दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार (4 दिसंबर 2024) को कहा कि प्रतिबंधित इस्लामी संगठन ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के पदाधिकारियों द्वारा जुटाए गए चंदा को PMLA के तहत मनी लॉन्ड्रिंग ने कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इसलिए चंदा के जरिए इस धन को जुटाने वाले लोगों के खिलाफ धन शोधन (Money Laundering) का अपराध नहीं दर्ज किया जा सकता है।
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश जसमीत सिंह ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) केवल ‘अपराध की आय’ वाले मामले में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की धारा 3 को लागू कर सकता है। इसका ये अर्थ हुआ कि ये आपराधिक गतिविधि के प्राप्त धन होगा। इसके विपरीत, PFI के नेताओं के मामले में अदालत ने कहा कि आरोप यह था कि उन्होंने अपराध करने के लिए धन एकत्र किया था।
कोर्ट ने कहा, “ED द्वारा स्थापित मामला कि याचिकाकर्ता जो धन जुटा रहे थे, उसका उपयोग अनुसूचित अपराध करने के लिए किया गया था। यह PMLA के तहत अपराध की आय नहीं है। धन एकत्र करके किया गया अपराध अनुसूचित अपराध सहित किसी भी कानून के तहत अपराध हो सकता है, लेकिन पीएमएलए की धारा 3 को लागू करने के लिए इसे अपराध की आय नहीं कहा जा सकता है।”
इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने PFI की दिल्ली इकाई के तीन पदाधिकारियों – परवेज अहमद (अध्यक्ष), मोहम्मद इलियास (महासचिव) और अब्दुल मुकीत (कार्यालय सचिव) को जमानत दे दी। इन सभी पर साल 2020 में हुए CAA-NRC विरोधी प्रदर्शनों में शामिल होने और PFI के लिए धन एकत्र करने का आरोप लगाया गया था। PFI को साल 2022 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रतिबंधित कर दिया है।
न्यायाध जसमीत सिंह ने कहा कि धन जुटाने का काम साल 2020 के दिल्ली दंगों से पहले ही शुरू हो गया था। उन्होंने कहा कि PMLA में कहा गया है कि अपराध की आय आपराधिक गतिविधि के परिणामस्वरूप उत्पन्न होनी चाहिए। हालाँकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि आरोपितों ने अपराध से धन अर्जित किया भी हो तो भी उस पर उनका नियंत्रण नहीं था, क्योंकि धन पीएफआई के पास जमा था।
इसको देखते हुए न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपितों ने पीएमएलए की धारा 45 के तहत जमानत के लिए दो शर्तें पूरी की हैं। इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि तीनों आरोपियों ने दो साल से अधिक की अवधि तक जेल की सजा काट ली है और निकट भविष्य में मुकदमे के समाप्त होने की संभावना नहीं है। इस आधार पर तीनों आरोपितों को जमानत दे दी गई।
न्यायालय ने इस संदर्भ में यह भी कहा कि विशेष अधिनियमों के तहत जमानत के लिए कड़े नियम संविधान की अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को नहीं छीन सकते। न्यायालय ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि इस मामले में अभियोजन पक्ष के कुल 185 गवाह और 456 दस्तावेज हैं। इसके अलावा, डिजिटल साक्ष्य लाखों पृष्ठों में हैं।