तमिलनाडु से आई इस ख़बर से आज के समाज की विकृत मानसिकता का पता चलता है कि माँ-बाप अपने बच्चों को आख़िर क्या शिक्षा देंगे जब उन्हें किसी महिला द्वारा भोजन बनाना तो छोड़िए, उस जगह पर खड़े होने पर भी आपत्ति है। ज्योतिलक्ष्मी और अन्नलक्ष्मी नामक दो महिलाओं को उनके दलित समाज से आने के कारण, ग्रामीणों के विरोध के बाद उनका ट्रांसफर कर दिया गया।
द हिन्दू की एक ख़बर के अनुसार, 3 जून को, एम अन्नालक्ष्मी को मदुरै कलेक्टर के कार्यालय से एक आदेश (अप्वाइंटमेंट लेटर) मिला, जो उनके गाँव वालयापट्टी में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में उनकी नियुक्ति से संबंधित था। दरअसल, अन्नलक्ष्मी, एक अनुसूचित जाति (एससी) की महिला हैं, जिनकी नियुक्ति आंगनवाड़ी केंद्र में एक सहायक और रसोइया के रूप में हुई थी। अगले ही दिन ज़िला प्रशासन द्वारा अन्नलक्ष्मी का तबादला पास के गाँव किलवनरी में कर दिया गया। वहीं एक अन्य दलित महिला ज्योतिलक्ष्मी का तबादला मादीपनुर में कर दिया गया।
अन्नलक्ष्मी ने बताया, “गाँव के हिन्दू तिरुमंगलम तालुक के आईसीडीएस कार्यालय गए थे जहाँ उन्होंने कहा कि उनके बच्चे एससी महिला द्वारा तैयार भोजन कभी नहीं खाएँगे।” आज हम जिस युग में रह रहे हैं, वहाँ इस प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार गले नहीं उतरता। हद तो तब पार हो जाती है जब कोई मामला इतना संगीन हो जाए कि बात जान पर बन पड़े।
ख़बर के अनुसार, 8 जून को, दलित कॉलोनी में मानों कोई तूफ़ान आ गया हो। उनके इलाक़े में हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम दिया गया। जब दलित शिकायत दर्ज करने के लिए नागायापुरम थाने गए, तो कुछ हमलावरों ने उनके घरों में घुसकर बिजली मीटर के बक्से, दरवाज़े और वाहन तोड़ दिए। यहाँ तक कि उनके पशुओं पर हमला भी किया। इस झड़प में कुछ लोग गंभीर रूप से घायल भी हो गए।
इस घटना पर ज्योतिलक्ष्मी ने कहा, “कितने दु:ख की बात है कि मैं अपने ही गाँव में काम करने में असमर्थ हूँ।” ऐसे हिंसक माहौल को देखना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा। ख़ासतौर पर तब, जब सज़ा किसी ऐसी ग़लती की मिले जो की ही न गई हो। फ़िलहाल स्थिति यह है कि दोनों महिलाएँ अब अकेले घर जाने तक से डरती हैं।
ज्योतिलक्ष्मी ने बताया कि उन्हें 4 जून को अपने गाँव की आंगनवाड़ी में न जाने के लिए कहा गया था। उन्होंने कहा, “मैं एक मेडिकल परीक्षा के बाद एक प्रमाण-पत्र जमा करने के लिए गई थी, जो काम शुरू करने के लिए तैयार किया गया था। लेकिन वहाँ के अधिकारी ने मुझे बताया कि मेरे गाँव के कई पुरुष और महिलाएँ हमारी नियुक्ति के विरोध में आए थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से अधिकारी से कहा था कि वे दलितों द्वारा तैयार भोजन को कभी नहीं छूएँगे।”
दोनों महिलाओं के अनुसार, यह भेदभावपूर्ण रवैया उस वक़्त खुलकर सामने आया जब अप्रैल में दलितों को स्थानीय मुथलम्मन मंदिर उत्सव में पूजा करने की अनुमति नहीं दी गई। उन्होंने कहा, “पुरुषों ने हमें मंदिर के बाहर तक नारियल तोड़ने की अनुमति नहीं दी।”
ज्योतिलक्ष्मी ने अपनी कड़ी मेहनत पर रोशनी डालते हुए बताया कि उन्होंने इस नौकरी के लिए 18 साल की उम्र से कोशिश की थी क्योंकि वो हमेशा से ही बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं। वहीं, अन्नलक्ष्मी का कहना है कि इस तनाव के चलते उनका तबादला होना अत्यंत पीड़ादायक है।
इस मामले की जाँच पेरियार डीएसपी टी मथियालगन कर रहे हैं। अब तक 11 आरोपितों को न्यायिक हिरासत में भेजा जा चुका है। पुलिस ने SC/ ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, और IPC के तहत मामले दर्ज किए हैं।
इस मामले पर कलेक्टर (प्रभारी) एस शांता कुमार ने बताया कि उन्होंने अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ 11 जून को गाँव का दौरा किया। उन्होंने कहा, “कोई भी शख़्स अब अपने काम पर वापस जा सकता है और जहाँ तक ज़िला प्रशासन का सवाल है, उसकी कार्रवाई अब बंद है।” फ़िलहाल, दोनों महिलाओं को अभी तक अपने उच्च अधिकारियों से वालयापट्टी में बहाली के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली है।