Sunday, November 17, 2024
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कश्मीर के मार्तण्ड सूर्य मंदिर में ईद पर फोड़े गए पटाखे, हिन्दुओं के पूजा करने पर पुरातत्व विभाग ने जताई थी आपत्ति: ‘हैदर’ फिल्म में इसे बताया था ‘शैतान की गुफा’

वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि लड़के मंदिर में उछल-कूद मचा रहे हैं। इसी दौरान कुछ लड़के पटाखे फोड़ते हुए भी देखे जा सकते हैं।

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में स्थित मार्तण्ड सूर्य मंदिर में ईद पर पटाखे फोड़ने का मामला सामने आया है। इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो में कई लड़के पटाखे जलाते हुए देखे जा सकते हैं। याद हो कि ये वही मंदिर है, जिसके अब सिर्फ अवशेष बचे हुए हैं और विशाल भरद्वाज की फिल्म ‘हैदर’ में इसे ‘शैतान की गुफा’ बता कर इसे बदनाम किया गया था।

वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि लड़के मंदिर में उछल-कूद मचा रहे हैं। इसी दौरान कुछ लड़के पटाखे फोड़ते हुए भी देखे जा सकते हैं। इनमें से एक लड़का सफेद कपड़े में दिखाई दे रहा है। उसके सिर में टोपी भी देखी जा सकती है। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि मंदिर में पटाखे फोड़ने वाले लोग इस्लामवादी हैं।

बता दें कि मार्तण्ड सूर्य मंदिर देश के गिने-चुने सूर्य मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने संरक्षित स्मारक घोषित किया है। यही नहीं, इस मंदिर में हिंदुओं के पूजा करने पर पुरातत्व विभाग आपत्ति तक जता चुका है। वहीं ईद पर पटाखे फोड़ने की घटना सामने आने के बाद एएसआई ने अब तक किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं दी है।

ललितादित्य मुक्तापीड ने करवाया था भव्य मंदिर का निर्माण

कश्मीर में एक बहुत ही पराक्रमी राजा हुआ थे जिनका नाम था ललितादित्य मुक्तापीड। कहा जाता है कि मार्तण्ड सूर्य मंदिर का निर्माण उन्होंने ही करवाया था। उनका तो सन् 761 में निधन हो गया और उनके बाद उनके वंश के अधिकतर राजा दुर्बल साबित हुए, लेकिन ये मंदिर लोगों को अपने प्रिय राजा की याद दिलाता रहा। मार्तण्ड सूर्य मंदिर की भव्यता की तुलना विजयनगर सम्राज्य की राजधानी हम्पी से होती रही है। अफ़सोस ये कि इस्लामी आक्रांताओं की बर्बरता के कारण हम्पी के भी अब सिर्फ अवशेष ही बचे हैं। वो शहर, जिसकी तुलना तब के रोम से होती थी।

उस समय भारत, ईरान और मध्य एशिया के कई क्षेत्रों में करकोटा वंश के ललितादित्य मुक्तापीड का शासन फैला हुआ था। भले ही इस मंदिर का भव्य निर्माण उन्होंने कराया हो, इससे जुड़ी कथा महाभारत में पांडवों तक जाती है। मार्तण्ड सूर्य मंदिर के आसपास कुल 84 अन्य छोटे-छोटे मंदिर हुआ करते थे, जिनके आज सिर्फ अवशेष ही बचे हैं। ओडिशा के कोणार्क और गुजरात के मोढेरा की तरफ मार्तण्ड सूर्य मंदिर का स्थान भी देश में उच्चतम था।

15वीं शताब्दी की शुरुआत में इस्लामी आक्रांताओं ने इसे जड़ से मिटाने की ठान ली और इसे अवशेषों में बदल दिया। एक पूरी की पूरी फ़ौज को इस मंदिर को तोड़ने में पूरे एक साल लग गए, जिससे इसकी मजबूती का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। इससे तीन किलोमीटर की दूरी पर ही मट्टन में शिव मंदिर स्थित है, जहाँ आज भी पूजा-पाठ होता है। यहाँ एक जल के कुंड के भीतर ही शिवलिंग स्थित है। श्रद्धालु वहाँ आज भी दर्शन के लिए जाते हैं।

अनंतनाग शहर से पूर्व दिशा में इसकी दूरी 3 किलोमीटर है और ये जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये एक किस्म के पठार पर स्थित है। उस समय इसकी कलाकृतियाँ देख कर लोग अचंभे से भर जाते थे। सिकंदर शाह मीरी ने उनमें से कई मंदिरों को ध्वस्त कर के उन्हीं ईंट-पत्थरों का इस्तेमाल कर मस्जिदें बनवाई। उसने इसकी जड़ों को खोदना शुरू किया और उनमें से पत्थर निकाल कर लकड़ियाँ भर देता था। इसके बाद उन लकड़ियों में वो आग लगवा देता था। इस तरह उसने मार्तंड सूर्य मंदिर को ध्वस्त कर डाला।

ये भी जानने लायक बात है कि इस मंदिर को नष्ट करने की सलाह उसे एक ‘सूफी फकीर’, जिसे आजकल ‘सूफी संत’ भी कहते हैं, उसने दी थी। उसका नाम था – मीर मुहम्मद हमदानी। वो कश्मीर के समाज को इस्लामी बनाना चाहता था। वो इलाके में ब्राह्मणों के वर्चस्व को तोड़ कर सारी संपदा हथियाना चाहता था। इसके बाद कई भूकंप भी आए, जिनमें मंदिर को क्षति पहुँची। जिस पठार पर इसे बनाया गया था, वहाँ से तब अधिकतर कश्मीर घाटी को देखा जा सकता था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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