दिल्ली के महरौली इलाके में 30 जनवरी 2024 को अखूंदजी मस्जिद और बहरुल उलूम मदरसे पर बुलडोजर कार्रवाई हुई थी। दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने सरंक्षित रिज क्षेत्र में अवैध निर्माण को लेकर यह कार्रवाई की थी। ढहाई गई इस मस्जिद में मुस्लिम शब-ए-बारात पर नमाज पढ़ना चाहते थे। लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने इसके लिए इजाजत देने से इनकार कर दिया है।
दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर शब-ए-बारात के दिन मस्जिद की जमीन पर बिना रोक-टोक आवाजाही की अनुमति माँगी थी। आज (23 फरवरी 2024) दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस पुरुषइंद्र कुमार कौरव ने यह कहते हुए याचिका खारिज की दी कि अब यह साइट डीडीए के नियंत्रण में है। इससे जुड़ी मुख्य याचिका पर 07 मार्च को सुनवाई होनी है। उन्होंने मौजूदा स्थिति का हवाला देते हुए नए सिरे ये निर्देश जारी करने से इनकार करते हुए यथास्थिति बहाल रखने को कहा।
वकील शम्स ख्वाजा ने इस दौरान दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति की ओर से दलीलें दी। याचिका में कहा गया था कि शब-ए-बारात (प्रायश्चित की रात) पर मुस्लिम खुद और अपने पूर्वजों के पापों के लिए अल्लाह से माफी माँगते हैं। अखूंदजी मस्जिद 700 साल पुरानी थी। सालों से वहाँ नमाज अदा की जा रही थी। स्थानीय लोगों का एक कब्रिस्तान भी था। लिहाजा उन्हें शब-ए-बारात पर इस जगह पर बेरोकटोक आवाजाही की इजाजत दी जाए। हालाँकि दिल्ली वक्फ बोर्ड के वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह मस्जिद न तो 700 साल पुरानी है और न ही वक्फ की प्रॉपर्टी है।
गौरतलब है कि डीडीए की कार्रवाई के बाद मुस्लिम पक्ष ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद अदालत ने उसे यथास्थिति बहाल रखने को कहा था। अदालत ने कहा था कि यह निर्देश केवल उसी हिस्से को लेकर है जहाँ अखूंदजी मस्जिद थी। उसका निर्देश संरक्षित क्षेत्रों में अन्य अवैध निर्माण पर कार्रवाई से डीडीए को नहीं रोकती। मुस्लिम पक्ष का दावा है कि इस मस्जिद का निर्माण करीब सात सौ साल पहले रजिया सुल्तान के शासनकाल में हुआ था। वहीं डीडीए का कहना है कि संरक्षित क्षेत्र में कब्जा कर जो अवैध निर्माण किए गए थे उनमें यह मस्जिद और मदरसा भी शामिल था।