प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार (13 दिसंबर 2021) को ‘श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर’ देश को समर्पित किया था। विश्वनाथ धाम की दिव्यता और भव्यता हर किसी को मोहित कर रही है। अब श्रद्धालु गंगा घाट से सीधे आकर बाबा का जलाभिषेक कर सकेंगे। पर वर्ग विशेष के कुछ लोग इससे असहज हैं। उन्हें लगा रहा है कि इस कॉरिडोर से ज्ञानवापी मस्जिद ढक गई है।
यूट्यूब चैनल यूपी तक ने ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज अदा करने आए कुछ लोगों से बात की। कुछ ने मस्जिद के ढक जाने की बात कही तो किसी ने विकास सीमित होने की बात कही। मोहम्मद शागीर ने वाराणसी के बदलने की बात पर कहा कि ये सब कुछ बस वोट के लिए है। विकास कुछ भी नहीं हुआ है।
वहीं शौकत अली ने भी विकास के सीमित होने पर सहमति जताई। उनका कहना है कि ये सब बस मंदिर-मस्जिद तक ही है। बिलाल अहमद ने कहा कि ऐसा नहीं है कि पूरी वाराणसी बदल गई है। मंदिर-मस्जिद की एकता को दिखाने के लिए विकास का रूप दिया गया है। हमीद अंसारी का कहना है कि सिर्फ मंदिर का विकास हुआ है।
कोलकाता से आए नौशाद आलम ने कहा, “हम कोलकाता से यहाँ नमाज पढ़ने के लिए आए थे। हमको तो ये हालात देखकर समझ में नहीं आ रहा है कि मस्जिद को पूरी तरह से ढक दिया गया और मंदिर को इस तरह से विशाल बनाया गया है। ये क्या है? मैं टूरिस्ट हूँ। मैं यह दर्द महसूस कर सकता हूँ।”
नौशाद ने आक्रोशित होते हुए कहा, “आपको दिखाई नहीं दे रहा है? क्या आपको मस्जिद दिख रहा है? मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। आप लोग सच्चाई को कैसे छुपा सकते हैं? एक चीज को ढक दिया गया और दूसरे को भव्य बनाया गया। यह हिंदुस्तान है। यहाँ लोकतंत्र है। संविधान में कहा गया है कि सबको बराबर का हक है। आप किसी के हक को दबा दीजिएगा, ऐसा होता है क्या? पहली बार मैंने इस मस्जिद में नमाज अदा किया और जो दुख हुआ है, वह मैंने 40 साल के जीवन में कभी महसूस नहीं किया था।”
इतना कहने के बाद नौशाद आलम रोने लगे। एंकर ने उन्हें ढाढस बँधाया और फिर सवाल किया कि आपको क्या लगता है कि एकतरफा विकास हुआ है तो नौशाद ने कहा, “विकास की बात छोड़िए, किसी के अधिकार को दबा दिया गया है।” इसके बाद वह रोने लगे और आगे बात करने से इनकार कर दिया।
गौरतलब है कि 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खाँ द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी।