to poor victim girl. https://t.co/PGrJNmNILo pic.twitter.com/dejH7MeJKI
बता दें कि भारत सरकार के जिस पत्र का जिक्र सीबीआई के पूर्व निदेशक एम नागेश्वर राव ने किया है, उसमें केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट कहा था कि अपराध होने के बाद महिला किसी भी थाने में FIR दर्ज करा सकती है और बाद में उस ‘जीरो एफआईआर’ को सम्बंधित थाने में ट्रांसफर किया जाएगा। साथ ही FIR न दर्ज करने पर पुलिस अधिकारियों के लिए भी दंड का प्रावधान है। साथ ही जाँच के लिए पुलिस को 2 महीने का समय देने की बात कही गई थी। इसमें दिए गए दिशानिर्देशों के अनुसार:
- CrPc की धारा 173 में बलात्कार से जुड़े मामलों की जाँच दो महीनों में करने का प्रावधान है। गृह मंत्रालय ने इसके लिए एक ITSSO नामक ऑनलाइन पोर्टल बनाया है, जहाँ से मामलों की मॉनिटरिंग की जा सकती है।
- सीआरपीसी के सेक्शन 164-A के अनुसार, बलात्कार या यौन शोषण के मामले की सूचना मिलने पर 24 घंटे के भीतर पीड़िता की सहमति से एक रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर मेडिकल से जाँच करवाई जानी चाहिए।
- इंडियन एविडेंस ऐक्ट की धारा 32(1) के अनुसार, मृत व्यक्ति का बयान जाँच में महत्वपूर्ण तथ्य होगा।
- फोरेंसिंक साइंस सर्विसिज डायरेक्टोरेट ने यौन शोषण के मामलों में फोरेंसिंक सबूत इकट्ठा करने, स्टोर करने के लिए जो दिशानिर्देश जारी किए हैं, उनका पालन किया जाना चाहिए।
- अगर पुलिस इन प्रावधानों का पालन नहीं करती तो न्याय संभव नहीं है। ऐसे में, अगर लापरवाही सामने आती है तो ऐसे अधिकारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
इधर आंध्र के तिरुपति में गरीब परिवार की लड़की से बलात्कार के आरोपित पादरी की गिरफ़्तारी के लिए जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हो रहा है। आरोपित पादरी का नाम मल्लेम देवसहयम बताया जा रहा है। टाउन क्लब जंक्शन पर विश्व हिन्दू परिषद् और RSS के कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। उनका आरोप है कि स्थानीय SI हिमाबिंदु ने शिकायत दर्ज कराने आई पीड़िता के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया और संवेदनहीन रवैया अपनाया।
सोशल मीडिया पर उपलब्ध तस्वीरों से स्पष्ट है कि आरोपित पादरी जगह-जगह कार्यक्रमों में जाकर उसे सम्बोधित करता है। उसके धर्मान्तरण में भी लिप्त होने की बात सामने आ रही है। क्रिसमस से लेकर ‘गुड फ्राइडे’ जैसे ईसाई त्योहारों के मौके पर वो उपदेश देता है। एक क्रिसमस के मौके पर उसके द्वारा 400 साड़ियाँ बाँटने की तस्वीरें सामने आ हैं। उस कार्यक्रम में विधायक और विधान पार्षद से लेकर मेयर तक उपस्थित थे।
स्थानीय लोगों ने एसपी पर लगाया राजनीतिक महत्वकाँक्षा के चलते मामले में नरमी बरतने का आरोप
वहीं, कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि तिरुपति के एसपी रमेश की कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ हैं। दावा किया जा रहा है कि वो अगले विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाने वाले हैं। लोगों का मानना है कि ‘वोट बैंक की राजनीति’ और अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए आरोपित पादरी के साथ नरमी बरती जा रही है। ऑपइंडिया ने एसपी रेड्डी से संपर्क कर उनकी प्रतिक्रिया जानने के प्रयास किया, लेकिन बात नहीं हो पाई।