पिछले आंध्र प्रदेश के सत्ताधारी दल के ही एक सांसद ने ईसाई धर्मांतरण को सरकारी संरक्षण दिए जाने का खुलासा किया था। अब एक ऐसे इलाके में चर्चा का निर्माण किए जाने का मामला सामने आया जहॉं केवल हिंदू ही रहते हैं। इतना ही नहीं जब ग्रामीणों ने इस पर आपत्ति जताई तो प्रशासन ने उनका कथित तौर पर उत्पीड़न किया।
आंध्र प्रदेश के मूलस्थानम अग्रहारम (Moolasthanam Agraharam) गाँव में इसाई मिशनरियों द्वारा पूर्वी गोदावरी जिले में एक अवैध चर्च का निर्माण कार्य शुरू किया गया है। निर्माण रिहायशी इलाके में चल रहा है और यहाँ केवल हिन्दू परिवार रहते हैं।
ट्विटर पर ‘लीगल राइट्स प्रोटेक्शन फोरम’ एकाउंट द्वारा इस बात की जानकारी दी गई है। इसके अनुसार, मूलस्थानम (वी), आलमुरु, ईजी जिला, आंध्र प्रदेश में जिला प्रशासन को कई शिकायतों और निरंतर याद दिलाने के बावजूद अवैध चर्च निर्माण हो रहा है।
Mulasthanam(V), Alamuru, EG Dist, AP: Illegal construction of Church despite several complaints & gentle reminders to District administration.
— Legal Rights Protection Forum (@lawinforce) July 8, 2020
Villagers wrote to @India_NHRC saying they’re being treated as 2nd grade citizens by authorities. Sought NHRC to protect their rights. pic.twitter.com/qIajccWFW1
इस मामले में ग्रामीणों ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत (एनएचआरसी) को भी लिखा है कि अधिकारियों द्वारा उनके साथ द्वितीय श्रेणी के नागरिक जैसा व्यवहार किया जा रहा है। अब वे अपने अधिकारों की रक्षा हेतु NHRC की मदद का इन्तजार कर रहे हैं।
‘ऑर्गेनाइजर’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस चर्च निर्माण के अवैध होने के कारण ग्रामीणों ने इस पर आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि यह गाँव में शांति और सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान पैदा कर रहा है। मिशनरियों द्वारा चर्च निर्माण रोकने के लिए ग्रामीणों की दलील अनसुनी कर दी गई और इसके बाद उन्होंने पंचायत और पुलिस से संपर्क करने का फैसला किया।
मूलस्थानम अग्रहारम के ग्रामीणों द्वारा स्थानीय अधिकारियों के पास एक आरटीआई भी दायर की गई थी। उम्मीद के अनुसार ही आरटीआई के जवाब में पता चला कि चर्च के निर्माण के लिए कोई अनुमति नहीं दी गई थी।
संयोग से, नवम्बर 29, 2012 को आंध्र प्रदेश के पंचायत राज और ग्रामीण विकास विभाग द्वारा एक आदेश (GOMS 376) जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि किसी भी धार्मिक स्थल के निर्माण की अनुमति केवल तभी दी जा सकती है जब पड़ोसी को इससे कोई ऐतराज ना हो और जिला कलेक्टर से अनुमति प्राप्त की गई हो।
लेकिन उक्त चर्च ने ऐसी कोई अनुमति नहीं ली थी और गाँव के निवासियों ने भी इसके निर्माण पर आपत्ति जताई थी। फिर भी यह निर्माण नहीं रोका गया। ग्रामीणों ने इसके बाद ग्राम राजस्व अधिकारी से संपर्क किया, फिर आवश्यक कार्रवाई के लिए मंडल राजस्व अधिकारी और जिला कलेक्टर सहित उच्च अधिकारियों से संपर्क किया। उनमें से किसी ने भी मामले में हस्तक्षेप नहीं किया और इसके विपरीत स्थानीय पुलिस ने शिकायत करने के लिए हिंदुओं को ही परेशान करना शुरू कर दिया।
प्रशासन के इस व्यवहार के बाद ग्रामीणों ने अवैध चर्च के निर्माण को रोकने के लिए भूख हड़ताल की। स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने फिर से शिकायत कर रहे ग्रामीणों को परेशान करना शुरू कर दिया। उन्हें बार-बार पुलिस स्टेशन बुलाया गया और बात न मानने पर आपराधिक मामले दर्ज करने की धमकी दी जाती थी। इससे ही स्पष्ट होता है कि इसाई मिशनरियों कि पुलिस और प्रशासन में कितनी गहरी पैठ है।
उत्पीड़न के बाद ग्रामीणों ने जिला पुलिस अधीक्षक से संपर्क किया और स्थानीय पुलिस के व्यवहार के बारे में उन्हें अवगत कराया। साथ ही उन्होंने पूरे मामले में न्याय की भी माँग की। लेकिन उन्हें यहाँ से भी कोई न्याय नहीं मिला। कोई विकल्प शेष ना बचने के बाद अब ग्रामीणों ने न्याय मिलने की उम्मीद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का दरवाजा खटखटाया है।
मूलस्थान अग्रहारम के ग्रामीणों ने एनएचआरसी के अध्यक्ष को पत्र लिखकर पूरे मामले की व्याख्या की है। इस पत्र में कहा गया है कि बिना किसी डर के शांतिपूर्वक जीवन जीने के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है।
पत्र के अनुसार, ग्रामीणों ने कहा है कि उनकी शिकायतों पर विचार ना करने और अपनी शिकायतों के कारण उन्हें निशाना बनाने को नजरअंदाज कर भी दिया जाए तो भी उनके साथ संविधान द्वारा प्रदत्त उनके समानता के अधिकार का हनन किया गया है।
अपनी अपील में ग्रामीणों ने एनएचआरसी के पुलिस महानिदेशक, आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव, पूर्वी गोदावरी के जिला कलेक्टर, जिला पुलिस अधीक्षक से इस मामले में हस्तक्षेप करने की माँग की है और उनसे इस मामले में जाँच करने और सख्त कानूनी कार्रवाई करने का आग्रह किया है। उन्होंने दलील दी है कि चर्च का निर्माण सार्वजनिक शांति और व्यवस्था के लिए हानिकारक है।
गौरतलब है कि कोरोना वायरस की महामारी के दौरान इसाई मिशनरियों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में अवैध चर्च निर्माण से लेकर धर्मांतरण के कई मामले सामने आए हैं। ऑपइंडिया की ही एक रिपोर्ट में हमने बताया था कि किस प्रकार उत्तराखंड राज्य में भी प्रलोभन देकर और युवाओं को गुमराह कर अनुसूचित जाति के लोगों को निशाना बनाकर उन्हें चर्च निर्माण और धर्मांतरण के लिए उकसाया जाता था है।