Friday, November 22, 2024
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जामिया में सफाईकर्मियों को वाल्मीकि जयंती मनाने की नहीं मिली अनुमति: जिस रजिस्ट्रार नसीम पर आरोप, उस पर जातिसूचक गाली देने का भी मामला

इससे पहले 22 अक्टूबर 2024 की रात को जामिया में दीपोत्सव मना रहे छात्रों के साथ बुरा बर्ताव किया गया था। उनकी बनाई रंगोली को मिटा दिया गया था और दीपों को तोड़ दिया गया था। इस्लामी कट्टरपंथियों वाली सोच रखने वाले मुस्लिम छात्रों के एक गुट ने 'अल्लाह-हू-अकबर' और 'नारा-ए-तकबीर' के नारे लगाकर माहौल बिगाड़ दिया था।

दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय ने वाल्मीकि जयंती मनाने वाले सफाई कर्मचारियों को परिसर में घुसने से रोक दिया। इससे विवाद गहरा गया है। इससे पहले विश्वविद्यालय प्रशासन ने हिंदू विद्यार्थियों को दीवाली मनाने से रोक दिया था। इसके बाद पुलिस ने बुधवार (23 अक्टूबर 2024) को करीब आधा दर्ज छात्रों को हिरासत में लिया था।

दरअसल, बुधवार (23 अक्टूबर 2024) की सुबह सफाई कर्मचारी वाल्मीकि जयंती मनाने जा रहे थे, लेकिन यूनिवर्सिटी के गार्ड ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। उन्होंने बताया कि महर्षि वाल्मीकि जयंती पिछले 6 साल से विश्वविद्यालय परिसर में मनाई जा रही है, लेकिन इस बार इजाजत नहीं दी गई। उन्होंने पूछा कि इस बार विश्वविद्यालय प्रशासन ने ऐसा क्यों किया।

सफाई कर्मचारियों का कहना है कि कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति विश्वविद्यालय प्रशासन और दिल्ली पुलिस से ली गई थी। सफाई कर्मचारी जब महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमा लेकर विश्वविद्यालय परिसर में जाने लगे तो गेट पर गार्ड ने उन्हें रोक दिया। सफाई कर्मियों का आरोप है कि उनसे कहा गया कि मूर्ति यूनिवर्सिटी के अंदर ले जाने की इजाजत नहीं है।

दूसरी तरफ, विश्वविद्यालय के गार्ड ने कहा कि मूर्ति काफी बड़ी थी। इस वजह से वह परिसर में नहीं जा सकती थी। इसके बाद सरिता विहार से भाजपा पार्षद के पति मनीष चौधरी ने जामिया यूनिवर्सिटी पहुँचकर उसके मुख्य गेट के सामने महर्षि वाल्मीकि की मूर्ति की पूजा की और जयंती मनाई। इस दौरान जामिया यूनिवर्सिटी के सफाई कर्मी भी मौजूद रहे।

एक सफाई कर्मचारी ने रिपब्लिक भारत को बताया, “गार्ड ने कहा कि विश्वविद्यालय परिसर में मूर्ति में ला सकते। फोटो लेकर आओ और जयंती मनाओ।” उस व्यक्ति ने कहा कि उसने हर जरूरी विभाग से इस आयोजन के लिए अनुमति ले रखी थी। इसके बावजूद उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया। वहीं, एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि रजिस्ट्रार नसीम हैदर ने मना किया था कि मूर्ति नहीं जाएगी।

उस व्यक्ति ने गाली देने का भी आरोप लगाया। उस व्यक्ति ने कहा, “जब हम वाल्मीकि के रूप में उनके (विश्वविद्यालय के अधिकारियों) घर जाकर काम करें, तब तो कई दिक्कत नहीं है। जीते-जागते आदमी से उन्हें दिक्कत नहीं है, लेकिन एक मूर्ति से उन्हें दिक्कत है।” वाल्मीकि समाज के लोगों ने कहा कि यह पूजा सिर्फ एक घंटे के लिए होना था, फिर भी उन्हें रोक दिया गया।

विश्वविद्यालय में ऐडहॉक के तौर पर काम करने वाले राजेश वाल्मीकि ने न्यूज नेशन को बताया कि विश्वविद्यालय में उनके समाज के करीब 200-250 कर्मचारी हैं। उन्होंने बताया कि वे जामिया में लगभग 20 साल से काम कर रहे हैं। राजेश का कहना है कि परिसर में काम करने वाले वे तीसरी पीढ़ी के लोग हैं, फिर भी गेट पर एक व्यक्ति ने उनसे आई कार्ड दिखाने की माँग की।

वाल्मीकि समाज के लोगों ने कहा कि उनकी मूर्ति को बाहर रखवा करके उनकी आस्था पर चोट की गई है। उन्होंने कहा कि इस तरह का बर्ताव उनके साथ पहले कभी नहीं किया गया था। पिछले 6 साल में यह पहली बार है, जब उनकी आस्था को चोट पहुँचाई गई। विश्वविद्यालय प्रशासन के इस कट्टरपंथी रूख से वाल्मीकि समाज के लोग काफी आक्रोशित नजर आए।

ST-SC समाज के लोगों के साथ यहाँ होता है भेदभाव

ये पहली बार नहीं है कि दलित समाज के इन सफाई कर्मियों के साथ जामिया विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस तरह का दुर्व्यवहार किया है। इससे पहले जामिया के प्रोफेसर एवं तत्कालीन रजिस्ट्रार नाज़िम हुसैन अल जाफ़री, तत्कालीन डिप्टी रजिस्ट्रार (अब रजिस्ट्रार) मोहम्मद नसीम हैदर और प्रोफेसर शाहिद तसलीम के खिलाफ़ दलित कर्मचारी को जातिसूचक गाली देने पर एससी/एसटी एक्ट में दर्ज किया गया था।

