दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले के आरोपित रिफाकत अली को जमानत मिल गई है। उसे परिवार में होने वाले एक निकाह में शामिल होने के लिए अंतरिम जमानत दी गई है। उस पर हत्या से जुड़े एक मामले में संलिप्त होने का आरोप है। पिछली बार अदालत ने घटना का वीडियो देखने के बाद उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था। रिर्पोटों के अनुसार वीडियो में वह हाथ में लोहे का रॉड लिए नजर आया था।
बार ऐंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जमानत देते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने माना कि यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति के दिशा-निर्देशों के दायरे में नहीं आता, क्योंकि यह भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत दायर एक दंगा मामला है। लेकिन उसे राहत इस आधार पर दी गई कि वह परिवार का एकमात्र पुरुष सदस्य है। इस तरह की राहत विवाह और उससे जुड़े कार्यों को निपटाने के लिए एक खास अवधि के लिए दी जाती है। ऐसे में रिफाकत को अपनी रिहाई के दो सप्ताह बाद सरेंडर करना होगा।
इससे पहले रिफाकत के वकील ने अदालत को बताया कि वह अपने परिवार का सबसे बड़ा सदस्य है। परिवार आजीविका के लिए उस पर ही आश्रित था। बताया गया कि उसकी बहन भी साथ रहती थी और रिफाकत की गिरफ्तारी से पहले भतीजी का निकाह तय हो गया था। लेकिन उसकी गिरफ्तारी और आर्थिक कारणों की वजह से निकाह में देरी हुई। निकाह की व्यवस्था और अन्य इंतजाम की दलील देते हुए अंतरिम जमानत माँगी गई।
अदालत के सामने रिकॉर्ड पर निकाह के कार्ड और अन्य दस्तावेज भी पेश किए गए। इसके बाद अदालत ने यह बताते हुए कि उसके खिलाफ आरोप ‘काफी गंभीर’ हैं उसे अंतरिम जमानत दे दी। साथ ही बिना इजाजत दिल्ली नहीं छोड़ने, किसी गवाह से संपर्क नहीं करने और सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करने का निर्देश दिया। जाँच अधिकारी को अपना मोबाइल नंबर मुहैया कराने और फोन चालू रखने के भी निर्देश दिए हैं।
रिफाकत की भतीजी की निकाह 12 सितंबर को होनी है। इससे पहले बीते साल के आखिर में अदालत ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। रिपोर्ट के अनुसार उस समय अदालत ने कहा था कि वह कथित तौर पर दंगों में सक्रिय रूप से शामिल था और उसे एक वीडियो फुटेज में हिंसक भीड़ के बीच लोहे की छड़ थामे देखा जा सकता है।
उस समय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा था कि अली ने कथित रूप से अन्य लोगों को घृणास्पद संदेश भेजे, जिन्हें बाद में उसने डिलीट कर दिया। डिलीट डाटा वापस हासिल करने के लिए उसका मोबाइल फोन विशेषज्ञों के पास भेजा गया है। साथ ही घटना के दिन उसने जो टोपी पहन रखी थी, उसे भी बरामद करने की बात कही गई थी।
यह मामला जाफराबाद इलाके में दंगों के दौरान गोली लगने से अमान नामक व्यक्ति की मौत से जुड़ा है। पिछले साल के अपने आदेश में अदालत ने कहा था, “आरोप-पत्र में कहा गया है कि इस पूरे घटनाक्रम में 19 पुलिसकर्मी घायल हो गए। घटनास्थल पर मौजूद रहे कई पुलिसकर्मियों को लगीं चोटों से हालात तथा अपराध की गंभीरता का पता चलता है। इसके अलावा इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि अमान की मौत भी घटना के दौरान गोली लगने से हुई।” आदेश में कहा गया था, “इसके अलावा इस मामले में आरोपित (अली) की एक वीडियो फुटेज भी मिली है। इसमें वह दंगाइयों के बीच दिख रहा है। उसने हिंसक भीड़ के बीच लोहे की छड़ भी थाम रखी है।”
इससे पहले दिल्ली की एक अदालत ने फरवरी 2020 के हिंदू विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले शाह आलम, राशिद सैफी और शादाब को आरोप मुक्त किया था। शाह आलम इन दंगों के सूत्रधार रहे आम आदमी पार्टी (AAP) के पार्षद रहे ताहिर हुसैन का भाई है। तीनों को मुकदमा नंबर 93/2020 से बरी किया गया था। विशेष अदालत में मामले की सुनवाई कर रहे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने इस दौरान दंगों को लेकर पुलिस की जाँच पर भी नाराजगी व्यक्त की थी। साथ ही सबूतों के अभाव में तीन आरोपितों को बरी करते हुए कहा था कि ये विफलता निश्चित रूप से लोकतंत्र के रखवालों को पीड़ा देगी।