जुलाई 2024 में एक मीटिंग के दौरान अल जाफरी ने सहायक रामनिवास सेकहा था, “तुम निचली जाति के हो, तुम भंगी हो और तुम्हें ऐसे ही रहना चाहिए। तुम्हारे जैसे लोगों को आरक्षण के आधार पर नौकरी मिलती है, लेकिन फिर भी उन्हें अपनी जगह का पता नहीं होता। यह मत भूलो कि जामिया एक मुस्लिम विश्वविद्यालय है और तुम्हारी नौकरी हमारी दया पर निर्भर है।”

रामनिवास ने तत्कालीन रजिस्ट्रार नाजिम हुसैन अल जाफरी पर इस्लाम में धर्मांतरण करने का दबाव डालने का भी आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था, डॉक्टर नाजिम हुसैन अल जाफरी ने मुझसे कहा था- ईमान ले आओ, सब ठीक कर दूँगा। तेरे बच्चों का भी करियर बना दूंगा। क्या पाखंड में घुसा है।” यहाँ ईमान लाने से मतलब मुस्लिम बनने से है। इस तरह उन्होंने हिंदू धर्म को पाखंडी बता दिया था।

इसी तरह दलित समाज से आने वाले हरेंद्र कुमार जामिया यूनिवर्सिटी के अधीन आने वाली जामिया मिडिल स्कूल में गेस्ट टीचर थे। उन्होंने आरोप लगाया था कि दलित होने की वजह से स्कूल के हेडमास्टर मोहम्मद मुर्सलीन उन्हें हमेशा अपमानित और प्रताड़ित करते रहते थे। इसके बाद साल 2018 में उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया।

जामिया के नए VC मजहर आसिफ पर भी दलित महिला को प्रताड़ित करने का आरोप

जामिया मिलिया इस्लामिया के नए कुलपति के रूप में प्रोफेसर मज़हर आसिफ को नियुक्त किया गया है। इससे पहले वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त थे। आसिफ पर अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय की महिला कर्मचारी रीना के साथ क्रूर जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न का आरोप है। इस मामले की दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई भी हुई। 

मज़हर आसिफ़ को जामिया नया कुलपति बनाए जाने से आहत होकर महिला कर्मचारी रीना ने 14 अक्टूबर 2024 को विरोध में एक पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि आसिफ पर जातिवादी रवैया अपनाकर एक महिला का करियर तबाह करने का आरोप है। ऐसे लोगों को कुलपति नहीं बनाया जाना चाहिए।

दरअसल, 2019-2020 के दौरान JNU में Associate Dean के रूप में मज़हर आसिफ़ ने ST समाज की रीना के करियर को तबाह करने की कोशिश की थी। आरोप है कि आसिफ़ ने रीना को जानबूझकर कम ग्रेड दिए, उनकी पदोन्नति को अवरुद्ध किया और उनकी जगह अयोग्य जूनियर उम्मीदवारों को तरजीह दी। 

इसके बाद रीना ने दिल्ली हाई कोर्ट और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का दरवाजा खटखटाया। उनकी शिकायत के बाद उनके प्रदर्शन के मूल्यांकन की स्वतंत्र रूप से समीक्षा की गई। पहले उन्हें सिर्फ 5.5 ग्रेड दिए गए थे। स्वतंत्र समीक्षा के बाद यह ग्रेड बढ़कर 8.66 हो गया। इस तरह प्रोफेसर मज़हर आसिफ़ पर रीना के लगाए आरोप हद तक सही साबित हुए।

दीवाली मनाने पर भी किया गया था बवाल

इससे पहले 22 अक्टूबर 2024 की रात को जामिया में दीपोत्सव मना रहे छात्रों के साथ बुरा बर्ताव किया गया था। उनकी बनाई रंगोली को मिटा दिया गया था और दीपों को तोड़ दिया गया था। इस्लामी कट्टरपंथियों वाली सोच रखने वाले मुस्लिम छात्रों के एक गुट ने ‘अल्लाह-हू-अकबर’ और ‘नारा-ए-तकबीर’ के नारे लगाकर माहौल बिगाड़ दिया था।

पैरों से दीये तोड़ने और रंगोलियों को मिटाने के बाद दोनों गुटों में झड़प हो गई थी। बताया जा रहा था कि इस झड़प में कई लोग घायल भी हो गए थे और उन्हें अस्पताल ले जाया गया था। इसके बाद अगले दिन यानी 23 अक्टूबर को हिंदू छात्र दोबारा से दीवाली मनाने के लिए इकट्ठा हुए, लेकिन पुलिस ने उन्हें गेट पर ही रोक दिया था और कुछ छात्रों को हिरासत में ले लिया था।

दरअसल, यह पहली बार नहीं है कि विश्वविद्यालय का इस तरह का कट्टरपंथी रूख सामने आया है। वाल्मीकि जयंती मनाने से रोकने और दीपवाली पर दीये तोड़ने एवं रंगोली मिटाने से पहले भी जामिया का कट्टरपंथी सोच सामने आ चुका है। यहाँ CAA और NRC के विरोध में व्यापक विरोध प्रदर्शन किए गए थे। दिल्ली दंगों में यहाँ के कई कट्टरपंथी छात्रों का भी नाम आया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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